अमर शहीद डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी
23 जून पुण्य तिथि पर विशेष
23 जून यानी आत्म अवलोकन का दिन। इसी दिन महान् देश भक्त डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी चिर निद्रा में निमग्न हुए थे। इस दिन को भारतीय जनता पार्टी देश भर में आतंकवाद विरोधी दिवस के तौर पर मनाती है। आज लगभग पूरा विश्व आतंकवाद की पीड़ा से भयभीत है। दिन दूनी-रात चौगुनी गति से ये समस्या आकार ले रही है। भारत सबसे अधिक लम्बे समय से आतंकवाद की मार झेल रहा है। उदार व्यवहार के चलते हमारे देश ने अधिक कीमत अदा की है। इस अमानवीय अभिशाप के पीछे इतिहास के उन कर्णधारों की छोटी-छोटी भूले हैं, जिन्होंने इनके बीज रोपित किएं। आज हमें उनकी कीमत चुकानी पड़ रही है। समय रहते आतंकवाद काबू में नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ी शायद ही हमें माफ कर पायेगी। आज 23 जून, अमर शहीद डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि के अवसर पर हमें संकल्प लेना होगा कि इस बर्बर बुराई के विरोध में हम सब एक हैं और आवश्यकता पड़ने पर प्राणोत्सर्ग कर समाज को इस अभिशाप से मुक्ति दिलवायेंगे।
भारत में आतंकवाद के बीज तुष्टिकरण में निहित है। कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही तुष्टिकरण की नीति पर चलती रही। खिलाफत आंदोलन को समर्थन देकर गांधी जी ने एक अदूरदर्शी कदम उठाया। बंगाल के मुस्लिम इलाकों में हिन्दूओं पर हुए अमानुषिक अत्याचारों पर गांधी जी की टिप्पणी- “ हिन्दूओं को हानि उठाकर भी मुसलमान भाईयों को अपने साथ मिलाना चाहिए ” ने मुखर्जी को मर्मान्तक तक पीड़ा पहुंचाई। तभी उन्हें अहसास हुआ कि गांधी जी की अहिंसावादी नीति के चलते वह दिन दूर नहीं, जब समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जायेगा। सन् 1950 में पूर्वी बंगाल में, जब हिन्दूओं की सम्पत्ति लूटी-खसोटी गई, उनकी माता-बहनों-बीवीओं का धर्म भ्रष्ट किया गया और पांच हजार से अधिक हिन्दूओं की हत्या कर दी गई। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी द्वारा किए गए लियाकत अली पैक्ट की कागजी खानापूर्ती से दुखी होकर डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस पैक्ट का खुलकर विरोध किया। मुखर्जी पर सांप्रदायिक होने के आरोप लगने लगें। फलस्वरूप नये राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ का उदय हुआ, जो आज बीजेपी के नाम से जाना जाता है। डॉक्टर मुखर्जी ने विरोधी नेता के तौर पर अपनी जोरदार भूमिका से दिखा दिया कि सरकार की दुर्बल नीतियों के विरोध में भी कोई बोलने वाला है। ईमानदारी से स्वीकार किया जाए तो पश्चिम बंगाल को भारत से अलग नहीं करने देने में डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी को श्रेय जाता है। कश्मीर में शेख अबदुल्ला से नेहरू को पूरी सहानुभूति थी। आश्चर्य तो इस बात का था कि नेहरू जम्मू-कश्मीर का शत्-प्रतिशत विलय भारत में मानते थे। फिर भी भारत सरकार से बिना प्रवेश-पत्र लिए वहां प्रवेश नहीं किया जा सकता था। जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद् द्वारा इस नीति के विरोध में आंदोलन छेड़ने पर सरकार का रवैया बड़ा कठोर हो गया। लगभग ढाई हजार सत्याग्रही गिरफ्तार किएं गए। तीस व्यक्ति गोली के शिकार हुए। डॉक्टर मुखर्जी बिना परमिट लिए स्वयं जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हुए। मार्ग में उनके पीछे भारी जन सैलाब उमड़ पड़ा। मुखर्जी ने स्पष्ट कहा- “ पंडित नेहरू एक तिहाई कश्मीर पहले ही पाकिस्तान को भेंट कर चुके है। मैं अब भारत की एक इंच भूमि भी हाथ से नहीं जाने दूंगा। ” मुखर्जी को बंदी बना लिया गया। जेल में अचानक उनकी तबियत खराब हो गई। उचित उपचार के अभाव में 23 जून 1953 को महान् देश भक्त डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी को नियती ने हमेशा-हमेशा के लिए हमारे से छीन लिए। भारत माता के इस अमर सपूत का जीवन एक तपस्वी की भांति था। वह नीलकंठ की तरह जीवन पर्यन्त राष्ट्र की एकता के लिए विषपान करते रहे। विभाजन और उसके उपरांत हुए दंगों के बाद 1984 के शाहबानों प्रकरण ने भी जनमानस को उद्देलित कर आशंकित किया है। अब तो धर्म के आधार पर आरक्षण की पुरजोर वकालत हो रही है। सैन्य और सिविल सेवाओं में अल्पसंख्यकों की गिनती के कुत्सित प्रयास तक हुए। कश्मीर पर चल रही अधिक उदार नीति से कट्टरवाद प्रोत्साहित हो रहा है।
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की धरोहर को आगे बढ़ाने वाले उनके अनुयायी भी उनके सपनों को सही दिशा देने में सफल नहीं रहे। बीजेपी ने डॉक्टर रूबिया सईद अपहरण प्रकरण के समय आतंकवाद पर अपनी शिथिल नीति का प्रारम्भ की। भारत के यात्री ऐरोप्लेन के हाईजेक होने के एवज में आतंकवादियों को छोड़कर कायरता की नीति का परिचय दिया। बीजेपी अपने सत्ताकाल में कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास करने में नाकाम रही। कारगिल घुसपैठ और संसद के बाद लाल किले पर हुए आतंकी हमले के समय देश की जनता के साथ अन्तरराष्ट्रीय सहानुभूति पक्ष में होने के बावजूद बीजेपी ने कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति साबित की। वे अपने 6 साल के शासनकाल में बांग्लादेशी घुसपैठ पर रोक लगाकर घुसपैठियों का विस्थापन नहीं कर सकें। जिन्ना की मजार पर माथा टेक कृत्रिम राष्ट्रवाद को पैदा करने के प्रयास अवश्य हुए। ऐसे निराशा भरे माहौल में राष्ट्र सर्वोपरिता की भावना ही इस अमर शहीद के लिए हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आज दिनांक 23 जून 2016 पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता अमर शहीद डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर राष्ट्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। बह्मलीन इस महापुरूष को मेरा भी मार्मिक स्मरण और शत् – शत् नमन् ! आज देश इस महान् देश भक्त के विचारों को आकार लेते देख रहा है। इसके लिए हम सब देशवासी और पूरा भारत उनके इन महान् विचारों के प्रति कृतज्ञ हैं , रहेंगे। मुझे आशा है, आने वाले समय में हम और हमारी आने वाली पीढ़ी उनके इन महान् विचारों से विश्व में हिन्दुस्तान को संसार की अगुवाई करने वाले देश का स्थान दिलवाकर गौरवशाली बनाने में कामयाब होंगे। भारत को आतंकवाद से मुक्त कर देश में शांति की स्थापना करना ही हमारी इस अमर शहीद के बलिदान के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ................ धन्यवाद ! .............. Surch my post ……….. अमर शहीद डॉक्टर श्यमाप्रसाद मुखर्जी – 23 जून पुण्य तिथि पर विशेष .................................. on …………. http://www.dineshsahu666.blogspot.com
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