ऊँ
भाग्यशाली राहगीर
(BLESSFUL PASSER)
सत्य से एक मुलाकात
(A MEET TO TRUTH)
हम सब इस भवसागर के लड़खड़ाते राहगीर हैं। हमें इसे लड़खड़ाते हुए ही पार करना हैं। हम तो बस एक कठपुतली हैं। जिनकी डोर, ऊपर बैठे भगवान के हाथ हैं। वहीं हमें गिराता और आखिर में उठाता है। जिस राह पर आप चलना चाहते हैं, वह आपकी-अपनी होती है। और जहां आप अभी चल रहे हैं, वह तो प्रभु की इच्छा से पहले ही नियत थी। हमारी अपनी बनाई राहें काम नहीं आती। हम जिन राहों पर चलना चाहते हैं, उन्हें हमें नियंता की इच्छा के चलते छोड़ना पड़ता है।
कहते है जिस ओंकार की ध्वनि से इस जगत का उदगम् हुआ है। उस ओंकारेश्वर की जिंदगी में भी ऐसे पल आये जब उसे लड़खड़ाते हुए इस जगत ने देखा। राजा दक्ष के अनाचार से महादेव को भी सती से बिछोह की पीड़ा झेलनी पड़ी। यहां तक की वे इस कलेषमय संसार से विमुख तक हो गए। सती के आत्मदाह से भोले पीड़ा से इतने भर आये। वे तीनों लोकों में अपने स्तब्ध मन को लेकर घूमते रहे। तभी उन्होंने त्रिदेव के लिए डिसाइड किया की सभी को एक बार दुखमय मानव जीवन बिताना जरूरी है। इससे मानवीय पीड़ा और द्वैष को समझ सकेंगे।
इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए विष्णु ने भी
मर्यादित मानवीय जीवन की पीड़ा भोगी और आनंद लिया। इस अवतार में स्वयं नारायण भी
इस धरा पर अपनी सीता के लिए रोते-बिलखते भटकें। तो आप और हम तो एक तुच्छ जीव है।
सभी को लड़खड़ाते हुए ही जीना और जाना है।
रोचक प्रसंग
मुगलों ने भारत पर
चार सौ से अधिक साल तक राज किया। इसकी शुरूआत बाबर ने सन् 1426 ईसवी में कर दी थी।
वह केवल चार साल ही हिन्दुस्तान में राज भोग कर पाया। उसके मरने के बाद पुत्र
हुमायूं को एक विशाल और समृद्ध साम्राज्य विरासत में मिला। लेकिन उसके चार सौतेले
भाईयों ने उसे इसका भोग शांति से नहीं करने दिया। इसी दौरान सूर वंश के शासक शेर
शाह सूरी ने उससे हिन्दुस्तान छीन लिया। बहुत प्रयास के बाद हुमायूं ने शेरशाह
सूरी से सिंहासन पुन: हांसिल कर लिया। आखिरकार
एक दिन हुमायूं अपने महल की सीढ़ियों से गिरकर मौत के गाल में समा गया। इस मुगल
शासक हुमायूं के जीवन पर इतिहासकारों ने एक बढ़ा ही रोचक कोटेशन किया है:- “ हुमायूं हिन्दुस्तान का एक ऐसा भाग्यशाली मुगल सम्राट था। जो
जिंदगी भर लड़खड़ता रहा, और लड़खड़ाते हुए ही मर गया। ’’
लड़खड़ाता राहगीर
भी एक ऐसे ही बालक सूरज की कहानी है। उसे बस नहीं मिला तो वह था उपलब्धी को आकार, नर के
तौर पर कोई नारायण और प्यार। महादेव को अपना आराध्य मानने वाला। गणेश के स्वरूप को
अपने जीवन दर्शन के तौर पर अपने मन में उतारने वाला। ये सूरज एक दिन इस दुनियां से
लड़खड़ाते ही सही। इस लोक से जाने को अपने बचे जीवन का लाइफ रोड मैप बना लिया। मगर
भरपूर ऊर्जा के साथ। गीता के गहरे अध्ययन के बाद उसमें ये आस्था उत्पन्न हो जाती
है। बिना किसी संशय के उसने अपने जीवन में ये उतार लिया कि आत्मा शाश्वत और
अविनाशी है। और उसका अगला जीवन इन उपलब्धियों, कर्मों से आगे से प्रारंभ होगा। ऐसे
में उसे निराश होने की बजाय ऊर्जा से भरपूर उत्साह लेकर ही उसे इस जीवन से विदा
होना है। भले ही पद-प्रतिष्ठा-धन नहीं तो प्रभु को जानने का अवसर तो मिला। शायद
प्रारब्ध या भाग्य की भी इसमें सहमति हो। और फिर अभी तो उसके प्रारब्ध के आगे के
पन्ने खुलना अभी बाकी हैं। जिनको भापने का गुर सामान्य जीव के बूते से बाहर है।
लीलाधर पल में
कौनसी लीला दिखा दें। ये कोई नहीं जानता। बस उसमें आस्था, विश्वास के साथ मस्त
रहना है। बस यहीं हर लड़खड़ाते राहगीर का अन्त: बल है। आइये इस स्क्रीप्ट में हम एक ऐसे ही शख्स का जीवन जीयेंगे। उसे महसूस
करेंगे। इसमें से हमारे लायक कुछ मिलेगा तो उसे हम चुन लेंगे। बस करना इतना होगा
कि समय-समय पर जारी होने वाली स्क्रीप्ट को पढ़कर लेखक को प्रोत्साहित करना होगा। यहां
पर लड़खड़ाता शब्द का उपयोग नकारात्मक दृष्टिकोण से न होकर अर्जुन के महाभारत में
निभाये आदर्श चरित्र के संदर्भ में हुआ है।.........जय हिंद!
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