Morning Woke Time

Morning Woke Time
See Rising sun & Addopete Life Source of Energy.

Thursday 26 December 2013

अरविंद केजरीवाल की अलख


अरविंद केजरीवाल की अलख
हाल ही के वर्षों में देश में भ्रष्टाचार डरा है...सहमा है.....ठिठका है......संयमित हुआ है......सोच में पड़ गया है। ये सब किसी सरकार या प्रशासनिक तंत्र की इच्छा शक्ति के जरिए नहीं हुआ। ये सब उन चंद साहसी लोगों के कारण संभव हो रहा है। जो समाज सेवा, प्रशासन, मीडिया में निडरता से साहस का परिचय दे रहे हैं। इनमें वे लोग भी शामिल है जो शासकीय प्रक्रिया को आधुनिक तकनीक से पारदर्शी बनाने में लगे हैं। 90 के दशक से शुरू हुई उदारीकरण की प्रक्रिया ने देश को तेज गति से भ्रष्टाचार की गिरफ्त में ले लिया। पूंजीवाद की ओर बढ़ते भारत में जिसे भी अवसर मिला उसने जमकर पूंजी बटोरी। लोग कंगाल से कुबेर बन गएं। गरीबों के हाथों में अब कटोरा आने की नौबत आन पड़ी हैं।
अन्ना हजारे के आंदोलन से देश की जनता की हथेली पर बढ़ती इस अभिशाप की रेखा को रोकने आशा की किरण भी दिखाई दी। अगस्त 2011 के अनशन के समय देश की लगभग समूची जनता अन्ना के साथ खड़ी हो गई। इससे देश आशा से गदगद हो गया। संसद ने भी जन इच्छा को भापकर, लोकपाल बनाने पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी। स्तब्ध करने वाली बात है कि इसे अमली जामा पहनाने में संसद अपना वचन पूरा न कर सकीं। देश की जनता उस समय सकते में आ गयी जब अन्ना हजारे का आंदोलन आंतरिक मतभेदों के चलते बिखर गया। जो पहले से इस आंदोलन में नजर आ रहा था वही हुआ। आंदोलन के सभी अहम सदस्य अपने आपकों किसी से छोटा समझने को तैयार नहीं थे। उनके हावभाव और आपसी प्रतिस्पर्धा ये साफ बया कर रहे थे। इस आंदोलन की उम्र अधिक नहीं। कोई अपने आप को पुरस्कार प्राप्त आईपीएस, तो कोई अपने आपको को सीनियर विधि विशेषज्ञ समझ केजरीवाल को सहन नहीं कर रहे थे। अन्ना के बाद दूसरे नम्बर पर कौन ? की इस आपसी धक्का-मुक्की में कोई स्टेज पर नहीं बचा। मंच ही गिर गया। 
खैर जो भी हुआ वो एकाएक न होकर साफ नजर आने वाली एक स्वचालित प्रक्रिया थी। जिसने भारत की जनता की हथेली पर भ्रष्टाचार की गहरी रेखा खींच दी। जिसे शायद आने वाले अगले कई सालों तक मिटाया न जा सकें। अब शायद कब कोई दूसरा अन्ना समय चुन पायेगा या नहीं। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। बड़ी मुश्किल से देश में समय ने कोई सर्वमान्य अन्ना चुना था। जिसमें लोगों अपना सुखद भविष्य नजर आने लगा था।
अब अरविंद केजरीवाल अलख जगाए, आशा की जोत देश को दिखा रहे है। अब लोगों को व्यक्तिगत तौर पर बदनाम करने के आरोप केजरीवाल पर लग रहे है। उनके बारे में कहा जा रहा है कि वे लोगों को बदनाम कर केवल चर्चाओं में रहना चाहते है। मगर केजरीवाल पर आरोप लगाने वाले कोई विकल्प नहीं सुझा रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरोध में अलख लेकर आगे कौन चलेगा ? बड़े-बड़े लोगों के विरोध में मुंह खोलने का साहस कौन करेगा ? भले ही मामला अंजाम तक न पहुंचे। लेकिन इसे शुरूआत तो माना ही जा सकता है। और ये कोई सामान्य परिवर्तन न होकर हमारे देश में प्रजातंत्र के परिपक्व होने का परिचय भी तो दे रहा है। जहां कोई सामान्य व्यक्ति भी बड़े से बड़े के काले कारनामों को उजागर करने का साहस कर रहा है। मुझे तो लगाता है इसे एक स्वस्थ परंपरा के तौर पर हमें इसे स्वीकार कर लेना बेहतर होगा। इससे हमें एक ओर व्यावहारिक जन लोकपाल मिल जायेगा। तो दूसरी ओर लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद, आर्थिक व्यय के भार से मुक्ति मिलेगी। वहीं शिकायतों का ढेर नहीं लगेगा।
इस व्यावहारिक जन लोकपाल के अस्तित्व मात्र से ही पूरी तरह से तो नहीं, काफी हद तक भ्रष्टाचार कम होगा। इसके होने का डर ही अपराध करने से पहले व्यक्ति को ठहर कर सोचने पर विवश करेगा। यहीं व्यावहारिक जन लोकपाल आगे चलकर वैधानिक लोकपाल का पूरक और एक अच्छा हमसफर सहयोगी साबित होगा। कोई तो अलख जगाने वाला चाहिए। जो राजघाट की अमर ज्योति को अपनी स्मृति में रखकर। कपूर की जोत हथेली पर जलाकर अडिग रहे। यहीं टिमटिमाती लौ आगे समय आने पर ज्वाला बनकर बुराई का अंत कर सकती है। इस सोच को लेकर तो हम अरविंद केजरीवाल को धन्यवाद दे ही सकते हैं। अलख निरंजन......कांटा गड़े ना कंकर....!
(ऊं राष्ट्राय स्वाहा, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)
http://www.newsbullet.in/live-tv

Thursday 15 August 2013

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी का भाषण: चुनौती या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या स्वस्थ लोकतांत्रिक स्पर्धा ?

15 अगस्त को गुजरात के कच्छ के लालन कॉलेज से मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की दी गई स्पीच चर्चा और आलोचना का विषय बन गया है। आलोचकों का कहना है। एक तो राष्ट्रीय पर्व के दिन को इस राजनीतिक विरोध के लिए चुनना नैतिक दायरे से बाहर की बात है। दूसरे इस पवित्र दिन पर किसी मुख्यमंत्री के द्वारा भाषण के लिए  प्रधानमंत्री को खुली चुनौती देना देश की संघीय परंपरा के भविष्य के लिए लाभकारी नहीं होगा। वहीं मोदी के समर्थ इसे देश की जरूरत बताकर जायज ठहरा रहे हैं। ये लोग तर्क दे रहे हैं। आज देश का सक्षम नेतृत्व की जरूरत है। मोदी तो इसे विकास की एक स्वस्थ लोकतांत्रिक स्पर्धा बताकर अपनी बात को उचित ठहरा रहे है।
सोचने का तरीका चाहे जो भी हो। लेकिन देश की अधिकांश जनता इस बात को महसूस करने लगी है कि समस्याओं के संक्रमण से गुजरते भारत को एक अनुभवी, सक्षम और सूझबूझ वाले नेतृत्व की जरूरत है। ऐसे में परिक्वता की ओर बढ़ता भारत का मतदाता मोदी के बढ़ते कदमों को मजबूती दे सकता है। तो इसमें कोई नई बात नहीं होगी। इसके प्रमाण हमें देश में हुए कुछ राज्यों में हुए पिछले चुनावों में मिल चुके हैं। उम्र में बढ़ता ये देश का वही मतदाता है। जिसने उत्तरप्रदेश में विखंडित शासन का खात्मा कर दलित की बेटी को भारी बहुमत दिया। वो एक अलग बात है कि इसके बावजूद वो सुशासन नहीं दे पायी।
 दूसरी पारी में यूपी के इसी मतदाता ने विकल्प बदलकर मुलायाम की समाजवादी पार्टी को दो तिहाई से अधिक बहुमत देकर अपनी बढ़ती मानसिक आयु का परिचय दिया। उसने फिर इस राज्य को विखंडित बहुमत की खाई में नहीं गिरने दिया। भले ही अब इस सूबे में शासन की अच्छाईयों की अपेक्षा बुराईयां ज्यादा सामने आ रही है। 
इसी सूबे के मतदाता अब अगर अगले चुनावों में किसी राष्ट्रीय दल का दामन थाम ले तो यह कोई अचानक होने वाली घटना न होकर मतदाता की विकसित होती सोच का ही परिचायक होगी। ये वही मतदाता है जिसने बिहार में लंबे समय से चले आ रहे लालू प्रसाद यादव के एक छत्र डर को एक झटके में खत्म कर शासन की बागडौर स्वच्छ छबि वाले उदार नेता नीतिश कुमार के हाथ में सौंप दी। अब यही बात भारत का मतदाता राष्ट्रीय स्तर पर अगले साल होने वाले आम चुनवों में दोहरा सकता है। मोदी को भारी बहुमत देकर केन्द्र में ताजपोशी कर सकता हैं। जो भारतीय मतदाता की पूर्ण परिक्वता का ही परिचायक होगा। वो नरेन्द्र मोदी की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। उसे विकल्प के तौर पर मोदी ही सामने नजर आ रहे है।
मोदी लोगों की पहली पसंद हो भी क्यों नहीं ?  मोदी 39 से अधिक अनुषांगिक संगठन वाले लोकतांत्रिक संघ परिवार में प्रशिक्षित हुए है। किसी व्यक्ति, परिवार या मुठ्ठी भर लोगों द्वारा रेग्यूलेट होने वाले संठन का साया उन पर नहीं है। उनके पीछे एक विशाल लोकतांत्रिक संघ परिवार खड़ा है। जहां निर्णय प्रक्रिया किसी व्यक्ति विशेष से प्रभावित न होकर विशुद्ध लोकतांत्रिक स्वरूप लिए हुए है। कुछ माह पहले तक अखड़ कहे जाने वाले मोदी अब सबकों साथ लेकर चलने की बात कर है। उनके ऊपर लगने वाले कट्टरता के तथाकथित आरोपों पर उनके द्वारा दी जा रही विकास की ललकार आच्छादित होती जा रही है। इंडिया फस्ट अब उनकी थीम बन गई है। जो उनकी भावी दृड़ राजनीतिक इच्छा शक्ति का संकेत दे रही है। देश में सर्वमान्य बनने की ओर उनके कदम लगातार बढ़ रहे है।
 केन्द्र को विकास की खुली प्रतिस्पर्धा की चुनौती देकर मोदी ने लोगों का दिल जीतने का ही काम किया है। स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर प्रधानमंत्री को भाषण की चुनौती देकर मोदी ने मनमोहन सिंह को अपनी इच्छा शक्ति को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया। इसे भी मनमोहन सिंह भुना नहीं पाये। अब इसमें मोदी की क्या गल्ती। देश की नजरे आत्मविश्वास से लबरेज मुखिया को तलाश रही है। जिसे मोदी ने अपने साहस पूरा ही तो किया है। मोदी ने उन पर लगने वाले तथाकथित सांप्रदायिकता के दाग इंडिया फस्ट को राष्ट्र धर्म बताकर ओझल कर दिया है। मोदी ने संविधान को देश का पवित्र ग्रंथ बताकर अपनी इच्छा शक्ति जता दी। राष्ट्र भक्ति को जनता जनार्दन की कोटी-कोटी सेवा बताकर उनके दिलों में घर बना लिया।
रही बात एनडीए में साथी दलों को जोड़ने या उनकी संख्या बढ़ाने की तो मोदी वो सभी नेता को सभी गट्स है। जो एक चमत्कारिक लीडरशीप में होने चाहिए। जो आने वाले समय में मूर्तरूप लेंगे। जयललिता के विकास मॉडल की प्रशंसा कर उन्होंने एडीएमके को अपना भावी साथी होने के संकेत दे दिये है। दूसरी ओर हैदराबाद में आम सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने तेलंगाना के लोगों के पक्ष में जोरदार आवाज उठाकर उनका दिल जीत लिया। वहीं चन्द्रबाबू नायडू को एन.टी. रामाराव के सपनों को पूरा करवाने की जिम्मेवारी दे दी। तेलंगाना वासियों के लिए सबसे पहले आवाज उठाने के श्रेय उन्होंने एन.टी. रामाराव को देकर अपने खुले दिल का परिचय दिया। टी.डी.पी. भी अब उनकी भावी सहयोगी होने की संभावना को मोदी ने बढ़ा दिया है।
ये वहीं मोदी जो अब अपने साथियों का नाम लेने से भी परहेज नहीं करते। उन्होंने लालन कॉलेज से अपने संबोधन में बीजेपी शासित राज्यों का ही तरजीह नहीं दी। बल्कि अन्य राज्य सरकारों के काम को भी दिल से बया किया। विकास को केन्द्र राज्य का समन्वित प्रयास बताकर उन पर लगने वाले एकला चलो रे के आरोप को भी विराम दे दिया। अब वे अपनी पार्टी के भी किसी नेता का नाम लेने से नहीं हिचकाकिचाते। भारत के आईटी शहर हैदराबाद में उन्होंने ओबामा के समान हम कर सकते हैं, जनता से लगवाकर अपनी दृड़ इच्छा का परिचय दिया है।
अब इन बातों को ध्यान में रखकर देश का मतदाता अगर बहुदलीय व्यवस्था का खात्मा कर किसी एक दल को बहुमत देता है तो वह देश हित में होगा। यह मतदाताओं की परिपक्वता को ही सूचित करेगा। इसमें अप्रत्याशित होने जैसी कोई बात नहीं होगी। देश की समस्याओं का हल अब मतदाताओं को ही अपने स्तर खोजना होगा। बोलों भारत माता की जय.......!
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)  


Saturday 10 August 2013

हम अब अपनों के परतंत्र

            स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

1.   हमें तोड़नी होगी जंजीरें
2.   आने वाला समय आम लोगों की हाथ में
3.   नेताओं की खींची लक्ष्मण रेखाओं को लांघना होगा
       
 देश 67वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। भारत के इतिहास की अटल साक्षी। जो कभी नहीं डिगी। लाल किले की प्राचीर गर्व से फूली नहीं समा रही है। शायद यही सोचकर कि हर साल की तरह वो एक दिन फिर आ गया जब उसके आंगन में उल्लास और उमंग की चहल-पहल होगी। राष्ट्र ध्वज उसके माथे पर लहराएंगा। उसके अपने देश का नेतृत्व आम  लोगों की बेहतरी के लिए कदमों को आकार देंगा।
दूसरी ओर। लाल किला इस बात को भी सोंचकर सकते में है। यह कही थोड़ी देर के लिए तो नहीं। जो 66 साल से वो देखता-सुनता आ रहा है। उसे लगता है। पहले हम परायों के आधीन थे। अब तो हम अपनों के परतंत्र है। हमें अपनों ने ही अब जंजीरों में जकड़ लिया हैं। उनकी अपनी बनाई लक्ष्मण रेखाएं हैं। अब तो लगने लगा है। बेड़ियों को तोड़कर लक्ष्मण रेखाएं पार करनी होंगी।
देश में आज भी अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही लेकिन प्रतिक्रियावाद क्रियान्वित हो रहा है। हमारे रहनुमा राजनीतिक दल ही नहीं चाहते कि देश में तेज रफ्तार से एक तार्किक राजनीतिक व्यवस्था विकसित हो। 66 साल बाद भी आज रिमोटेड नेतृत्व हमारा दुर्भाग्य बना हुआ है। इन नेताओं ने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए लोकपाल तक हमें नहीं मिलने दिया। कमी-बिसी जो भी होती लेकिन ओम्डुसमैन का अस्तित्व ही एक डर का वातावरण तो कायम करता। महंगाई ने तो हर पल आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ये महंगाई किसी अनहोनी की आहट सुना रही है। भगवान न करें जो किसी दिन सड़कों पर आकर व्यवस्था को न निगल लें।
 दृड़ राजनीतिक इच्छा शक्ति वाले स्वतंत्र नेतृत्व के अभाव में देश पड़ोसियों की धृष्टताओं को सहन करने पर मजबूर है। चीन बार-बार दुस्साहस कर चुनौती दे रहा है। खीझ मिटाने के लिए बौना पाकिस्तान हमारे साथ नित नये-नये अमानवीय हरकतें कर रहा है। कभी हमारे सैनिकों के सिर कांट ले जाता है, तो कभी हमारी ही सीमा में आकर हमारे सैनिकों की हत्या कर देता है। आतंकवादी गतिविधियों को भारत में अंजाम देना तो पाक के लिए आम बात हो गई है। इन सबके बावजूद हमारा संयम नहीं टूट रहा है।
उदारीकरण की आड़ में देश में पसरता पूंजीवाद अमीर-गरीब के बीच की खाई को दिन दुनी-रात चौगुनी गहरा बना रहा है। इस अंधी चाल में असंगठित क्षेत्र के लिए व्यावहारिक धरातल पर कुछ नहीं हो रहा है। उठाये गये कदम कागजों में सिमट कर रह गये हैं। बस चिंता है तो पूंजीपति और पूंजी की। सर्वहारा वर्ग दबता ही चला जा रहा है। जो भविष्य में लावा बनकर फूट सकता है। गरीब दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं कर पा रहा है। दूसरी ओर अनाज करोड़ों टन अनाज खुले में आसमान के नींचे सड़ रहा हैं। गोदाम बनाने के काम को सरकार युद्ध स्तर पर नहीं चला पा रही है। नाश हो रहे अनाज को गरीबों में वितरित करने या बाजार की कीमतों को लगाम लगाने में उपयोग नहीं कर पायें।
बहन-बेटियों की सुरक्षा पर भी सरकारों अजीब-गरीब रवैया सामने आया। आज तक हम इनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पाये हैं। कड़े कानून नहीं बना पाये। कड़ी सजा नहीं दे पाएं। भले पूरा देश क्यों न उबल गया है। हां उनके ऊपर लाठियां बरसाकर उन्हें तितर-बितर करने का काम बखूबी किया। उठती हुई आवाजों को कानून की लंबी औपचारिक प्रक्रियों में लपेट दिया।
शिक्षा के लोक व्यापीकरण की जगह उसका व्यापारीकरण इस कदर हो रहा है कि देश में शिक्षित युवा बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही हैं। जो कभी भी सड़कों पर उतरकर अगुवाई कर सकता है। 
इन राजनीतिक दलों ने लोकपाल तो लोकपाल विधान सभाओं और संसद में महिलाओं को आरक्षण देने वाला बिल तक पास नहीं होने दिया। विधायिकाओं में महिलाओं को 33 फीसदी प्रतिनिधित्व देने वाले इस बिल को सालों से अपने-अपने राजनीतिक लाभ-हानि के जाल में उलझा रखा है। समाज की इस आधी आबादी को साथ बिठाने की प्रक्रियां तक पर वो सहमत नहीं पायें। हां ये सभी दल इस बात पर जरूर बिना लाग-लपेट के सहमत हो गएं कि सजा यापता व्यक्ति भी चुनाव लड़ सकता है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले को कानून बनाकर बदलने में जरा देर नहीं लगाई। जिसमें कहा गया था कि कोई भी व्यक्ति जो दो साल की सजा भुगत चुका है वो कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है।
 साथ विधान सभा या संसद से उसकी सदस्यता भी स्वत: ही समाप्त हो जायेगी। इस छोटे से कदम से राजनीति की आधी सफाई तो आसानी से हो जाती। लेकिन नेताओं को ऐ कैसे रास आता ? बहाना बना लिया कि इस फैसले को लागू करने से सार्वजनिक जीवन में विमुखता का संचार होगा। सार्वजनिक जीवन में अच्छे लोग आना कम हो जायेंगे। सार्वजनिक पदों के दायित्व के क्रियान्वयन में व्यवस्थागत कमी के चलते तो छोटी-मोटी गल्ती होना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया में आता है। इसलिए तब तक किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जब तक साबित नहीं हो जाता। उनका मानना है अभी जो लोग है वो सब अच्छे हैं। समाज में मौजूद अन्य लोग अनुभवहीन है। उनके ही हाथों में देश सुरक्षित हो सकता है। इसलिए कानून ही बदल दिया।
देश की जनता को भी इस स्वतंत्रता दिवस पर सोचना होगा कि नेताओं को दी इस स्वतंत्रता की पीछे कहीं हमारी मेहरबानी तो नहीं। जिसका वो अनुचित लाभ उठा रहे हैं। आम लोगों को मनन करना चाहिए कि इस बुराई को बड़ा करने में हमारी विमुखता ने तो खाद का काम नहीं किया। चिंतन कर जनता जनार्दन को जागना होगा कि वो क्या कर सकती हैं। उसके पास क्या लोकतांत्रिक और संवैधानिक साधन हैं। जिससे शांतिपूर्ण तरीके से वो इसका खात्मा कर सकती है। अब हम बालक नहीं रहें। बल्कि मानसिक आयु में बड़े हो गये हैं।

                          
आने वाले महीनों में होने वाले विधान सभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा के आम चुनावों में हम अपनी परिक्वता एहसास इन नेताओं करा सकते हैं। अच्छे लोगों को चुनकर। सक्षम नेतृत्व को सामने लाकर। बेहतर राजनीतिक दलों को बागडौर देकर। इन सबके लिए चलाना होगा हमें मतदान का ब्रह्म अस्त्र। बुराईयों के विरोध में सड़कों पर एकजुट उतरकर। कमजोरों की मदद के लिए हजारों हाथ बढ़ाकर। जन आंदोलनों में निजी महत्वाकांक्षा का त्याग कर।
तब और अब में अंतर केवल इतना है कि अंग्रेजों के जमाने में हमारे हाथ में कुछ भी नहीं था। केवल प्राणोत्सर्ग के दृड़ संकल्प के बिना। जो बड़ा लंबा और दुरूह रहा। आखिर में हम परायों से स्वतंत्र हो हुएं। लेकिन हम तुरंत ही अपनों की गोद में जा गिरें। जिन्होंने हमें लोरी सुनाकर सुला दिया। हमें मंद नींद की घुंटी पिलाकर पालने में झुलाते रहें। ताकि वो अपना काम आसानी से कर सकें। हम बालक की तरह मीठी नींद में मंद-मंद मुस्कुराकर सपनों में विचरण करते रहें। अब बड़े हुए तो सामने समस्याएं मुंह फैलाये खड़ी हैं। लेकिन अब हमें जागना होगा। सामने आना होगा। अपने अधिकारों का प्रयोग करना होगा। एकता दिखानी होगी।
 यहीं इस स्वतंत्रता दिवस पर हमारी ओर राष्ट्र को एक सच्चा उपहार होगा।

(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

लोकतंत्र की पहचान बनी जन आशिर्वद यात्रा


आज लोकतांत्रिक सरकारें अपने आप को अधिक से अधिक जन हितैषी कहलाने की प्रतिस्पर्धा में लगी हुई हैं। वो अधिक से अधिक लोक कल्याण के कार्य अपने हाथ में ले रही हैं। सभी राजनीतिक दल इसी आधार पर आपस में जोर-आजमाइश कर सत्ता की बागडौर अपने हाथ में लेने के भरसक प्रयास कर रहे हैं। जनता ने भी अपनी सारी जिम्मेवारी इन पार्टियों पर डाल रखी हैं। जनता भी अब छोटे से छोटे काम के लिए उनकी चुनी हुई सरकारों की ओर एक टक आशा लगाएं बैठी रहती हैं।
जनता जनार्दन के लोकमत के बिना कोई भी व्यक्ति या विचारधारा शासन में नहीं आ सकती। अपने इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ती के लिए राजनीतिक यात्राएं करने की परंपरा रही है। बस केवल अब इनका स्वरूप बदल गया है। पहले ये यात्राएं या तो व्यवस्था बदलने के लिए होती थी, या गुलामी की बेड़ियों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए होती थी। लेकिन अब ये यात्राएं सत्ता पाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से संविधान के दायरें में होती है। वहीं पहले ये यात्राएं जनता के साथ पैदल चलकर उनसे रूबरू होते हुए होती थी। लेकिन अब यात्राओं ने हाईटैक रूप ले लिया है। जनता और शासक के बीच की दूरी को बढ़ा दिया है। जिससे जन समस्याएं सीधे-सीधे नेता की नजर में आने से ओझल बनी रहती हैं। साथ ही शासक का प्रजा से भावनात्मक अपनत्व का दायरा सिकुड़ता जाता है।
मध्यप्रदेश की बीजेपी ईकाई ने प्रदेश में तीसरी बार अपनी विजय पताका फहराने के लिए जन आशिर्वाद यात्रा निकाली है। इस यात्रा की अगुवाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कर रहे है। यात्रा को पूरे प्रदेश में भारी समर्थन मिल रहा है। सबसे पहले इसका श्रेय नेतृत्व के विनम्र व्यक्तित्व को जाता है। जो नेता और लोकतंत्र की पहली आवश्यकता होती है। दूसरी ओर लाड़ली लक्ष्मी, मुख्यमंत्री कन्यादान, तीर्थ दर्शन जैसी योजनाओं ने आम लोगों के दिलों को छू लिया है। अर्थव्यवस्था की धमनियों में बहने वाली बिजली पर्याप्त मात्रा में प्रदेशवासियों को मिल रही है। विकास धरातल पर आकार लेता लोगों को दिख रहा है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के विचार ने गरीबों के घरों तक पहुंच बना ली है। अब उन्हें स्वास्थ्य और सुबह-शाम के भोजन की चिंता करने वाला कोई नजर आने लगा है। अटल बिहारी बाजपेयी की प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना ने ग्रामीणों को रफ्तार दे दी है। सिंचाई रकबा दिनो-दिन बढ़ रहा है। नदियों को जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी योजना प्रदेश में आकार ले रही है। सायरन बजाती हुई 108 एम्बुलैंस संकट के समय लोगों के कानों में सुनाई दे रही है। गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों में वितरित होती स्कालशिप ने माता-पिता के चेहरों पर खुशी बिखेर दी है। प्रदेश में उच्च, तकनीकी, स्वास्थ्य और प्रबंध की शिक्षा सभी के लिए सुलभ हो गई है।  प्रदेश में बीजेपी के लिए तीसरी बार सत्ता में आने के लिए रास्ता साफ होता दिखने के पीछे वे अन्य तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं है। जिन्होंने लोगों के दिलों में घर बना लिया है। साथ ही इस सफलता की तह में पार्टी संगठन की विशिष्ठ कार्यशैली भी है जो मूर्त रूप ले रही है।
 जो बीजेपी को लगातार सफलता की ओर ले जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नेतृत्व में निकाली गई जन आशिर्वाद यात्रा आज लोकतंत्र की पहचान बन गई है। उनका सबकों साथ लेकर चलने वाला विनम्र व्यक्तित्व इसका दायरा और बढ़ा रहा है। उनका ऊर्जावान युवा नेतृत्व इसके लिए पसीना बहा रहा है। उन्होंने अपनी संयमित वाकपटुता से सबका दिल जीत लिया है। इस योग्यतम नेतृत्व के बलबूते पर प्रदेश में योजनाएं क्रियान्वित होकर आकार ले रही है। अब इन सबके चलते यदि बीजेपी तीसरी बार सत्ता मे आती है, तो आश्चर्य में डालने जैसी कोई बात नहीं होगी।

(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

Friday 24 May 2013

लुर्सन सिटी एक्सप्रेस ?

सुझाव: भोपाल बी.आर.टी.एस. कॉरिडोर पर चलने वाली बस का नया नाम ?

हिन्दुस्तान का धड़कता दिल है, मध्यप्रदेश। और उसका मुकुट बनने का मौका मिला भोपाल को। सबसे बढ़कर झीलों की नगरी भोपाल को। भारत का लुर्सन कहलाने का गौरव हांसिल है। तेज गति से दौड़ते विकास के इस दौर में। हमारी राजधानी भी अछूती नहीं है। हॉल ही के वर्षों में। इस शहर ने भी। विकास और सुंदरता के नये आयाम छुएं हैं। और अब। नवनिर्मित बी.आर.टी.एस. पर हर तीन मिनट में। सिटी परिवहन की सुविधा देकर। 

 सरकार। इस शहर के माथे पर नयी ऊंचाईयां लिखने जा रही है। कॉरिडोर पर चलने वाली इन बसों के नाम रखने को लेकर। नागरिकों से सुझाव मंगायें गये हैं। मैं । भोपाल कॉरिडोर पर चलने वाली इन बसों का नाम लुर्सन सिटी एक्सप्रेस रखने का सुझाव देना चाहूंगा। इसके पक्ष में मेरे 11 तर्क पेश है   :-
1.  लुर्सन विश्व का सबसे सुंदर शहरों में से एक  है। ये सिटी यहां पाये जाने तालाबों के कारण सुंदर और सुरम्य आकार लिए हुए है। ऊंची-नींची पहाड़ियों पर बसी झीलों की नगरी भोपाल को भी भारत का लुर्सन कहलाने का गौरव हांसिल है। 
   2. लुर्सन नाम हमारे शहर के तालाबों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए हमें प्रेरणा देता रहेगा।
3.  ग्लोबल सिटी बनने की ओर कदम बढ़ाती हमारी भोपाल सिटी। लुर्सन नाम चर्चित होने के बाद। हमें भोपाल को लुर्सन के समान सुंदर, हराभरा, नियोजित, साफ सुथरा और अनुशासित शहर बनाने के संकल्प की हर पल याद दिलाता रहेगा।
     4.  मैने देश अनेक शहर देंखे। मगर मुझे कोई शहर नहीं भाया। बस अपना लुर्सन ही सबसे बेहतर लगा। शायद इसी कारण। आज भोपाल देश में सबसे पसंदीदा शहर बन गया है। इसी के चलते शहर में रियल स्टेट के दाम आसमान छू रहे है। हर कोई भोपाल में बसना चाहता है। 
           
5.  अन्य शहरों के तुलना में। राजधानी में लूटपाट, चोरी-चकाड़ी, जेब कतराई, यात्रियों को गुमराह करने वाली चिरकुटाई जैस दैनिक अपराध ना के बराबर है। जो हमारे शहर के व्यक्तित्व को सुंदर बनाते है।
6.  राजा भोज की सुंदर समृद्ध संस्कृति की अमिट छाप भी हमें पीढ़ी-दर पीढ़ी संस्कारों का मार्ग दिखाती रहेंगी। ज्ञान। जो सबसे सुंदर है। राजा भोज उसके सबसे उपासक थे। माँ सरस्वती, वागदेवी उनकी आराध्य थी। वहीं नवाबों की रियासत रहे। इस शहर पर मुगल कला के साथ-साथ। तहजीब का विशेष प्रभाव। आज भी शहर को एक अलग पहचान दे रहा है। बस यहीं भाई-चारे और आपसी मेलजोल की ये सुंदरता। हमें कोई सुंदर नाम रखने के लिए विवश करती है। और उचित भी है। क्योंकि सत्य ही सुंदर है। बाकी सब झूठा। और यहीं वो हमारी धरोहर है। जो निरंतर पर्यटकों को भोपाल आने के लिए लालायित करती रहेंगी।
 7.  लुर्सन नाम को पब्लिसिटी देकर। हम भोपाल के नागरिकों को। हमारे शहर को लुर्सन के समान सुंदर बनाने के लिए। संकल्प दिला सकते है। हर व्यक्ति को एक पौधा लगाकर। शहर को सुंदर बनाने की शपथ दिला सकते है। जनता के साथ सरकार को भी। प्लांटेशन के लिए। शहर में युद्ध स्तर पर एक अभियान चलाना चाहिये। इससे कॉरिडोर बनाते समय हुए। पेड़-पौधों के विनाश की पूर्ति भी होगी। क्योंकि शहर में कॉरिडोर तो बन गया। लेकिन हमारे शहर की। पहले वाली हरियाली गायब होने के बाद। शहर उजाड़-वावरा लग रहा है। हरियाली की पूर्ती और किसी के लिए नहीं। हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है।
8.  सरकार। झीलों के शहर लुर्सन को सामने रख। विस्तारित हो रहे शहर में। नये तालाबों के बनाने का प्रोजेक्ट चलाने के लिए। प्रेरणा ले सकती है। इससे शहर सुंदर और रमणीय बनेगा।
9.  भोपाल के विकास। या सुंदरता की बात हो। और नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर का नाम। याद ना किया जाय तो। बेमानी सा लगता है। गौर साहब के। इस सुंदर शहर को। सुंदर बनाने के सुंदर सपने। और सुंदर प्रयास।

 नगर को पेरिस बनाने का। उनका सपना। और अब सुनने में आ रहा है। भोपाल को मेट्रो ट्रेन देकर ही गौर साहब राजनीति से सन्यास लेंगे। हमारे नगरीय प्रशासन मंत्री के। इन सुंदर विचारों को। सुंदर आकार देने के लिए। शहर के सुंदर परिवहन का नाम भी। सुंदर ही होना चाहिये। ऐसे में। राजधानी के बी.आर.टी.एस. पर दौड़ने वाली। इन बसों का नाम। लुर्सन सिटी एक्सप्रेस ही बेहतर रहेगा। जो हमारे शहर को सुंदर और सुरम्य बनाने के लिए। हर पल प्रेरित करता रहेगा। 
       10.    कहते है। एक जूनियर के लिए। उसके सीनियर के घर से अच्छा। कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं होता। शायद यही वो बात है। जो हमारे शहर की महापैर। श्रीमती कृष्णा गौर को प्रेरित करती है। महापौर कृष्णा गौर भी। विगत चार सालों से। शहर को सुंदर आकार देने में। कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। गौर साहब की भावी उत्तराधिकारी। कृष्णा गौर को भी। बी.आर.टी.एस. बसों का ये नाम। शहर को। लुर्सन सिटी की तरह सुंदर बनाने के लिए। आगे भी प्रेरित करता रहेगा।
      11.       सबसे बढ़कर। हमें इन बसों में चलने वाले यात्रियों के साथ। स्टाफ के द्वारा किये जाने वाला व्यवहार। भी सुंदर बनाकर। यहां आने वाले। रहने वाले। लोगों को एक सुंदर संदेश देना होगा। ताकि। शहर की तहजीब की चर्चा। दूसरे शहरों में हो।
 देखने में आया है। पहले जब पर्पल बसे नहीं थी। तब प्रायवेट बस वाले। यात्रियों से बहुत ज्यादा। बदतमीजी करते थे। लेकिन जैसे ही। ये लाल बसे आयी। प्रतिस्पर्धा बढ़ी। उनकी सवारी कम हुई। तो प्राइवेट बस वालों का व्यवहार। जनता से मधुर हो गया। अब इसका दूसरा दुखद पहलू सामने आया है। अब लाल बस वाले जनता से दुर्व्यवहार कर रहे है। यहां तक की। हाथ उठाने में भी देर नहीं लगाते। सुंदर संस्कारों के। इस शहर में। सभी के सम्मान की रक्षा भी सुंदर होना चाहिये।
( इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

Monday 8 April 2013

दीदी आयी, खुशियां लायी

उमा श्री भारती को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने पर हार्दिक बधाई


दीदी आयी, खुशियां लायी। आज हम सभी बीजेपी कार्यकर्ता खुश ही नहीं, गदगद हैं। हम सब भूल चूंके हैं। उस दुस्वप्न रूपी राजनीतिक वीथिका को। जिसकी पीड़ा से हम कभी गुजरे हैं। हम हमारे सामने  विपक्षी दल कांग्रेस नहीं ठहर पायेंगा। अब तीसरी बार भी एमपी में बीजेपी को विजय पताका फहराने कोई नहीं रोक सकता। अब हम सब एक हैं। हमारे परिवार की क्षरण हुई ताकत फिर से परिपूर्ण हो गई। ऐसे लग रहा है। मानों। दीदी के आते ही आज फूल खिल रहे हैं। हवा सौंधी खुशबू बिखेर रही है। मातृ भूमि इठला रही हैं। पूर्वज पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल जी परिवार के सभी सदस्यों के सर पर आशिर्वाद का हाथ रख आत्मीय सुख महसूस कर रहे हैं। परिवार फिर से अपने मूल आकार में आया है।
कभी संघ परिवार की उच्छश्रंखल बेटी कही जाने वाली बेटी। अटल-अडवाणी की लाड़ली। ने भी बीजेपी के दिग्गजों के साथ। पार्टी को अपने पसीने सींचकर। अपने अदम्य साहस की खाद देकर। बीजेपी परिवार को बड़ा किया। भारत का जो नागरिक एक बार बीजेपी की विचारधारा से जुड़ जाय। उसके लिए। फिर से किन्हीं दूसरे विचारों को आत्मसात कर पाना कठिन ही नहीं। दुष्कर हो जाता है। याद है। मुझे वो दिन। जब उमा श्री भारती राम के दरबार में मथ्था टेकने पैदल निकली। जंगल-पहाड़, दुर्गम इलाके। दिसंबर-जनवरी की कड़ाके की ठंड।
पांव में छाले-फफोलें। ना कोई रक्षा। ना कोई सुरक्षा। इन्हीं राहों पर वो भी देखा। दीदी के लिए पलक-पावड़े बिछाते लोग। उमड़ा जनसमूह। फिर। कभी अदम्य राष्ट्रीय साहस की अगुवाई करने वाली। ये निश्चल राष्ट्र भक्त। निकल पड़ी। कांग्रेस की गलत नीतियों से देशवासियों को आगाह करने। भारत बचाओं यात्रा पर। इस दौरान भी जनता ने इस नेत्री का साथ नहीं छोड़ा। चाहे वो विदेशी वंशवाद को विरोध हो। या राम सेतु को बचाने सबसे पहले रामेश्वरम् पहुंचना। विदेशी वंशवाद को रोकने तो ये किसे दरवाजे मथ्था टेकने नहीं गईं। चाहे वो कट्टर विरोधी ही क्यों न हो। मुलायाम सिंह जैसे ठेठ की झिड़कन।
तिरष्कार तक को शिरोधार्य किया। विचारधारा के प्रति निष्ठा पर शक की तो कोई गुंजाईश ही नहीं। अब किवदंती बन चुके वनवास काल के। मुझे वो भी पल याद है। जब अपनों के विरोध में नारे लगाये जाते। तब दीदी हमें कड़ी हिदायत देती। हमारे लिए। बीजेपी कार्यकर्ता सबसे पहला आदरणीय है। हमारी मंजिल एक है। हम वो एक है। आपसी विचार-विमर्श के समय। बैठकों में। अपनों की पुरानी यादों में खो जाती। सुनाने लगती वो पल-किस्सें। जिन अपनों की बीच रहकर उन्होंने संघर्ष के आदर्श उकेरें।
हमें महसूस होती। तो बस एक ही बात। बिछोह की पीड़ा। उसके अंदर समाया। विचारों को आकार देने में बहाया हजारों-लाखों लोगों का खून-पसीना। अंदर ही अंदर कचोटता एक आत्मबोध। असहनीय पीड़ा। एक ओर नियति की भटकाईं राहें। तो दूसरी ओर हमारे घर की ओर उठती उंगलियां। आज बीजेपी के सभी कार्यकर्ता खुश हैं। आभारी हैं। हमारे सभी वरिष्ठों के प्रति जिन्होंने हमें एकाकार किया। ना कोई द्वेष। ना कोई ईर्ष्या। ना कोई शिकवा-शिकायत। ना कोई छोटा ना कोई बड़ा। विचार और संगठन सर्वोपरि। यही हमारे आदर्श शिक्षक।
 बस सबके सामने मछली की आंख। जिसे इस साल होने वाले विधान सभा चुनावों। और आने वाले साल 2014 के आम चुनावों में भेदना है। अब विरिष्ठों से एक ही विनम्र गुजारिश। एमपी की बेटी। हम सबकी प्यारी दीदी को। अपने गृह राज्य आने पर। वही सरोकार। वही आतिथ्य मिले। जो अन्य समकक्षों को प्राप्य हो। किसी प्रकार का कोई। अछूतवाद नहीं। कोई को किसी से डर नहीं। यहीं हमारे वरिष्ठों का हम सब कार्यकर्ताओं के लिए आशीर्वाद होगा। 
हम सब कार्यकर्ता गदगद होंगे। इस पहल से विचार, एकाकारिता और संगठन की सर्वोपरिता का संदेश मिलेगा। देश भक्ति की जुनूनी नेत्री। हम सबकी दीदी। उमा श्री भारती को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये जाने पर सभी वरिष्ठ नेताओं के प्रति हम सबका आभार.........।
( इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय , इदम् न मम्। )
http://aajtak.intoday.in/livetv.php

Saturday 6 April 2013

भारतीय जनता पार्टी स्थापना दिवस


6 अप्रेल 2013 पर विशेष


बीजेपी एक लंबी राजनीतिक यात्रा पूरी कर। आज अपना स्थापना दिवस मना रही है। फिर आज बीजेपी असमंजस भरी राहों पर खड़ी है। जहा से सही रास्ता चुनने की चुनौती उसके सामने खड़ी है। इस साल 14 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव। और अगले साल देश में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव बीजेपी ही नहीं देश की जनता के लिए भी अहम मोड़ लाने वाले है। भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी आपे से बाहर हो रही है। तुष्टीकरण की राजनीति अंग्रेजों से भी आगे जाने को बेताब है। अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तेज करवट ले रही है। कई देशों की अर्थव्यवस्था डावाडोल हो रही है। सुपर पॉवर कही जाने वाला अमेरिका तक जवाब दे रहा है। ऐसे में हम भारत के लोग। यूपीए सरकार के विकल्प के तौर पर एनडीए की ओर ही टकटकी लगा सकते हैं। 
विडम्बना कहों। या बड़ा परिवार। बीजेपी आज तक नेतृत्व की स्पष्ट अवधारणा नहीं अंगीकार कर पायी। बस ऊहापोह ही बार-बार उसे ले डूबी। अपने जन नेताओं को वो आगे नहीं बढ़ा पायी। हां इस बार जरूर मोदी गीत गाएं जा रहे हैं। उस पर भी आशा के साथ शंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं। कुल मिलाकर भारी रिस्क। भारत गठबंधन की राजनीति की गिरफ्त में है। ऐसे में किसी दल के लिए अपने बूते सरकार बनाना एक सपना ही है। अब एक सवाल सबके दिमाग में कौंध रहा है। जो जुबा नहीं आ पा रहा है। नरेन्द्र मोदी की दबंग कार्यशैली कहो। या प्रभावशाली व्यक्तित्व। या फिर वन मैन शो। ऐसे में कैसे। अन्य दल बीजेपी की छत्र छाया में आयेंगे। एक मोदी की बहु प्रचारित तथाकथित सांप्रदायिक छबि। तो दूसरी ओर एकला चलों रे की नीति। इसके संकेत मोदी को बीजेपी संसदीय बोर्ड में लेने के बाद बनाई गई राष्ट्रीय कार्य समिति की सूंची से भी मिल रहे है। वहीं गुजरात में इतनी देर से लाया लोकायुक्त बिल भी मोदी की किरकिरी कर रहा है। भाई हम क्लीन मैन है तो डर कैसा ? लगता है अटल जी की निश्चल राजनीति का सानी अभी बीजेपी नहीं है। ना कोई डर। ना कोई लाग लपेट। ना कोई मोह।

ऐसे में घटक दल एनडीए से सर्व स्वीकार्य नेता की मांग कर सकते है। बीजेपी के झुंकने की नौबत आती है। तब सुई पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ आकर अटक सकती है। घटक दल शायद ही ये पाशा फेंकने से चूंके। कभी बीजेपी का थिंक टैंक कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य की बात में लोगों को दम नजर आने लगे। इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
कांग्रेस तो ताक में बैठी है। उसके पास नेता के मामले पर कोई ऊहापोह नहीं। कोई असमंजस नहीं। देश या गुणवत्ता की परवाह किए बगैर। अंध भक्त बन। वंश विशेष की लाठी पकड़े है। एनडीए के सबसे बड़े घटक दल युनाईटेड जनता दल ने तो अपना तुरूप का पत्ता चल ही दिया है। नीतीश कुमार का कहना साफ है। जो उनके राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देंगा वो उनका साथ देंगे। उन्हें किसी से परहेज नहीं है। 
कांग्रेस नीतीश की इस चाल को अपनी बोतल में उतार चुकी है। रही बात। चंद्र बाबू नायडू की तेलगुदेशम, ममता की तृणमूल कांग्रेस, जयललिता की एडीएमके जैसे बड़े साथियों की। अभी यह प्रश्न अनुत्तरीत ही है कि इन दलों के महत्वाकांक्षी नेता मोदी की हेकड़ी सहन कर पायेंगे या नहीं ?  ऐसे में यदि आडवाणी जी की उम्र आड़े आती है। तब भी। चुनाव पूर्व। यदि एनडीए अपना नेता घोषित किए बिना मैदान में उतरने के लिए सहमत हो तो। वो भी समय की मांग हो सकती है। चुनाव बाद एनडीए बहुमत में आती है। तब नेता का चुनाव का चुनाव फिर दूभर हुआ तो। बीजेपी अपने किसी मुख्यमंत्री का नाम भी बढ़ा सकती है। चाहे वो शिवराज सिंह चौहान या रमण सिंह भी सकते हैं।

आने वाले दिनों में बीजेपी को। अपने प्रशंसा गीत गाने के साथ-साथ। हर कदम फूंक-फूंककर रखना है। नेता घोषित करने का मसला उसके लिए दिनो-दिन नाजुक बनता जा रहा है। आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए इस संवेदनशील मुद्दे को हल करना चुनौती भरा होगा। जो पार्टी की दशा और दिशा तय करेगा। अगर बीजेपी ने संभलकर सधे कदम नहीं उठाएं। तब आखिर में कांग्रेस की ही पौ बारह हो तो। अचंभित होने वाली। जैसी कोई बात नहीं होगी।
    (इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय , इदम् न मम्)
http://indiatvnews.com/livetv/ 

Saturday 23 February 2013

पिता का पत्र पुत्री के नाम- 01


पिता का पत्र पुत्री के नाम- 01


राजा बेटी कंचन
शुभ आशिर्वाद


आपकी मेगा सिटी पूना में मौसम के मिजाज कैसे है ? पर्यावरण में आये इस अजीबो-गरीब परिवर्तन ने तो समूची मानवता के अस्तित्व को ही सांसत में डाल रखा है। वहीं इसके समानांतर भौतिक चकाचौंध की भागदौड़ ने समाज के मूल्यों को गौण बना दिया है। पैदा हो गई है एक अंतहीन दौड़। न रास्ता क्लीयर है, और न ही मंजिल। बस आगे एक खोह इंतजार कर रही है।
मेरी सीईओ बेटी ! आपने मेरी ब्रिलियेंट लाड़ली होने का सबूत दिया है। मेरा मन आत्म संतुष्ट है। बस अब मेरी चाहत है। बेटी गृहस्थ जीवन में प्रवेश करे। साथ में मूल्यों की धरोहर लेकर। वो अपने लिए दूल्हा ढूंढे। अहम को दरकिनार कर। उसे रिश्तों के चयन में अपने से कम ओहदे वाले लड़के का चयन करने में कोई हिचकिचाहट महसूस न हो। मुझे लगता है बराबरी का दर्जा पाती बेटी को भी इस बात का ध्यान रखना है।
जो गल्ती पुरूषों ने महिलाओं को दोयम दर्जा देकर आज तक की। वो अब हमारी जांबाज बेटियां न दोहराएं। अन्यथा एक गल्ती को सुधारने के लिए दूसरी बुराई का जन्म होगा। और हम पायेंगे समाज फिर वहीं का वहीं खड़ा है। जहां से हम चले थे फिर वहीं पहुंच गएं। ऐसा करने से एक कमजोर परिवार का उद्धार होगा। साथ ही  समाज में आर्थिक संतुलन भी कायम होगा। हमारा राष्ट्र एक स्वस्थ समाज के लिए जाना जायेंगा। ऐसा मेरा मानना है। आगे आपकी मर्जी......... !

                                    आपका पापा
ABP NEWS LIVE TV
  

Sunday 27 January 2013

सार्वजनिक जीवन में सेक्स स्कैण्डल


vfHkO;fDr
lkoZtfud thou esa lsDl Lds.My
^^ vo/kkj.kk] dkj.k vkSj ifjlhek ^^
    
           lsDl  Hkkjrh;  lekt  esa viuh v|ru vo/kkj.kk dks ryk’k jgk gSA jktuhfr es ;g fo"k; vkSj jkspd rFkk laosnu’khy  gks tkrk gS A vkSj mB [kM+k gksrk gS lekt ds fijkfeM ds f’k[kj ij cSBs O;fDr ds fy, loksZPp uSfrd ekunaM LFkkfir djus ds fy, vafre mRrjnkf;Ro dk iz’u \ fdlh O;fDr ds fy, rfud Hkh Hkz"V vkpj.k ugha djuk mlh izdkj vlaHko gS tSls TkhHk ij j[ks ’kgn dk Lokn ugha ysuk A lekt tSls&tSls lH; gksrk x;k] Hkksx&foykl dh izkphu vo/kkj.kk lekt ds uSfrd ca/kuks es tdM+rh xbZ ] vkSj lH; lekt dk pksyk vks<s+ vk/kqfud le; esa blds u,&u, Lo:Ik mHkjsaA fo’o ds lcls ifjiDo iztkra= vesfjdk dh laln dkaxzsl  us lsDl Lds.My esa iwoZ jk"V~zifr fcy fDyaVu ij egkfHk;ksx dks fljs ls [kkfjt djrs gq, bl vo/kkj.kk dks LFkkfir fd;k fd lkoZtfud O;fDr dks dsoy vius dRrZO; fuoZgu es ykijokgh ] Hkz"Vkpkj ;k dkuwu ds mYya?ku ij gh nafMr fd;k tkuk pkfg,] vU;Fkk ugha A vfr laosnu’khy jktuhfrd thou ds ekeys esa  Hkkjrh; lekt ds ifjis{; dks /;ku es j[krs gq, nksgjs ekunaM dk  js[kkadu vkSj lhekadu vko’;d gSA ^Loigpku * ekuo vko’;drkvksa dk pje fcanq gSA ;g O;fDr dks viuh {kerk ]jpukRedrk] ltZu’khyrk vkSj miyfC/k ds ek/;e ls viuh lkeZF; dks igpkuus vkSj vius y{; dks izkIr djus dk lqvolj iznku djrh gSA bl vko’;drk dh iwfrZ O;fDr dks dke rFkk thou esa larqf"V iznku djrh gSA O;Lrrk vkSj larqf"V ds dkj.k rhoz bafnz; vifjfer ÅtkZ dk lap;u gksrk gS A ftldk mRltZu ,d izkd`frd izfdz;k gSA
jktuhfr esa  ;kSu  ’kks"k.k ds  c<+rs vkjksiks dh la[;k ds ihNs dkQh gn rd efgykvks dh mPp egRokdka{kk vkSj lh/ks ^tEi^ djus dh fyIlk Hkh dgha u dgha nsk"kh gSA efgykvksa dks ’kkVZdV u viuk dj viuh esgur ls usr`Ro {kerk fodflr dj vkxs c<+uk pkfg,A Hkkjr dh e;kZfnr laLd`fr bl  y{e.k js[kk dks ikj djus dh btktr ugha nsrh gS vkSj lkoZtfud thou esa lqfprk dks c<+kok nsrh gSA fdlh Hkh cM+s ls cM+ss O;fDr dks bl v{kE; vijk/k ds fy, ekQ ugha fd;k tk ldrk A fQj Hkh ,sls fo"k;kas ij lko/kkuh cjruh pkfg,A ges /;ku j[kuk gksxk fd dgha lkoZtfud thou eas foeq[krk izos’k u djasA vkt Hkh lkoZtfud thou es vusd vuqdj.kh; yksx ekStwn gS ftudh la[;k c<+kus ij tksj nsus dh vko’;drk gSA 

http://aajtak.intoday.in/livetv.php

Thursday 24 January 2013

स्वच्छ प्रशासन का विकल्प: भावनात्मक प्रतिबद्धता


Lkkef;d fn’kk
LkanHkZ% LoPN iz’kklu
fodYi Hkjkslsean iz’kklu dh HkkoukRed izfrc)rk

C;wjksdzslh ,d tfVy vkSj vusdkFkhZZ rFkk fnypLi ifjgkliw.kZ ’kCn ds :Ik esa  Qzkalhlh dzkafr ls iwoZ O;oLFkkxr ^^cqjkbZ^^ dk Ik;kZ;  cudj mHkjkA rRi’pkr iwjs fo’o esa bldk izpkj izlkj blh :Ik es gqvkA dgk tkus yxk fd C;wjksekfu;k uked chekjh us Qzkal eas dgj <k j[kk gSA bldh vuqHkwfr lekt esa vHkh Hkh eglwl dh tk jgh gS vkSSj ge iw.kZ nks"k eqDr ugha gks ik,A
^^’kkldh; inkf/kdkjh ,slk O;fDr gS tks vPNh iks’kkd /kkj.k fd, gq, izkr%dky ukS cts ls lk<s+ nl cts ds e/; fdlh le; dk;kZy; vkrk gSA mlds dk;kZy; esa vkus dk le; in lksiku O;oLFkk es mldh fLFkfr ,oa osru ds vk/kkj ij fu/kkZfjr fd;k tkrk gSA og ,sls Ik= fy[kus esa viuk le; O;rhr djrk gS tks dze’k% vLi"V gksrs tkrs gS ,oa vuqHkotU; Ik)fr dh iw.kZrk ds QyLo:Ik muesa ekuoh; LoHkko dh ljlrk ‘’kq"d gksrh tkrh gSA 
og izR;sd fu.kZ; dks nwljs ij Vkyus dk iz;Ru djrk gS] ,oa fdlh fu.kZ; ij igqaps fcuk yach&yach fVIi.kh fy[krk jgrk gS] ifjfLFkfr;ks ds cnyus dh vk’kk esa og viuk fu.kZ; LFkfxr djrk jgrk gS ;k izkFkhZ uSjk’; ,oa foyEc ls rax vkdj Lo;a gh vkuk can dj nsrk gSA ;fn fdlh dkj.ko’k ;k vlaHkkfor ifjfLFkfr ds dkj.k mls dksbZ fu.kZ; ysuk vko’;d gks gh tkrk gS rks lacaf/kr Qkby ds u feyus ;k [kks tkus ds dkj.k og vkjke dh lkal ysrk gS] ,oa vius nSfud dk;kZs esa yx tkrk gSA 
og vius mPpkf/kdkfj;ksa ds izfr vkKkdkjh ,oa v/khuLFkksa ds izfr vlfg".kq gksrk gS] vkSj volj iM+us ij ’kssDlih;j ds dFkukuqlkj ^in ds vgadkj* dks Hkh O;Dr djrk gSA vU; lHkh lg;ksfx;ksa dks viuk izfrLi/khZ ekurk gSA turk ds lnL;ksa dks og fxjs gq, pfj= ds ,sls O;fDr ekurk gS ftudh f’kdk;rsa ,oa rdkZs dks vlk/kkj.k lfg".kqrk ds dkj.k gh og lgu dj ikrk gS] vkSj ^vfr mRlkgh ugha * dks ’kkldh; deZpkjh funsZ’kd ds :Ik es ekurs gSA 
nks ?kaVs ds e/;kà Hkkstuksijkar og fofHkUu dk;kZs dh ;kstuk,a cukrk gSA ftuds dkj.k mlds v/khuLFk ikap cts ls iwoZ vius dejks dks ugha NksM+ ldrs ] tcfd og Lo;a blds iwoZ gh mB dj pyk tkrk gSA ?kj tkrs gq, ekXkZ esa og ,fLizu dh fMfc;k ysrk tkrk gS vkSj ?kj igqap dj og cPpksa ij ‘’kss[kh c?kkjdj  ,oa iRuh }kjk  rS;kj Hkkstu esa nks"k fudkydj larq"V gksrk gSA ** ;gh og  lq/kkj  dk rduhfd canq gS ftlesa dlkoV ykdj pqLrh vkSj LQwfrZ ds lapkj dh vko’;drk gSA ;gh og izo`fRr gS ftlus Lora=rk Ik’pkr cg fudyh lkoZtfud {ks= dh osxorh dks futhdj.k dh vksj eqM+us ij foo’k fd;kA
                fdlh Hkh ns’k dk lafo/kku pkgs fdruk gh vPNk D;ksa u gks ]mld ea=hx.k fdrus Hkh ;ksX; gks fcuk n{k iz’kkldksa ds ml ns’k dk ’kklu lQy ugha gks ldrkA yksd lsok ’kklu Ik)fr esa lokZf/kd tkunkj ’kfDr’kkyh rRo gSA iz’kklu ljdkj ds fy, iFk&izn’kZd] fe= vkSj nk’kZfud rhuksa dh Hkwfedk vnk djrk gSA iz’kklu ^ikyus ls ysdj dczxkg* rd ekStwn jgrk gS A iz’kklu lekt esa fLFkjrk LFkkfir djus okyh ’kfDr ds :Ik es dk;Z djrk gSA ;kstukvksa dh lQyrk ds fy, ,d LoPN] dq’ky ,oa fu"Ik{k iz’kklu dk gksuk vR;ar vko’;d gSA iz’kklu gekjs leLr thou vkSj dk;kZs ij vkPNkfnr gks pqdk gSA rFkk gekjh lH;rk dk ewyk/kkj cu x;k gSA yksd lsokvks ds ek/;e ls ljdkj vius y{; dks izkIr djrh gSA 
vkt iz’kklu lH; thou dk j{kd ek= gh ugha gS oju~ og lkekftd U;k; rFkk ifjorZu dk Hkh egku lk/ku gSA vkt iz’kklu ,d uSfrd dk;Z gS vkSj iz’kkld ,d uSfrd vfHkdrkZ A iz’kklu ljdkj ds Lo:Ik ds lEca/k esa ^LVhy Qzse* dh Hkkafr gSA dq’ky iz’kklu ljdkj dk ,dek= og voyac gS ftldh vuqifLFkfr esa ’kklu {kr&fo{kr gkss tkrk gSA ,d vPNk ’kklu cgwr ls rRoksa ds la;kstu ls curk gS ]tSls& usr`Ro ]laxBu ] foRr] vkn’kZ fof/k;ka vkSj izfdz;k,a fdUrq fdlh Hkh nwljs rRo ls c<+k rRo gS & ^ekuo ’kfDr * A vkt iz’kklu izR;sd ukxfjd ds v/;;u ] fparu vkSj euu dk fo"k; gS ]Hkys gh og Nk= gks ;k etnwj ] fopkjd gks ;k deZpkjhA lHkh O;fDr mRre thou fcrkuk pkgrs gSA blesa iz’kklu cM+h egRoiw.kZ Hkwfedk fuHkkrk gS A
   gekjh ‘’kklu  iz.kkyh  es  ukSdj’kkgh  vR;f/kd ’kfDr’kkyh gSAtks ea=h; mRrjnkf;Ro rFkk v/khuk;dRo ds vkoj.k esa Qwyrh&Qyrh gS A ;g ^vfXu* dh rjg ,d lsod ds :Ik es rks cgwr mi;ksxh fl) gksrh gS ijarq tc og Lokeh ;k ekfyd cu tkrh gS ]rks ?kkrd fl) gksrh gS vkSj c<+dj QzasdsLVhu ds nkuo dh HkkWfr dHkh&dHkh rks ;g vius tUe nkrk dks gh fuxyrh gqbZ izrhr gksrh gS] vkSj Mj yxus yxrk gS fd jfp;rk dks gh u vkRelkr dj ysaA dgk tkrk gS lekt dY;k.k jkT; esa tura= ,d /kks[kk gS okLro esa ’kklu rks ukSdj’kkgh dk jgrk gSA lkS eas ls fuU;kuos ekeyksa esa ea=h yksd lsod dh jk; eku ysrk gS vkSj fu;r LFkku ij gLrk{kj dj nsrk gSA
Hkkjrh; lanHkZ  esa ukSdj’kkgh  jktuhfrd fopkj/kkjk ;k uhfr;ksa ds izfr izfrc)rk ds LFkku ij ns’k ds lafo/kku ,oa vius dRrZO;ksa   ds izfr ltx gksrh gSA ijarq O;kogkfjd rkSj ij HkkoukRed yxko dk vHkko iz’kklu dks ;fn ’kwU;oknh ugha rks vuqmoZj cuk nsuk vo’; gSA ;fn ofj"B yksd lsodks dk lewg jktuhfrd rVLFkrk dk vuqxeu djrk gS rks og uiqaldks dk ,d lewg cu tkrk gS dksbZ Hkh jktuhfrd dk;Zikfydk vius gks’kgok’k esa ,sls fdlh O;fDr dks dksbZ in ugha lkSaisxhA HkkoukRed yxko ls oafpr deZpkfj;ksa dh ljdkj ,sls MkDVjkas vksj ulkZs ds leku gS ftUgsa bl ckr dh fpark ugha gS fd muds jksxh ejrs gS ;k thrs gSA vkSj tks dsoy ;gha /;ku j[krs gS fd muds /ka/ks dh mfpr izfdz;kvksa dk vuqlj.k fd;k tkrk gSA vkt lHkh iz’kkld jktuhfrd gS D;ksafd os yksdfgr ds izfr mRrjnk;h gksrs gSA ;kstuk dk vPNk izk:Ik mldh lQyrk dh xkjaVh ugha gSA 
lQy dk;kZUo;u gh vc fu.kkZ;d Ik{k ekuk tkrk gSA ljdkjh vfHkys[k fo’ks"kKksa }kjk cukbZ xbZ lqanj ;kstukvksa ls Hkjs gS] yssfdu os lc dk;kZUo;u esa Mxexkrh izrhr gksrh gS vkSj dkxth cu dj jg xbZ gSA ge d`f"k Lrj ls vkS|ksfxd Lrj dh vksj c<+ jgs gSA iz’kklu esa lgkuqHkwfr ]osnuk] mnkjrk] fu"Ik{krk ds lkFk&lkFk ekuoh; Hkkouk, Hkh vo’; mifLFkr jguk pkfg,A iz’kkld dk izHkko’kkgh O;fDrRo gksuk pkfg,] yksxksa ds lkFk pyus dh ;ksX;rk gksuk pkfg,] usr`Ro ds xq.k gksus pkfg, vkSj vuqfpr nsjh ds fcuk dkQh izfr’kr Bhd fu.kZ; ysus dh ;ksX;rk gksuk pkfg, rFkk ljdkjh {ks= es jktuhfrKksa ds lkFk dke djus dh izo`fRr Hkh mlesa gksuk pkfg,A
                fod`fr ,oa ifjgkl ds dkj.k C;wjksdzslh ‘’kCn dk vFkZ xksyeky ] LoPNanrk ] viO;;] gLr{ksi ]oxhZdj.k ,oa ,d:irk fudkyk tkus yxkA ekuk fd ukSdj’kkgh es dqN ,sls yksx gksrs gS tks ân;ghu ] LokFkhZ vkSj rkuk’kkgh izo`fRr ds gksrs gS ijarq budh la[;k cgqr FkksM+h gksrh gSA ukSdj’kkgh dk vkdkj vc bruk cM+k gks x;k gS fd mldks dkslus dk vFkZ lekt vkSj iwjs jk"V~z dks dksluk gksxkA uhfr rFkk iz’kklu jktuhfr ds nks tqM+ok cPps gS tks ,dnwljs ls vyx ugha fd, tk ldrsA ukSdj’kkgh dh lHkh fo’ks"krk,a feydj laxBu dks mPpre  ek=k esa dq’kyrk izkIr djus esa l{ke cuk nsrh gSA lsok,a /khjs&/khjs ;g lkspuk can djs fd os ckdh turk ls vyx ,d Js"B xqV ds :Ik esa gSA ^^C;wjksdzslh bt ukbnj ghjks ukWj foysu^^ vkSj tuizfrfuf/k ,d dIrkuA iz’kkldh; deZpkjh dks u, lekt dk izsj.kk L=ksr gksuk pkfg, vkSj mls izR;sd Lrj ij lq>ko ] izksRlkgu ,oa ea=.kk nsus vkSj lekt dh mUufr dh ckr djuh pkfg,A
¼ ys[kd ,d ldkjkRed jktuhfrd fpUrd gSA½

http://indiatvnews.com/livetv/