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Monday 12 May 2014

नरेन्द्र मोदी के ये तीन दिन

बना सकते है रोड मैप


यूपीए सरकार के दस साल शासन करने के बाद, मतदाताओं द्वारा विपक्ष को सत्ता सौंपने की स्वाभाविक प्रक्रिया कहों। या नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रबंधन का चमत्कार। या फिर भारतीय जनता पार्टी के लंबे संघर्ष के बाद, एक सशक्त विपक्ष के रूप में खड़े होना कहों। आंकलन का तरीका जो भी हो। लेकिन बीते कल, 12 मई के आखिरी दौर के मतदान के सम्पन्न होने के बाद नरेन्द्र मोदी का प्रधान मंत्री बनना लगभग तय हो गया है। बस 16 मई को मतगणना की औपचारिकता शेष बची है। ऐसे में 13, 14 और 15 मई के ये तीन दिन मोदी के जीवन में अहम ही नहीं है। बल्कि शायद ही लौटकर आयें। वे इन तीन दिनों के बाद दूसरा कार्यकाल लेकर आगामी दस सालों के लिए भी देश के प्रधान मंत्री के तौर पर काबिज हो सकते है। मोदी के लिए ये तीन दिन आराम-सुकुन भरें तो हो ही सकते है। साथ ही यही वो तीन दिन भी हो सकते है जो मोदी को भूत-भविष्य और वर्तमान के चिंतन का अवसर देने वाले है।
सबसे पहली बात तो संघ ने अपने संगठन सर्वोपरि के सिद्धांत को दरकिनार कर मोदी पर दांव खेल अपनी मूल्यवादी साख की तक चिंता नहीं की। अब मोदी के कर्तव्य में आता है, इसे बरकरार ही नहीं रखे बल्कि इसमें अभिवृद्धि भी करें। अपने राजनीतिक लक्ष्य को साधने अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी के दूसरे वरिष्ठ स्तंभ लालकृष्ण आडवाणी को तक को चुप करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। बस येन-केन प्रकरेण सत्ता तक पहुंचना ही लक्ष्य बना लिया। भले ही बीजेपी में व्यक्तिवाद ही क्यों न शुरू करना पड़े। नैतिक मूल्यों का जो झंडा देश में कभी स्वयं सेवक लेकर घूमते थे। वो अब आम आदमी पार्टी के लोग लेकर घूम रहे हैं। स्वतंत्रता के प्रारंभिक दौर के घोर अंधकार में जब कांग्रेस का देश में एकछत्र राज था, तब स्वयं सेवक ही थे जो आशाओं का एक टिमटिमाता दीपक हथेली पर जलाये हुए दर-दर पहुंचते थे। और आज उसी का नतीजा है, बीजेपी को देश की बागडौर पूरी तरह मिलने वाली है। महंगाई और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे इस देश में यही टिमटिमाता दीपक बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के हाथों में पकड़ा दिया है।
 इस सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश में कोई भी संगठन, देश के 80 फीसदी लोगों की संवेदनाओं को छूये बिना दीर्घजीवी, स्थिर और प्रजातांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता। पिछली सरकार के सुरक्षा और विदेश नीति पर ढुलमुल रवैये को एक स्पष्ट दिशा देनी होगी, जिसमें भ्रम की कोई गुंजाइश न हो। बल्कि अपने-आप में जन इच्छाएं समेटे होनी चाहिए। लंबे समय से गुजरात में बीजेपी संगठन की प्रजातांत्रिक कार्य शैली, स्वयं सेवकों की संख्यात्मक बढ़ोत्तरी, सूचना के अधिकार आरटीआई के क्रियान्वन और राज्य में लोक आयुक्त जैसी संस्थाओं की सक्रियता पर लगे प्रश्न चिन्हों को हटाना होगा। बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर संगठन सर्वोपरिता को कायम रखते हुए, उन्हें बीजेपी की उस दुहाई को भी जिंदा ही नहीं, बल्कि उसे फलने-फूलने का अवसर देना होगा, जो बीजेपी लंबे समय से सर्वाधिक प्रजातांत्रिक राजनीतिक संगठन होने की दुहाई दे रहा है।
 इसकी जगह व्यक्ति गुणगान और व्यक्ति सर्वोपरिता घातक होगी। अन्यथा नैतिक मूल्यों की झंडाबदर बीजेपी की चाल ही बदल जायेगी। इससे बीजेपी कांग्रेस की जगह ले लेगी। और आम आदमी पार्टी बीजेपी की जगह खड़ी नजर आ सकती है। विकास ऐसा होना चाहिये जो आम लोगों के दिलों को छूये ना की पूंजीपतियों तक ही नजर आयें। संगठन की सर्वोपरिता धरातल पर आकार लेना चाहिए। स्वयं सेवकों और कार्यकर्ताओं के भावनात्मक लगाव का विस्तार होना चाहिए।
महंगाई को कम करने सीधा तेज प्रहार हो। ताकि ये सरकार सीधे लोगों के दिलों पर राज कर सकें। भ्रष्टाचार के खात्में पर तो देश किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं करने वाला। पार्टी में अनुशासन के नाम पर किसी के साथ अन्याय न हो।हमारे वरिष्ठों का सम्मान इस प्रकार बरकरार रहे कि अन्दर ही अंदर हमारे कार्यकर्ताओं में विमुखता का भाव न घर कर जायें। हमें इस बात को नहीं भूलना होगा कि बीजेपी ही एक ऐसी पार्टी है जिसके कार्यकर्ता इसके लिए दिल से काम करते है। पूरी तरह प्रतिबद्धता के साथ। इसी का नतीजा है आज बीजेपी पूरे बहुमत के साथ देश की सत्ता संभालने को तैयार है।
 ये सब बीजेपी और स्वयं सेवकों के द्वारा नैतिक मूल्यों की अगवाई करने का ही नतीजा है। लेकिन अब आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को अपने पाले में करती नजर आ रही है। भले ही उसमें हमें कुछ शुरूआती बुराई नजर आती हो। जो कभी कांग्रेस ने हमारे भीतर देखी थी। जो भी कोई जमे-जमायें लोगों के विरोध में धारा के विरूद्ध चलने का प्रयास करता है।  उसके ऊपर ऐसे आरोप लगना एक स्वाभाविक है। कांग्रेस के एकछत्र युग में जब बीजेपी और स्वयं सेवक भी ऐसा कर रहे थे तो उनकी भी खिल्ली उड़ाई गई। अनेक यातनाएं सहन करनी पड़ी। अनेकों को अपनी जान यहां तक की परिवार तक गंवाने पड़े। तब जाकर आज हम यहां पहुंचे। इन सबके पीछे था आम लोगों को हमारे भीतर नजर आती अच्छाई, आशा की किरण। 
धीरे-धीरे जनमानस बीजेपी के साथ होता गया। पारदर्शिता, भ्रष्टाचार, महंगाई, संगठन का प्रजातांत्रिक स्वरूप, बुजुर्गों, स्वयं सेवकों, कार्यकर्ताओं का सम्मान। स्पष्ट-स्थिर सुरक्षा और विदेश नीति। आम लोगों के दिलों को छूता राजनीतिक परिवर्तन ही हमारे रोड-मैप का रास्ता हो सकते है। ये तीन दिन ही नरेन्द्र मोदी के लिए अपने अगले-पिछले, अच्छे-बुरें अनुभवों और गल्तियों के विश्लेषण से एक अच्छा चिंतन निकालने वाले साबित हो सकते है। फिर शायद, उन्हें सत्ता की आपाधापी से ऐसा समय न मिले। या फिर वे सत्ता की छाया में सब भूल जाये। अभी ह्रदय निर्मल है। बोझिल नहीं। ये कोई अकेले प्रांत गुजरात की बात नहीं। अब उनके हाथ में पूरा देश होगा। भारत की साख उनके जिम्मे होगी। वो सपना उनके हाथ में होगा जो कभी हजारों लाखों स्वयं सेवकों और बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने अपने बलिदान की कीमत चुकाकर देखा था।
 उबले हुए चने की जगह पानी में फूले चने खाकर घर-घर मूल्यों का संदेश घर-घर पहुंचाया। एक मूल्यवादी समाज को गढ़ने के सपने का प्रचार-प्रसा किया था। मोदी स्वयं एक स्वयं सेवक रहे है, जो इन बातों से अनजान कैसे हो सकते है। तो भी.... सत्ता पाई, काही मद ना होई......की कहावत को अपने आड़े आने से रोकना होगा। 16 मई को विजय घोष के साथ यही प्रतिध्वनित होना चाहिए। सबसे पहले भाजपा की जय हो......। उन बड़े बुजुर्गों के आशिर्वाद की जय हो......। जिन्होंने हमें ये विरासत सौंपी। उनके बलिदान की जय हो.....। लोगों के दिलों को जीतने वाले स्यवं सेवकों की जय हो.......। बीजेपी कार्यर्ताओं की प्रतिबद्धता की जय हो.........। उस जनता जनार्दन की जय हो.......। जो हमारी ओर आशा भरी नजरों से देख रही है। और इन सबके बाद अन्तत: नरेन्द्र मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व की जय हो......। जिसके सहारे हम एक सशक्त भारत गढ़ने जा रहे है।
(इदम राष्ट्राय स्वा: , इदम राष्ट्राय, इदम न मम्।) 

2 comments:

  1. नरेन्द्र मोदी ने इन तीन दिनों में अपने व्यक्तिगत, अपने साथियोंं और अनुषांगिक संगठनों के साथ एक समन्वित चिंतन किया। जिसे अब वे देश के प्रधान मंत्री के तौर पर उपयोग कर रहे है।

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