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Friday 17 October 2014

गलत कामों की आवाज ना बनें मतदाता ............. !

सार्वजिनक जीवन नैतिक मूल्यों के सहारे बिताया जाता है, जिसमें भौतिक वस्तुओं से विरक्ति सबसे ऊपर होती है। लोक कल्याण ही उसका नित्य कर्म होता है। देश की सारी जनता उसका परिवार। पूरी सार्वजिनक सम्पत्ति उसकी होती है। फिर संग्रह की आवश्यकता की उसे कोई आश्यकता नहीं रह जाती। इस तरह समाज का ये सेवक पूरी निग्रह होता है। उसके जीवन में संग्रह कोई स्थान नहीं रखता।
यही वे कारण सार्वजनिक व्यक्ति को सदियों तक याद किया जाता है। जगह-जगह उसकी मूर्ति लगाकर, सरकारी योजनाओं या संस्थाओं का नाम उस सार्वजिनक व्यक्ति के नाम पर रखकर उसे अमर बनाया जाता है। जो एक आम व्यक्ति को नसीब नहीं होता है। वो लुप्तप्राय जिन्दगी जीता है, और मरने के बाद भी उसे कोई याद नहीं रखता। लेकिन आज मोह सार्वजिनक जीवन में भी व्यक्ति को इन मूल्यों पर जीवन नहीं बिताने देता। वो अपने लिए या अपने सगे-सबंधियों के अतुल सम्पति एकत्र करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता। नैतिक मूल्य उसके सामने बौने और सामयिक तौर पर निर्थक हो जाते है।
इन बातों के होते हुए, यदि देश का मतदाता आंखें मूंदकर भष्टाचार करने वाले के पक्ष में आवाज उठाता है। तो मानसिक तौर पर विकसित हो रहे मतदाता के लिए इससे बढ़कर गलत बात क्या हो सकती हैंजनता के द्वारा ऐसा करने सार्वजिनक जीवन में सुचिता कैसे आयेंगी ?  कोई व्यक्ति यदि सार्वजिन व्यक्ति होते संयम खोकर इन नैतिक नियमों की सीमा रेखा को लांघता है, उसे दंड देने या न देने के लिए सम्बंधित अंगों को अपना करने देना चाहिये। अपराध को सजा होने के बाद, सार्वजनिक जीवन के दूसरे लोगों को आगाह करेगी। वे गलत कामों से दूर रहेंगे। बड़े-छोटे का भेद कम होगा। आम और खास दोनों को अपने गलत काम की सजा मिलेगी। सार्वजिनक जीवन में सुचिता आयेंगी।
सार्वजिनक जीवन में सुचिता लाने सरकार के तीनों अंगों को तत्परता और निष्ठा दिखानी चाहिए। कार्यपालिका और विधायिका के ढीले रवैये ने देश के लोगों में इस काम के लिए निराशा भर दी है। हां ! हॉल ही के वर्षों में न्यायपालिका ने इस गलत काम को लगाम लगाने सक्रियता अवश्य दिखाई है। उसके सामने कोई खास नहीं है। गलत काम करने की कोई मजबूरी नहीं। सब आम की तरह अंदर। रहना-खाना सबके साथ। अपराध की भनक लगते ही बिना समय गवाए व्यक्ति दरवाजे की पीछे। निष्पक्ष जांच होते तक अंदर कीजिए आराम। व्यक्ति विशेष ने सार्वजनिक जीवन का चुना है रास्ता। फिर डर कैसा अच्छे कामों से होना है उसे अमर। बुरे काम हैं गलत।
राजनीतिक मजबूरियों के चलते कहों या राजनीतिक के ढीले रवैये से सार्वजनिक जीवन में सुचिता लाने के काम तेज नहीं हो पा रहे हैं। कार्यपालिका और विधायिका सुचिता को जमीन पर नहीं उतार पा रही है। ऐसे में यदि न्यायपालिका सुचिता लाने सक्रियता दिखा रही है, तो इसमें गलत क्या है ?  न्यायपालिका के द्वारा देश की  जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करने के नाम पर उसे समय-समय पर विधायिका के लोगों द्वारा डटकारा क्यों जाता हैबनायी गई विधि की सीमा रेखा के अंदर उसे न्याय देने की हिदायत दी जाती है। माना विधि बनाना विधायिका का विशेषाधिकार है, जिसके सहारे वो न्यायपालिका को संयमित कर सकती है।
ऐसे में, विकल्प नहीं होने के कारण सार्वजनिक जीवन में सुचिता लाने के लिए न्यायपालिका ही सक्रियता दिखा रही है। न्यायपालिका ने हॉल ही के सालों में गलत कामों को रोकने जन इच्छा अनुसार अपने कर्तव्य को अमल में लाया है। न्याय पालिका की ही देन है कि उसने गलत काम करने वालों को सलाखों के पीछे धकेलकर मिसाल कायम की। पूर्व संचार मंत्री सुखराम, पूर्व संचार मंत्री ए. राजा, औम प्रकाश चौटाला, लालू प्रसाद यादव, बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य दिग्गजों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसे भी न्याय पालिका ने नहीं बख्शा।    दूर संचार घोटाला, कोल ब्लॉक घोटाला हो या फिर अन्य कोई बड़े से बड़ा घोटाला। न्यायपालिका ने सबका पर्दा फाश किया। अब 18 साल बाद ही सही। तमिलनाडु की पर्व सीएम जय ललिता की बारी आयी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब सीएम के पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति सलाखों के पीछे गया है। यही नहीं मामले में चार साल की कैद, आगामी 10 साल तक चुनाव लड़ने पर मनाही के साथ 100 करोड़ रूपये का रिकॉर्ड जुर्माना हुआ है। ऐसे में जनता द्वारा न्यायालय के काम में दखल देना और किसी का पक्ष लेना समझ के परे है। जूडिशियल को अपना काम करने देना ही ठीक है।
कार्यपालिका और विधायिका गलत कामों को रोकने गंभीर सक्रियता नहीं दिखा रही है। जो उसका एक पवित्र कर्तव्य है।  ऐसे में ! विकल्प नहीं होने के कारण उसे भरने के लिए मतदाताओं को ये काम करना है। हमें दिखा देना है, कि मतदाताओं की परिपक्व हो रही आयु गलत काम करने वाले किसी व्यक्ति का पक्ष कभी नहीं लेंगी। मतदाता कभी व्यक्ति विशेष के प्रति अंध भक्ति नहीं दिखायेंगे। देश की जनता ने सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति को युगों तक जीवित रहने के लिए अमरत्व की दौलत कमाने का मौका दिया। ये सबसे बढ़कर है। इसके बाद राह भटक उसने यदि कोई गलत काम किया है, तो वह आम की तरह सजा का भागीदार है। ताकि गलत काम को मिला दंड भविष्य के लिए एक संयम रेखा बनें।
हम युवा मतदाता तभी कहलायेंगे। जब किसी गलत बात की तरफदारी नहीं करेंगे। इससे हमारे देश का प्रजातंत्र एक नया आकार लेकर विश्व की अगुवाई करेंगा। दूसरों के लिए अनुकरण करने वाला बनेगा। ऐसा हम युवा होते मतदाता ही कर सकते हैं। देश की राजनीति को भी गलत काम करने वालों की राह रोकने के लिए मजबूर कर सकते हैं। सरकार को सुचिता की दिशा में चलने की राह दिखा सकते हैं। किसी भी देश की जनता में जब तक नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती, तब तक उस देश में मूल्य आधारित जीवन का विकसित होना संभव नहीं है। इस काम को हम मतदाताओं को ही करना हैं।

(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्टाय, इदम् न मम्)   

2 comments:

  1. लेख अच्छा और सामयिक है।

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  2. तीन हफ्तों से बेंगलुरू जेल में बंद एआईएडीएमके प्रमुख जे. जयललिता को सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर 2014 को कुछ शर्तों के साथ जमानत दे दी।

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