नव वर्ष -
2015 की अगवानी करने के लिए विश्व के साथ–साथ भारत की जनता भी आतुर हैं। निरंतर
ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहने वाला भारत देश भी आज अपने भविष्य को लेकर व्यथित
हो उठा है। आसमान छूती महंगाई, हिलोरे लेती अर्थव्यवस्था, दरवाजे पर भौंकते
आतंकवाद, बेलगाम हुए भ्रष्टाचार और सार्वजनिक जीवन में सबसे नींचले स्तर को छूते नैतिक
मूल्यों के ग्राफ के बीच आज हम नव वर्ष 2015 के स्वागत में जश्न मनाने के लिए
तैयार हैं। भविष्य की स्थिरता और उन्नति की राह की तलाश में भारत की जनता की नजरें
पथराती जा रही हैं।
विश्व के
साथ-साथ भारत का जनमानस भी अपने सुखमय
भविष्य को लेकर व्यथित हो उठा हैं। वह एक विशेष प्रकार की कुंठा में जकड़ा
हुआ अपना जीवन बिता रहा हैं। ऐसे विपरित समय में भरे मन से ही ठीक लेकिन खुश होकर
अपने भविष्य के लिए शुभ मंगलमय राह की तलाश में जमकर खुशियां मनाने में कोई
कोर-कसर नहीं छोड़ रहा हैं।
भारत का
नागरिक इस नये साल के राष्ट्रीय कहो या अंतर्राष्ट्रीय भोर समारोह में मग्न होने
में वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता। इस अंतर्राष्ट्रीय भोर समारोह का केवल एक धर्म
है, मानव विकास की राह पर चलकर सुखमय जीवन व्यतीत करें। वह पूरी तरह इस जश्न में
डूब सा गया हैं। बस भारतीय नागरिक की यहीं वो बात है, जो उसे अवश्य ही शुभ मंगलमय
की भावी राह पर ले जायेंगी। यही वो तत्व है, जो हमारे देश को हर कठिन समय में उत्साह
और उमंग से भर देता है। घोर अंधेरे में भी भारत अपने ज्ञान के जरिए, विपरित राह की
जगह उचित राह अपना लेता है। इसीलिए हमारे देश का नामकरण हमारे पूर्वजों ने निरंतर
ज्ञान से प्रकाशित रहने वाले भारत नाम से किया। इसी ज्ञान के प्रकाश से भारत
शाश्वत रहा है, और शाश्वत रहेंगा।
देश में
महंगाई सातवां आसमान छूने की कहावत बोल रही है। महंगाई ने नागरिकों के रोजमर्रा के
जीवन को दूभर कर दिया है। वो अब रोजना सस्ता भरपेट भोजन की आशा भी नहीं पाल पा रहा
हैं। अच्छे कपड़े पहनकर जीवन बिताने की बात तो दूर। रहने के लिए एक पक्के मकान के
बारे में तो एक सामान्य व्यक्ति के लिए सोचना तक मना सा हो गया है। मकान बनाकर –
लेकर रहना तो एक सपना बन गया, जो भविष्य में शायद ही कभी साकार हो।
भारत की
अर्थव्यवस्था आज ऊंची कूद की छलांग लगाने को तैयार है। इस ऊंची कूद के बाद
अर्थव्यवस्था में बनने वाला ग्राफ भी इसी ऊंची कूद की छलांग की प्रक्रिया में ऊपर
की ओर अर्ध पैराबोलिक (अर्ध परवलयिक) बनेगा। ये अर्ध पैराबोलिक ग्राफ अपने
सर्वोच्च शिखर पर उच्चतम बिन्दु को छुकर कुछ समय के लिए समतलता लिए होगा। अर्थव्यवस्था
की ये समतलता कुछ समय के लिए हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे पिकअप पाइंट के साथ पिकअप
रन-वे लिए होगी। भारत आज संसार की सबसे उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। प्राकृतिक और
मानव संसाधन के लिहाज से आज देश सबसे आगे है। हिन्दुस्तान पर विश्व के कोने-कोने
के निवेशकों की नजरें हैं। इसमें कोई दो राय नहीं, हम आगामी कुछ सालों में
संसार में सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था बनेंगे। हमारी अर्थव्यवस्था छलांग
लगाकर ग्राफ के सबसे उच्चतम बिन्दु को छुएंगी। तरक्की के इस उच्चतम शिखर के बाद आर्थिक
क्षेत्र में स्थिरता या समतल रास्ता आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
अर्थव्यवस्था
के हिलोरे लेते इस भंवर में सर्वहारा वर्ग का मन व्यथित हो उठा है, आखिर देश में
धन-धान्य की प्रगति – विकास किसके लिए ? तरक्की के समतल रास्ते पर कौन अपने स्थिर कदम बढ़ा पायेंगा ? आखिर विकास के उस भावी
समतल रास्ते पर दौड़ने वाला कौन होगा – केवल पूंजीपति या सर्वहारा वर्ग भी ? जन का मन ये सोचकर व्यथित
हो उठा है कि चल रही अर्थव्यवस्था की दौड़ में कैसे सर्वहारा वर्ग पूंजीपति के साथ
अपने कदम साधकर दौड़े। ताकि भावि विकास की समतल राह पर सर्वहारा वर्ग पूंजीपति के
साथमैराथन दौड़ में भागने में मुकाबला कर सकें।
बिगड़े
पारिस्थिकीय संतुलन के चलते प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या, आंतरिक कानून एवं
न्याय व्यवस्था और आतंकवाद के साये ने सरकार पर बेमतलब बेसुमार खर्च बढ़ाकर विकास
के काम की जगह पुनर्वास के काम में उलझा दिया है। अप्रत्याशित तौर पर बार-बार आने
वाले इस भारी-भरकम अनचाहे आर्थिक व्यय ने एक ओर हमारा विकास अवरूद्ध किया हुआ है। वहीं
दूसरी ओर विकास की राह में रोड़ा बताने का बहाना सरकार के हाथ में थमा दिया है। जो
जन मन को बहुत व्यथित किए हुए है।
बेलगाम हुए
भ्रष्टाचार पर रस्साकसी हमें सोने नहीं दे रही है। भ्रष्टाचार पर ये रस्साकसी हर
समय हमारी आंखों के सामने झूल रही है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर सवारी करने वाला
कोई तारणहार सवार हमें नहीं मिल रहा है। इस तारणहार को भी जन मन ही ढूंढ सकता हैं।
कोई राजनीतिक दल या संगठन नहीं! इसके लिए मतदाताओं को
परिपक्व मानसिकता के साथ वोटिंग कर संकट मोचक को चुनना होगा। भ्रष्टाचार के प्रपात
से बनने वाला भंवर और बढ़ा ही होता जा रहा है। कोई भ्रष्टाचार के इस बढ़ते भंवर को
बहता पानी बताने का प्रयास कर रहा हैं, तो कोई उसे खत्म करने की बात कर रहा है।
कोई तो भंवर को बताकर हमारी नजरों से ही ओंझल करने के प्रयास कर रहा हैं। गलत तरीके
से धन एकत्रीकरण के बढ़ते इस दायरे ने जन मन के साथ मस्तक को भनभना दिया है। देश
में काले धन पर लगाम होती तो आज हमारी ये आर्थिक हालत नहीं होती।
सार्वजनिक
जीवन में सादे और उच्च विचारों वाले लोगों की लगातार घटती संख्या ने जनमानस को
चिंता में डाल दिया है। अब ऐसे सदाचार लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही बच गये हैं।
भविष्य में शायद हमें साधारण दिखने वाले ऐसे सर्वोच्च लोग उंगलियों पर गिनने को
नहीं मिलेंगे। जनता का दिल मानने लगा है कि देश में सभी समस्याओं की जड़ में
सर्वमान्य और अच्छे नेताओं का अभाव ही हैं। व्यवस्था की इस कमी को परिपक्व
प्रक्रियाओं का विकास कर ही पूरा किया जा सकता है। सर्वमान्य और अच्छे लोगों के
आने की पुरानी आशा करना अब पुरानी हो गई है। सार्वजनिक दायित्व को अब पूरी तरह
चलित, तार्किक और युवा बनाकर ही इस कमी को पूरा किया जा सकता है। सार्वजनिक दायित्व
को सभी के उपयोग का हक बनाकर इसे समाज में पूरा विस्तार मिलें। भाई-भतीजावाद से
परे ढांचा पूरी तरह पारदर्शी बनें।
परेशानियां
चाहे कितनी हों ..... ! इन जकड़ी हुई आर्थिक परिस्थितियों मेंहम भारतवासी इस नये साल की पूर्व
संध्या पर नव वर्ष के जश्न को जमकर मनायेंगे। पूरी तरह मग्न होकर इस नये साल की
अगवानी में कोई कमी नहीं छोडेंगे। इस नये वर्ष के जश्न से हम एक नया उत्साह, उमंग
और भरपूर आत्म विश्वास लेकर बाहर निकलेंगे। जो आगामी कठिन परिस्थितियों को हमारे
पक्ष में करने के लिए बल देगा। हम इस कठिन दौर का सामना कर बाहर निकल खुली हवा में
सांस लेंगे। हम एक भावी सुखद भविष्य में निवास कर बिना किसी व्यथाओं के स्वतंत्रता
से विचरण करेंगे।
छलांग लगाने
को तैयार, उभरती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के इस प्रारंभिक दौर में पिक रन-वे (Run Way) के पहले हमारे लिए एक आसियाना अवस्य बनायेंगे या लेंगे। हमें मालूम है,
अर्थव्यवस्था के विकास के सर्वोच्च बिन्दु के बाद तो मकान के दाम आज के भी चार
गुना होंगे। रोटी और कपड़ा की भावी व्यवस्था के लिए धन के बचत की राह पर तेज कदम
बढ़ाना शुरू कर देंगे। अंदर और बाहर न्याय एवं कानून व्यवस्था को सुधारने, आतंकवाद
का मुंह कुचलकर मानव जीवन को शांत माहौल देने और सार्वजनिक जीवन में सद् विचार वाले लोगों की कमी
को पूरा करने के लिए आने वाले चुनावों में हम भारतवासी एक दल की स्थिर सरकार बनाने
वोट करेंगे। जकड़ी हुई बेड़ियां अधिक देर तक हमें बांध नहीं रख पायेंगी। आने वाले
समय को ज्ञान के प्रकाश से हमारे पक्ष में कर लेंगे। अर्थव्यवस्था में पूंजीपतियों
के साथ सर्वहारा वर्ग की रफ्तार पकड़ती इस तेज मैराथन दौड़ में हम सब अपना – अपना
हित साधकर अपने आपको ही नहीं समाज के साथ – साथ राष्ट्र को भी गौरवान्वित कर अपना
भावी समय सुखमय बनायेंगे।
हमें
परेशानियों का ज्ञान हैं, लेकिन निराशा नहीं। धुंआ उड़कर आंखों में जाने पर कुछ नदिखने या समझ में न आने वाली कुंध या भैराने जैसी हमारी स्थिति नहीं हैं। हम
धुंए से भले ही घिरे हुए हो लेकिन भैराये हुए नहीं हैं। भारत ज्ञान से निरंतर
प्रकाशित रहने वाला देश है। सर्व मानव धर्म के इस अंतर्राष्ट्रीय पर्व की पूर्व
शाम पर भारत हमेशा सराबोर रहा हैं ....... हैं ........ रहेंगा ....... ! बेमन से नहीं पूरे आत्मबल से इस नये साल – 2015 की पूर्व संध्या पर हम
हिन्दुस्तानियों की एक सुर में आवाज हैं ....... आव्हान हैं ...... नव वर्ष 2015
स्वागत हैं ...... वंदन हैं ..... अभिनन्दन हैं ...... ! हम तैयार हैं ........ !
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम्
राष्ट्राय, इदम् न मम्)
1.14 से 19 नवम्बर तक देश
में चलेगा स्वच्छता अभियान
2.17 और 18 नवम्बर को पंडित
जवाहरलाल नेहरू की उपलब्धियों पर अंतर-राष्ट्रीय सेमिनार
3.समग्र सफाई केवल हमारे
आसपास या राजनीति सहित पूरे सार्वजनिक जीवन की
4.समग्र सफाई अभियान के बहाने
राजनीति तो नहीं ?
5.स्वतंत्रता आंदोलन की
अगुवाई करने वाला दल कांग्रेस तिलमिलाया
15 अगस्त 2014 को, पूर्ण बहुमत वाली भारतीय जनता
पार्टी की पहली सरकार के प्रधान मंत्री ने नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर
से देश में समग्र स्वच्छता अभियान चलाने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत की।स्वच्छता पसंद और उसे अपने
व्यावहारिक जीवन में उतारने वाले हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिन 2
अक्टूबर से समग्र स्वच्छता अभियान की शुरूआत कर नरेन्द्र मोदी ने देश का दिल जीत
लिया। उन्होंने क्लीन इंडिया का नारा देकर अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति जन-जन के
सामने जाहिर की।
जन-जन की भागीदारी वाली इस योजना का भावी हश्र जो
भी हो, लेकिन योजना शुरूआती दौर में सांकेतिक तौर पर ही सही पर चल बड़े जोर-शोर से
रही है। लोगों में प्रतिस्पर्धात्मक उत्साह और उमंग देखने को मिल रहा है।
जनता की
नाराजगी का डर सताने के कारण सभी राजनीतिक दल इसमें शामिल हो रहे हैं। लोग भी
समय-समय पर इन राजनीतिक पार्टियों के साथ भागीदारी कर रहे हैं। भले ही प्रधान
मंत्री के ध्यान से ओझल होते ही सफाई अभियान को राजनीतिक कार्यकर्ता और दोनों ही
भूल जाते हैं। सफाई अभियान देश में अभी उच्चतम और निम्नतम स्तर के ग्राफ से चल रहा
है। इन सब व्यावहारिक कठिनाइयों के बावजूद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अपने
व्यस्तम समय में से कुछ समय निकालकर विशेष समयों पर देश में सफाई अभियान में भाग
ले रहे है। प्रधान मंत्री के इन कदमों से लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता का
संचार हो रहा है। प्रधान मंत्री के बार-बार आव्हान का देश के जनमानस पर गहरा असर
हो रहा है। फिर भी, देश में समग्र स्वच्छता अभियान तब तक सफल नहीं हो जब तक लोग
उसे व्यक्तिगत नैतिक दायित्व न बना लें। बस एक यही काम है, जिसे हमारे देश की जनता
को स्वच्छ भारत बनाने के लिए करना है।
अब आधुनिक भारत के निर्माता कहलाने वाले पहले प्रधान
मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती 14 नवम्बर, बाल दिवस से लेकर देश की आयरन
लेडी के नाम से पहचानी जाने वाली पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के
जन्म दिन 19 नवम्बर तक देश में सघन स्वच्छता अभियान चलाने का आह्वान किया गया है। इस
समय को बीजेपी के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विशेष तौर पर सफाई अभियान के
लिए चुनने पर देश में बहस चल निकली है। लोग कहने लगे हैं समग्र सफाई के बहाने कहीं ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विचारधार
विहीन बनाने का प्रयास तो नहीं है ? बीजेपी के पास पहले से ही पंडित दीनदयाल
उपाध्याय का एकात्म मानववाद और पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सांस्कृतिक
राष्ट्रवाद हैं। ऊपर से बीजेपी गांधीवाद को अपने संविधान में शामिल कर विचारधारा
को समृद्ध बनाये हुए है। उचित और तेज कदम
बढ़ाते हुए।
कांग्रेस द्वारा हांसिये पर धकेले हुए, भारतीय बिस्मार्क को बीजेपी ने
राष्ट्रीय सम्मान की मुख्य धारा में लाकर सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधार को ले
लिया। सबसे पहले बीजेपी ने सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा लागाने की
घोषणा की। फिर देश भर में रन ऑफ युनिटी का आयोजन किया। इसके बाद 31 अक्टूबर 2014
से सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिन को देश भर में एकता दिवस के रूप में मनाना
प्रारम्भ कर दिया। रही बात जयप्रकाश नारायण और उनकी समग्र क्रांति की तो बीजेपी
समय-समय पर लोकनायक की इस विरासत पर के प्रति भी गहरी संवेदना जताती रही है।
वैसे
भी जयप्रकाश नारायण आपातकाल के दौरान बीजेपी की पूर्वगामी भारतीय जनसंघ के
संगी-साथी रहे है। जयप्रकाश नारायण ने इस कठिन समय में देश को एक ओर लोक नेतृत्व
दिया तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आपातकाल का विरोध करने में सबसे अधिक
बढ़-चढ़कर भागीदारी की है। ऐसे में बीजेपी समग्र क्रांति को अपने दायरे में पूरी
तरह लेकर कभी भी देश के विकास के मार्ग के दर्शन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के
अन्त्योदय के साथ शामिल कर सकती है। भारत की पूरी स्वतंत्रता के लिए सपना देखने
वाले गरम दल के नेता आजाद हिन्द फौज के कमॉण्डर सुभाष चन्द्र बोस को बीजेपी ने नीरस
मन से याद भर करने की जगह राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मान देकर अपना बताना
प्रारंभ कर ही दिया है। देश की स्वतंत्रता में क्रांतिकारियों के योगदान की अनदेखी
सहन नहीं होने के कारण बीजेपी ने अब चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल
जैस अन्य सभी क्रांतिकारियों को भी देश के लिए वंदनीय बनाने का काम करना प्रारंभ
कर दिया हैं। बीजेपी ने अब गांधी और सुभाष की नरम और गरम दोनों विचारधाराओं के साथ
क्रांतिकारी विचारों को भी देश के लिए सामयिक करार दे दिया है।
अब कहा जा रहा है, समग्र स्वच्छता के बहाने
बीजेपी कांग्रेस के इन दोनों बड़े नेताओं पर डोरे डाल रही है। इससे बीजेपी नेहरू
और इंदिरा की विचारधारा पर कब्जा कर कांग्रेस को विचारधारा विहीन बनाना चाहती है। बीजेपी
के इस कदम से कांग्रेस तिलमिला उठी है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पंडित जवाहर
लाल नेहरू के जीवन पर इसी दौरान 17 और 18 अक्टूबर को दो दिवसीय अंतर-राष्ट्रीय सेमिनार
का आयोजन किया है। सेमिनार में देश के सभी विपक्षी दलों के प्रमुखों सहित विश्व के
कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को बुलाया हैं।
प्रधान मंत्री
नरेन्द्र मोदी को आमंत्रण नहीं दिया गया। इस सम्मेलन में पंडित जवाहर लाल नेहरू के
जीवन की उपलब्धियों को देश के सामने रखा जायेगा। उन्हें प्रचारित किया जायेंगा। नेहरू
के कार्यों पर शोध का रास्ता साफ किया जायेगा। नेहरू - इंदिरा की विरास को नष्ट
करने का आरोप लगा रही कांग्रेस के पास से इन दोनों लोगों को बीजेपी अपनी झोली में
खींच लेती है, तो कांग्रेस के पास विचारधारा के नाम पर ना के बराबर ही बचेगा। बस
आगे खड़ी होगी एक पूर्ण समृद्ध विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी। जिसके पास विचारधारा
के नाम पर भेदभाव का कोई आरोप नहीं होगा। बीजेपी विपक्ष को विचाराधारा से ही बेदखल
कर देंगी ? भविष्य अब बीजेपी की तरह विपक्ष के जीवन में आगामी 65 सालों तक सत्ता में आने
का मुंह ताकने का काम देने की तैयारी न कर रहा हो ? ऐसे में सकते में आयी कांग्रेस विचारधारा को बचाने अब अनेक
आयोजन करने लग गई है।
हालांकि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इस
क्रिटिकल समय में आगामी 20 नवम्बर तक विदेश यात्रा पर है। 17 से 19 नवम्बर तक
चलाये जाने वाले इस समग्र स्वच्छता अभियान को वे अपने साथियों पर छोड़ गये है। नेहरू
के जीवन पर कांग्रेस के द्वारा बुलाया गया ये अंतर-राष्ट्रीय सम्मेलन मोदी के प्रभाव
से शायद दूर रहें। लेकिन नरेन्द्र मोदी अवश्य ही देश में एक विशेष बहस छोड़ विदेश
चले गये है। देश का विचार इसे राजनीतिक विरासत को समृद्ध करने या बचाने की सियासत
मान रहा है ?
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न
मम्)
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन
और उसके बाद करीब तीन-चौथाई समय तक देश में सत्ता की अगुवाई करने वालों ने हमारे
पूर्व महान व्यक्तित्वों के साथ भेदभाव किया। जरा भी निडरता से अपना पक्ष रखने
वालों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दरकिनार कर दिया। उन महान लोगों के काम और
आदर्शों को अपनी विचार धारा का न तो अंग बनने दिया। और न ही मरने के बाद इन महान
नेताओं के नाम को अमर बनाने की राह पर ले
गएं। देश के राष्ट्रीय आंदोलन में पर्दे के पीछे से महान भूमिका निभाने वाले
क्रांतिकारियों की ओर तो इन कर्ताधर्ताओं ने देखना भी मुनासिब नहीं समझा। एकल
पार्टी के दबदबे से लंबे समय तक देश में मजबूत विपक्ष खड़ा नहीं हो पाया। भविष्य
के बारे में निष्पक्ष न सोचकर कांगेस इसी अवसर में मग्न रही। राष्ट्रीय व्यक्तित्वों
की धरोहर को निष्पक्ष आकार देने की बजाय इसे चंद लोगों और परिवार तक सीमित कर
लिया। उन्हें ही अमर बनाते रहें। उनसे कोई दूजा नहीं। हर योजना, स्थान और संस्था
का नाम बस उन्हीं चंद लोगों या परिवार के नाम पर रखा। बाकी को बेकार समझा। चाहे वो
सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानन्द या
फिर चन्द्रशेखर आजाद जैस अन्य क्रांतिकारी हो।
इसी का नतीजा है, भारतीय जनता पार्टी ने अकेले
पूरे बहुमत के साथ केन्द्र में आते ही भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री
सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के रूप में
मनाने का निर्णय लिया। 31 अक्टूबर 2014 से पूरे भारत में सरदार वल्लभ भाई पटेल की
जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता और अखंडता दिवस के रूप में मनाई जायेंगी।
भारत के लगभग आधे भाग में सांप्रदायिक और विघटनकारी
लोग सक्रिय हैं। ऐसे समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के आदर्श ही हमें याद आते हैं। जो
राह दिखा सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश की 565
रियासतों को सादगी और शालीनता से भारत संघ में विलय किया। उनके इसी काम से वे
आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माता और हिन्दुस्तान के लौह पुरूष तथा मैकियावेली
कहलाए। पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। सरदारगीरी के काम अधिक
करने के कारण वे 22 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर पाए और वकालत के पेशे में जुट
गए। 1908 में विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी
वकालत में उन्होंने खूब यश कमाया और धाक जमाई। प्रारंभ में पटेल गांधी जी के कामों
से सहमत नहीं थे। मगर गुजरात के चम्पारन जिले में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन की
सफलता देख पटेल उनके भक्त बन गए। 1930 से 1933 तक चले आंदोलनों में दक्षिण भारत की
कमांड पटेल के हाथों में रही। बारदोली सत्याग्रह के समय पटेल ने किसानों से कहा –
देखों भाई! सरकार के पास निर्दयी आदमी हैं। खुले हुए भाले – बंदूकें
हैं। तोपे हैं। ब्रिटेन संसार की एक बड़ी शक्ती है। तुम्हारें पास केवल तुम्हारा
ह्रदय है। अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का तुम में हो तो आगे बढ़ने की बात
सोचो। कांग्रेस केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल
ने आठों प्रांतों के कामों कुशलता पूर्वक किया।
दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन ने घोषणा की
कि युद्ध के बाद सभी भारतीयों की इच्छा अनुसार भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिया
जायेंगा। पटेल ने इस पर गंभीर प्रतिक्रिया की। पटेल ने मुसलमानों के प्रति
अविश्वास और संदेह की शिकायत गांधी जी से की। तब गांधी जी ने कहा सरदार सीधी बात
बोलने वाले व्यक्ति है। उनकी बात कड़वी लगती है पर वे दिल के साफ है। अंग्रेजों
भारत छोड़ों आंदोलन के समय सरदार पटेल ने लोगों से कहा – ऐसा समय फिर नहीं आयेंगा।
आप मन में भय न रखे। आपको यही समझकर लड़ाई लड़ना है कि – महात्मा गांधी और नेताओं
को गिरफ्तार कर लिया जायेंगा। तो आप न भूले कि आपके हाथ में कोई ऐसी शक्ति है कि
24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जायेंगा।
सित्मबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थायी
राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। भारत विभाजन के
पक्ष सरदार पटेल का कहना था सांप्रदायिकता के जहर को फैलने से रोकने के लिए पहले
ही गले – सड़े अंग को आपरेशन कर कटवा देना चाहिए। देशी राज्यों के एकीकरण को पटेल
ने बिना खून – खराबे के बड़ी कुशलता से हल किया।देशी राज्यों में राजकोट,
जूनागढ़, बहावलपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने के लिए
सरदार को कई पेचिदगियों का सामना करना पड़ा। हैदराबाद के निजाम ने राज्य में निवास
करने वाली 85 फीसदी हिन्दू जनता को तीन भाषाओं में – तेलगू, मराठी और कन्नड़ में
बांटकर लाभ उठा रखा था। निजाम ने राज्य की जागृति को ऐसी निरस्त करने के लिए ऐसी
नीति अपना रखी थी। राष्ट्रीय आंदोलन फैलने से बचाने के लिए हैदराबाद को रेल लाइन
से नहीं जुड़ने दिया गया। अंग्रेजी से बचाने और मुसलमानों की भावना को अपने ओर
मिलाने निजाम ने शिक्षा में उर्दू को माध्यम बना रखा था। भारत संघ में विलय न होने
के उद्देश्य से उसने चुपचाप हैदराबाद को 10 लाख रूपये में पाकिस्तान को बेचने का
दुष्चक्र रच लिया था। लेकिन इस साजिश की भनक पटेल को लग गई। तब उन्होंने निजाम की
दुर्गति की और हैदराबाद को भारत में मिला लिया।
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को
पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान ले। तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि
वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकार करें। अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक
सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने। बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पीटना पड़ा। चीन ने
हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के ऐतेहासिक
कामों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक नीधि की स्थापना, कमला
नेहरू अस्पताल की रूपरेख आदि हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी
भारत में विलय करने की इच्छा बलवती थी। एक बार जब उनका युद्धपोत गोआ के निकट से जा
रहा था तब पटेल ने कमांडिंग आफिसर से तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं। कप्तान ने कहा
800। पटेल ने फिर पूछा क्या गोआ पर अधिकार करने के लिए इतने सैनिक काफी हैं।
कमांडर
ने उत्तर दिया हां। पटेल ने कहा चलो हम गोआ पर अधिकार कर लेते है। कप्तान ने पटेल
से इसका आदेश लिखित मांगा। पटेल ने नेहरू के आपत्ती करने के अंदेशे से गोआ पर
अधिकार करने के विचार को त्याग दिया। सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी
मतभेद था। फिर गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर
बातों को भी वे विनोद में कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर सरदार पटेल ने कहा
था – सब जगह मेरा वश चल सकता है, पर जवाहर लाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा। उनका
यह कहना कितना सटीक था – भारत में केवल एक ही व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है –
जवाहरलाल नेहरू। शेष सब साम्प्रदायिक मुसलमान हैं।
यदि नेहरू को तत्कालीन भारत की उत्कृष्ट प्रेरणा
कहा जाय तो सरदार पटेल को उनका प्रबल विनय अनुशासन कहा जा सकता है। 15 दिसम्बर,
1950 को इस महा पुरुष का 76 साल की आयु में निधन हो गया। अब इस खाली स्थान को भर
पाना मुश्किल है। गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया। तो नेहरू ने गांधी
की कल्पना और दृष्टिकोण को एक बड़ा आयाम दिया। वहीं जो शक्ति और सम्पूर्णता
कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम थी। पटेल की
सेवाओं का भारत के जन-मानस पर अमिट प्रभाव है।
31 अक्टूबर को देश स्कूल, कॉलेज और सभी सरकारी,
गैर सरकारी संस्थाओं के साथ जनमानस, इस लौहपुरूष की जयंती को पहली बार एकता और
अखण्डता दिवस के रूप में मनाने जा रहा है। यहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल के गौरवशाली
कामों और उनके धीर-शील व्यक्तित्व के लिए राष्ट्र की सच्ची भावना होगी। जो सरदार
पटेल को भारत के राजनीतिक इतिहास में सच्चा स्थान दिलाकर उनका हक दिलायेंगी।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न
मम्)
स्थानीय जन
प्रतिनिधि राजनीतिक शपथ और विनियमन के हकदार .......... !
1.स्थानीय जन
प्रतिनिधित्यों को मिलेगा या लेंगे सम्मान……. ?
2.महिला स्थानीय जन
प्रतिनिधियों के पतियों का दखल हो प्रतिबंधित
3.नगर निगम और नगर पालिकाएं
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की बनें गंभीर और समन्वित प्रशिक्षण स्थल
4.किसी भी व्यक्ति को
दोबारा ना मिले चुनाव में टिकट
5.स्थानीय चुनाव बनें
राजनीतिक दलों की प्रयोगशाला
दिसम्बर 2014 में
प्रदेश के नगरीय निकायों और जनवरी 2015 में ग्राम पंचायतों के चुनाव होने जा रहे
हैं। ये लोकल गवर्मेंट हमारे प्रजातंत्र की प्राथमिक पाठशाला और प्रयोगशाला हैं। जहां
हमारे लोकतंत्र को मजबूत आधार और विस्तार मिलता है। यहीं भावी राजनीतिक सदस्य
तैयार होते हैं। भले ही शुरूआत में इस क्षेत्र में कुछ गल्तियां होती हों। भारत के
पहले प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा था – प्रारंभ के समय में हमारे जन प्रतिनिधि भले ही
कितनी गल्तियां करें। उन्हें करने देना चाहिए। और स्थानीय लोगों को हमें बार-बार
अधिकार देना चाहिए। यहीं वो लोग है जो आगे चलकर परिपक्व होकर व्यवस्था को आधार और
दिशा देंगे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने तो स्थानीय शासन के जरिए ही देश में
राम राज लाने का सपना देखा था।
हमारे
पूर्वजों और लाभ की भावना को देखकर सबसे पहले स्थानीय जन प्रतिनिधियों को जीतने के
बाद राजनीतिक शपथ दिलवाना चाहिए। उनके कार्यकाल का विनियमन भी किसी राजनीतिक
व्यक्ति ने करना चाहिए। प्रशासनिक व्यक्ति ने नहीं। इससे जमीनी स्तर पर सरकार की
अगुवाई करने वाले लोगों की गरिमा और उत्साह में बढ़ोत्तरी होगी। उमंग से भरकर वे
निष्ठा और ईमानदारी से विकास कार्य करेंगे। अपनी शिकायत को अपने राजनीतिक वरिष्ठ
के पास खुलकर निडरता से बोल सकेंगे। प्रशासन की प्रक्रिया के लंबे, नीरस, और
उलझनों में उलझी दुरूह निर्णय प्रक्रिया के दूर हो जाने पर स्थानीय जन प्रतिनिधी विमुख
नहीं हो पायेंगे। स्थानीय स्तर पर चुने हुए नेताओं को शपथ दिलाने और उन्हें
विनियमन के ये दोनों काम अभी प्रत्येक जिले के कलेक्टर करते हैं।
बोला जाता है।
स्थानीय प्रतिनिधियों के बड़े विस्तार और संख्या अधिक होने के नाते उन्हें किसी
राजनीतिक व्यक्ति के द्वारा शपथ दिलाना या सीधे नियंत्रण में लेना व्यावहारिक नहीं
है। इससे संबंधित व्यक्ति के पास काम इतना अधिक बढ़ जायेंगा कि जिसे व्यावहारिक
तौर क्रियान्वित कर पाना कठिन और खर्चीला होगा। सबसे बढ़कर इस काम से नीचलें स्तर
पर राजनीति प्रवेश कर जायेंगे। जो राजनीतिक रूप से कम अनुभवी इन लोगों और समाज के
लिए ठीक नहीं है। कारण अनेक है, लेकिन हमें कदम बढ़ाना तो होगा।
माना! राज्यपाल एक संवैधानिक पद
है। महामहिम को ये अधिकार देना व्यावहारिक नहीं है। रही बात मुख्यमंत्री की तो
इससे उनके काम में भारी विस्तार हो जायेंगा। इसका प्रभाव प्रदेश के शासन कार्यों
पर पड़ेगा। इन सभी बाधाओं के बावजूद हम इतना तो कर ही सकते है। नगरीय निकायों के
चुने हुए जन प्रतिनिधियों को प्रदेश के नगरीय निकाय और स्थानीय शासन मंत्री से शपथ
दिलाकर। सीधे उन्हें इनके नियंत्रण में दिया जा सकता है। इसी भांति ग्राम पंचायतों
के चुने हुए लोगों को प्रदेश के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री से शपथ दिलवाकर।
इन्हें भी इस मंत्री के अधीन विनियमन के दायरे में लाकर निजात दिलाई जा सकती है। इससे
हमारा राजनीतिक लक्ष्य भी पूरा होगा, और ज्यादा कोई व्यावहारिक कठिनाई भी नहीं
आयेंगी। प्रजातंत्र के इस पवित्र काम को प्रदेश की राजनीति स्वयं आगे बढ़कर पूरा
करेंगी या नहीं। या फिर इस काम को पूरा करने के लिए जन प्रतिनिधी स्वयं आगे बढ़कर शासन
से मांग करेंगे। ये समय बतायेंगा।
स्थानीय स्तर
पर मध्यप्रदेश ने महिलाओं के लिए लोकल चुनावों में 50 स्थान आरक्षित किए हैं। इस
कदम से महिलाओं को स्थानीय शासन में प्रशंसनीय प्रतिनिधित्व मिल रहा हैं। स्थानीय
शासन में आये क्रांतिकारी बदलाव के इस शुरूआती दौर में पुरूषों ने अपनी पुरातन
मानसिकता के चलते कहों या मजबूरियों के। एक नई अवधारणा पतिवाद चला रखी है। महिलाएं
इस क्षेत्र में बड़े तौर पर अपने राजनीतिक हक के प्रयोग के मामलें में आज भी पृष्ठ
भूमि में दबी हुई हैं। कहीं शिक्षा के बहाने कहो या उम्मीदवार नहीं मिलने के
बहाने। या फिर आर्थिक कमजोरी के। या दबंगाई के डर से। बात एक है। सुधार होना जरूरी
है। तभी हम बिना लिंग भेदभाव के वास्तविक स्थानीय प्रजातंत्र बना पायेंगे। बड़े
आकार ले चुके इस पतिवाद को शासन ने आगे बढ़कर अवश्य रोकना चाहिए। कोई कानून बनाकर
कठोरता से क्रियान्वित होना श्रेष्यकर होगा।
हमारी संसदीय
शासन प्रणाली की कमियों को दूर करने विकल्प के तौर पर हमने नये नगर
Add caption
पालिका और नगर
निगम अधिनियम में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया है। इन दोनों शहरी संस्थाओं
को स्थानीय सरकार के साथ मिलकर राज्य सरकार को गंभीर और समन्वित राजनीतिक प्रयास
करना चाहिए। समय-समय पर रिफ्रेशर ट्रेनिंग देना होगी। अध्यक्षात्मक शासन की
अवधारणा और महत्व समझाना होगा। इस पावन काम को स्थानीय प्रतिनिधित्व करने वाले लोग
भी गंभीरता से लें। तभी हम प्रजातंत्र की अगुवाई करने वाली इस अवधारणा में से
अच्छी बातें ले सकेंगे। हमारे लोकतंत्र को स्थीर मजबूती दे सकेंगे।
जनता के तंत्र
की विशेषता है। यह किसी व्यक्ति विशेष, परिवार, समूह या संगठन का नहीं हैँ। यह सब
लोगों का हैं। इस पर सबका नैसर्गिक हक है। बारी-बारी से व्यवस्था को चलाने का
अधिकार देश के हर नागरिक को मिलना चाहिए। ऐसा व्यवहार में तभी संभव है जब राजनीतिक
दल अपने यहां उम्मीदवार बनाते समय पुनर्नियुक्ति के भेदाव के अपने यहां से हटा
दें। दोबारा स्थानीय स्तर पर किसी व्यक्ति को टिकट नहीं दें। चाहे वो फिर राजनीतिक
पुरस्कार के नाते हो, या व्यक्तिगत राजनीतिक संबंधों के नाते। राजनीतिक धरोहर का
स्वामी होने के नाते रिस्तेदारों को बार-बार टिकट देना भी गलत है। इसी तरह अपनी
कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के नाते ही क्यों न दोबारा टिकट दिया जाय।
अपनाए गये सभी तरीके प्रजातंत्र के मूल सिद्धांत शासन में भागीदारी सभी का हक, के
विपरित है।
सभी विशेषकर
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से विनम्र अपील हैं। वे आगामी स्थानीय चुनावों में प्रयोग
के तौर पर ही सही किसी भी व्यक्ति को दोबारा टिकट नहीं दें। इससे दल विशेष ही
वास्तविक तौर पर प्रजातांत्रिक आकार लेगा। लोकतंत्र के मूल सिद्धांत के अनुसार
शासन में अधिकतम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित होगी। अवसर बढ़ने से राजनीति के
प्रति लोग अधिक आक्रष्ट होंगे। इन प्रयोगशालाओं से सार्वजनिक जीवन में अधिक अच्छे
लोग आयेंगे। प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे सार्वजनिक जीवन में सुचिता आयेंगी। निष्ठा
का समावेश होगा। राजनीति चलित हो जाने के कारण व्यावसाय के तौर पर अपनाने वालों के
लिए राजनीति धरोहर नहीं रह जायेंगी। राजनीति में चल रहे दोष काफी हद तक स्वमेव कम
हो जायेंगे। एक विकसित और स्थिर राजनीतिक ढांचे के सहारे, हम भविष्य में विकसित
देशों से प्रतिस्पर्धा कर पायेंगे।
(इदम्
राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)
सार्वजिनक जीवन नैतिक मूल्यों के सहारे बिताया
जाता है, जिसमें भौतिक वस्तुओं से विरक्ति सबसे ऊपर होती है। लोक कल्याण ही उसका
नित्य कर्म होता है। देश की सारी जनता उसका परिवार। पूरी सार्वजिनक सम्पत्ति उसकी
होती है। फिर संग्रह की आवश्यकता की उसे कोई आश्यकता नहीं रह जाती। इस तरह समाज का
ये सेवक पूरी निग्रह होता है। उसके जीवन में संग्रह कोई स्थान नहीं रखता।
यही वे कारण सार्वजनिक व्यक्ति को सदियों तक याद
किया जाता है। जगह-जगह उसकी मूर्ति लगाकर, सरकारी योजनाओं या संस्थाओं का नाम उस
सार्वजिनक व्यक्ति के नाम पर रखकर उसे अमर बनाया जाता है। जो एक आम व्यक्ति को
नसीब नहीं होता है। वो लुप्तप्राय जिन्दगी जीता है, और मरने के बाद भी उसे कोई याद
नहीं रखता। लेकिन आज मोह सार्वजिनक जीवन में भी व्यक्ति को इन मूल्यों पर जीवन
नहीं बिताने देता। वो अपने लिए या अपने सगे-सबंधियों के अतुल सम्पति एकत्र करने
में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता। नैतिक मूल्य उसके सामने बौने और सामयिक तौर पर
निर्थक हो जाते है।
इन बातों के होते हुए, यदि देश का मतदाता आंखें
मूंदकर भष्टाचार करने वाले के पक्ष में आवाज उठाता है। तो मानसिक तौर पर विकसित हो
रहे मतदाता के लिए इससे बढ़कर गलत बात क्या हो सकती हैं ? जनता के द्वारा ऐसा करने सार्वजिनक जीवन में सुचिता कैसे
आयेंगी ? कोई व्यक्ति यदि सार्वजिन व्यक्ति
होते संयम खोकर इन नैतिक नियमों की सीमा रेखा को लांघता है, उसे दंड देने या न
देने के लिए सम्बंधित अंगों को अपना करने देना चाहिये। अपराध को सजा होने के बाद,
सार्वजनिक जीवन के दूसरे लोगों को आगाह करेगी। वे गलत कामों से दूर रहेंगे।
बड़े-छोटे का भेद कम होगा। आम और खास दोनों को अपने गलत काम की सजा मिलेगी।
सार्वजिनक जीवन में सुचिता आयेंगी।
सार्वजिनक जीवन में सुचिता लाने सरकार के तीनों
अंगों को तत्परता और निष्ठा दिखानी चाहिए। कार्यपालिका और विधायिका के ढीले रवैये
ने देश के लोगों में इस काम के लिए निराशा भर दी है। हां ! हॉल ही के वर्षों में
न्यायपालिका ने इस गलत काम को लगाम लगाने सक्रियता अवश्य दिखाई है। उसके सामने कोई
खास नहीं है। गलत काम करने की कोई मजबूरी नहीं। सब आम की तरह अंदर। रहना-खाना सबके
साथ। अपराध की भनक लगते ही बिना समय गवाए व्यक्ति दरवाजे की पीछे। निष्पक्ष जांच
होते तक अंदर कीजिए आराम। व्यक्ति विशेष ने सार्वजनिक जीवन का चुना है रास्ता। फिर
डर कैसा ? अच्छे कामों से होना है उसे
अमर। बुरे काम हैं गलत।
राजनीतिक मजबूरियों के चलते कहों या राजनीतिक के
ढीले रवैये से सार्वजनिक जीवन में सुचिता लाने के काम तेज नहीं हो पा रहे हैं। कार्यपालिका
और विधायिका सुचिता को जमीन पर नहीं उतार पा रही है। ऐसे में यदि न्यायपालिका
सुचिता लाने सक्रियता दिखा रही है, तो इसमें गलत क्या है ? न्यायपालिका के द्वारा देश की जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करने के नाम पर उसे
समय-समय पर विधायिका के लोगों द्वारा डटकारा क्यों जाता है ? बनायी गई विधि की सीमा रेखा के अंदर उसे न्याय देने की
हिदायत दी जाती है। माना विधि बनाना विधायिका का विशेषाधिकार है, जिसके सहारे वो
न्यायपालिका को संयमित कर सकती है।
ऐसे में, विकल्प नहीं होने के कारण सार्वजनिक
जीवन में सुचिता लाने के लिए न्यायपालिका ही सक्रियता दिखा रही है। न्यायपालिका ने
हॉल ही के सालों में गलत कामों को रोकने जन इच्छा अनुसार अपने कर्तव्य को अमल में
लाया है। न्याय पालिका की ही देन है कि उसने गलत काम करने वालों को सलाखों के पीछे
धकेलकर मिसाल कायम की। पूर्व संचार मंत्री सुखराम, पूर्व संचार मंत्री ए. राजा, औम
प्रकाश चौटाला, लालू प्रसाद यादव, बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य
दिग्गजों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसे भी न्याय पालिका ने नहीं बख्शा। दूर संचार घोटाला, कोल ब्लॉक घोटाला हो या फिर
अन्य कोई बड़े से बड़ा घोटाला। न्यायपालिका ने सबका पर्दा फाश किया। अब 18 साल बाद
ही सही। तमिलनाडु की पर्व सीएम जय ललिता की बारी आयी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब
सीएम के पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति सलाखों के पीछे गया है। यही नहीं मामले में
चार साल की कैद, आगामी 10 साल तक चुनाव लड़ने पर मनाही के साथ 100 करोड़ रूपये का
रिकॉर्ड जुर्माना हुआ है। ऐसे में जनता द्वारा न्यायालय के काम में दखल देना और
किसी का पक्ष लेना समझ के परे है। जूडिशियल को अपना काम करने देना ही ठीक है।
कार्यपालिका और विधायिका गलत कामों को रोकने
गंभीर सक्रियता नहीं दिखा रही है। जो उसका एक पवित्र कर्तव्य है। ऐसे में ! विकल्प नहीं होने के कारण
उसे भरने के लिए मतदाताओं को ये काम करना है। हमें दिखा देना है, कि मतदाताओं की
परिपक्व हो रही आयु गलत काम करने वाले किसी व्यक्ति का पक्ष कभी नहीं लेंगी।
मतदाता कभी व्यक्ति विशेष के प्रति अंध भक्ति नहीं दिखायेंगे। देश की जनता ने
सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति को युगों तक जीवित रहने के लिए अमरत्व की दौलत
कमाने का मौका दिया। ये सबसे बढ़कर है। इसके बाद राह भटक उसने यदि कोई गलत काम
किया है, तो वह आम की तरह सजा का भागीदार है। ताकि गलत काम को मिला दंड भविष्य के
लिए एक संयम रेखा बनें।
हम युवा मतदाता तभी कहलायेंगे। जब किसी गलत बात
की तरफदारी नहीं करेंगे। इससे हमारे देश का प्रजातंत्र एक नया आकार लेकर विश्व की
अगुवाई करेंगा। दूसरों के लिए अनुकरण करने वाला बनेगा। ऐसा हम युवा होते मतदाता ही
कर सकते हैं। देश की राजनीति को भी गलत काम करने वालों की राह रोकने के लिए मजबूर
कर सकते हैं। सरकार को सुचिता की दिशा में चलने की राह दिखा सकते हैं। किसी भी देश
की जनता में जब तक नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती, तब तक उस देश में मूल्य आधारित
जीवन का विकसित होना संभव नहीं है। इस काम को हम मतदाताओं को ही करना हैं।
2.मध्यप्रदेश ने किए 6.89 लाख करोड़ रूपये के निवेश समझौते
3.17 लाख से अधिक लोगों को मध्यप्रदेश में रोजगार के अवसर
मिलेंगे
4.देश के राज्यों में आगे निकला मध्यप्रदेश
5.केन्द्र और राज्य में एक पार्टी की सरकार एक सुअवर
6.निवेश को जमीन पर लाना एक बड़ी चुनौती
आज विश्व में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था दिशा
के विपरित नहीं बह सकती। उसे अब पूंजीवाद के साथ ही शामिल होकर अपनी भूमिका तय
करनी होगी। चाहे राह में कितनी कठिनाईयां क्यों न हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना
होगा। हां हॉल ही में जनसंख्या में सबसे बड़े साम्यवादी देश चीन के राष्ट्रपित चाऊ
एन लाऊ ने जरूर एक बड़ी रोचक टिप्पणी की। लाऊ ने कहा प्रजातंत्र का अंधानुकरण ठीक
नहीं।
ईराक, अफगानिस्तान, सीरिया, मिस्त्र सहित अरब के अन्य देशों में आए उथल-पुथल
का उदाहरण देकर उन्होंने अपनी बात को उचित ठहराया। सच-गलत जो भी हो लेकिन आज विश्व
में लोकतंत्र समर्थक देशों का बहुमत तो तिहाई से भी अधिक है। समय अनुसार हमें
बहुमत के साथ चलना होगा। पूंजीवाद के रास्ते ही सही लेकिन हमें हर देश से जुड़कर
विश्व अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे निकलना होगा। उत्पादन बढ़ाकर हमारे
विकास के साथ-साथ बाजार तलाशकर उस पर अपना हक जमाना होगा।
भारत में वोटरों ने इस समस्या को हल करने की राह
आसान की। उसने विगत लोकसभा के आम चुनावों में एक राजनीतिक दल को रिकॉर्ड बहुमत देकर
गठबंधन की मजबूरी को दूर किया। समय की नब्ज को जानने वाले नरेन्द्र मोदी ने भी हिन्दुस्तान
के प्रधान मंत्री पर बैठते ही विश्व के देशों की ताबड़-तोड़ विदेश यात्रायें की। आज
नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से 100 अरब डॉलर का निवेश भारत के दरवाजे पर दस्तक दे
रहा है। प्रधान मंत्री मोदी ने भी साहसी आह्वान कर डाला। भारत के जिस राज्य में भी
जितना दम है उतना निवेश लेकर अपना कल्याण कर लें। इम मंगल काम में उनका राजनीति से
ऊपर उठकर हर प्रदेश को पूरा साथ है।
भारत के ह्रदय में बसने वाले मध्यप्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बिना समय गवांए अपने राज्य को देश की
अर्थव्यवस्था के ड्राइविंग सीट पर लाने 8, 9 और 10 अक्टूबर 2014 को इंदौर में
ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट कर डाली। शिवराज सिंह चौहान ने निवेश को आकर्षित करने के
मामलें में देश सभी 29 राज्यों को पीछे छोड़ दिया। उन्हीं के प्रयासों से आज
मध्यप्रदेश ने 6.89 लाख करोड़ रूपये के निवेश समझौते किए है। इससे आम आदमी की आय
बढ़ने से उसका जीवन खुशहाल होगा।
इसके साथ ही हर साल राज्य में 17 लाख लोगों को
रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। रिकॉर्ड उत्पादन को उपभोग के साथ निर्यात कर
मध्यप्रदेश देश ही नहीं विश्व के औधोगिक क्षेत्र में ऊंचाई के स्तर को छुएंगा। इस
पवित्र काम को पूरा करने शिवराज को उनकी ही पार्टी के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी
का पूरा साथ है। हमारे ऊर्जावान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं निवेश को
धरातल पर लाने निरंतर समीक्षा करेंगे। उन्होंने अपने काम को अंजाम तक पहुंचाने
निवेशकों के हित में कोई घोषणा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। शिवराज ने सभी
बाधाओं को दूर कर निवेशक की पहुंच सीधे मुख्यमंत्री तक बना दी है।
शिव और नरेन्द्र
के इन संयुक्त प्रयासों से प्रदेश में स्टील, फर्टीलाइजर, पेट्रोल, एनर्जी,
इंफ्राइंस्ट्रक्चर, उत्पादन, खेती, शिक्षा, हेल्थ, आईटी, पर्यटन, सहित रक्षा में
चार चांद लगकर मध्यप्रदेश का डिजिटल राजधानी बनेना का सपना पूरा होना बाकी है। मध्यप्रदेश
के पास राजनीतिक स्थिरता, ऊर्जावान खुले दिल का नेतृत्व, शांति, जगह और सस्ता श्रम
हैं। अब हमारा ये सपना अवस्य साकार होगा।भारत की तेज गति से रनअप कर
रही इस अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक जोर मानव संसाधन तैयार करने कौशल प्रशिक्षण पर
दिया जा रहा है।
इन्हीं प्रक्षित हाथों की आज अधिक जरूरत है। स्कील डेवल्पमेंट के
जरिए ही सस्ते रास्ते सरलता से रोजगार प्राप्त किया जा सकता है। मेरा आम आदमी
विशेसकर मध्यम या गरीब लोगों से अनुरोध है कि अपने बच्चों को आईटीआई या अन्य किसी
स्कील डेवल्पमेंट प्रोग्राम की ट्रेनिंग देकर उन्हें काबिल बनाएं। इससे परिवार ही
नहीं घर, समाज, प्रदेश और आखिरकार राष्ट्र हित ही होगा।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न
मम्)