चरैवेति -चरैवेति के साथ एक मौन तपस्वी की तरह चलते रहे रघुनंदन। बिल्कुल हनुमान बनकर। एक दशक से अधिक लंबे समय तक भाजपा प्रदेश कार्यालय मंत्री बनकर पार्टी की एक निष्ठ सेवा की। पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करते रहे उनका सहयोग करते रहे। प्रदेश की राजनीति में भाजपा के लिए सूझ से बाहर का समय। वैसा ही जैसे राम के सामने 100 योजन का समुद्र पार कर अनाचार - अनति को खत्म कर मानव कल्याण का रास्ता बनाना। राजनीति के विपरीत समय में बिना विचलित हुए पार्टी मुख्यालय संभालते रहे।
सिद्धांतों के पक्के। रघुजी का पूरा जीवन निष्कलंक। उन्होंने संस्कार संघ से लेकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल- आडवाणी और कुशाभाऊ ठाकरे के सानिध्य से पाए। इस कट्टर राष्ट्रवादी नेता में हिंदुत्व कूट-कूट कर भरा हुआ है जो उन्हें कभी कभी सच बोलने से नहीं रोक पाता है। राष्ट्रवादी ललक के कारण रघुनंदन ने सरकारी शिक्षक से इस्तीफा दे दिया। 1970 के दशक में भारतीय जनसंघ से विधायक चुने गए। और फिर लगन समर्पण को देख उन्हें मुख्यालय संभालने का काम दिया। इसके बाद पार्टी ने रघुनंदन को राज्यसभा में सांसद बनाकर दिल्ली भेजा।
अपने काम के साथ-साथ अध्ययन और लेखन का अतिरिक्त गुण रघुजी के भीतर लगातार विकसित होता रहा बड़ा आकार लेता रहा। आज रघुनंदन जी ने राजनीति और आध्यात्मा पर अनेक पुस्तकें की लिखी हैं। उनकी इसी मनीषी अध्यात्म विद्वता को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें "राम - पथ" गमन को खोजते हुए उसके उद्धार का काम सौंपा। इस दिव्य काम को उनके मार्गदर्शन में आगे बढ़ाया। आज रघुनंदन मध्यप्रदेश तुलसी प्रतिष्ठान के कार्यकारी अध्यक्ष बन कर काम कर रहे हैं। प्रतिष्ठान में दिख रहे व्यवस्थित स्वच्छ परिवर्तन मे उनके प्रभाव की झलक को देखा जा सकता है। अब रघुनंदन लेखन और अध्ययन के साथ तुलसीदास जी के संस्कारों उनके उद्देश्यों को पूरा करने में अपना समय दे रहे हैं। हम सबके प्यारे रघु जी हमेशा स्वस्थ और ऊर्जावान बने रहें। दीर्घायु... शतायु 100 की उम्र को पार करें। हम सबकी मनोकामना है ईश्वर हमें रघु जी के जन्म की स्वर्ण जयंती मनाने का अवसर दें।