Morning Woke Time

Morning Woke Time
See Rising sun & Addopete Life Source of Energy.

Sunday 19 October 2014

लोकल गवर्मेंटों की राजनीतिक कमियां हो पूरी ..........!

स्थानीय जन प्रतिनिधि राजनीतिक शपथ और विनियमन के हकदार .......... !


1.  स्थानीय जन प्रतिनिधित्यों को मिलेगा या लेंगे सम्मान ……. ?
2.  महिला स्थानीय जन प्रतिनिधियों के पतियों का दखल हो प्रतिबंधित  
3.  नगर निगम और नगर पालिकाएं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की बनें गंभीर और समन्वित प्रशिक्षण स्थल
4.  किसी भी व्यक्ति को दोबारा ना मिले चुनाव में टिकट
5.  स्थानीय चुनाव बनें राजनीतिक दलों की प्रयोगशाला

दिसम्बर 2014 में प्रदेश के नगरीय निकायों और जनवरी 2015 में ग्राम पंचायतों के चुनाव होने जा रहे हैं। ये लोकल गवर्मेंट हमारे प्रजातंत्र की प्राथमिक पाठशाला और प्रयोगशाला हैं। जहां हमारे लोकतंत्र को मजबूत आधार और विस्तार मिलता है। यहीं भावी राजनीतिक सदस्य तैयार होते हैं। भले ही शुरूआत में इस क्षेत्र में कुछ गल्तियां होती हों। भारत के पहले प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा था – प्रारंभ के समय में हमारे जन प्रतिनिधि भले ही कितनी गल्तियां करें। उन्हें करने देना चाहिए। और स्थानीय लोगों को हमें बार-बार अधिकार देना चाहिए। यहीं वो लोग है जो आगे चलकर परिपक्व होकर व्यवस्था को आधार और दिशा देंगे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने तो स्थानीय शासन के जरिए ही देश में राम राज लाने का सपना देखा था।
हमारे पूर्वजों और लाभ की भावना को देखकर सबसे पहले स्थानीय जन प्रतिनिधियों को जीतने के बाद राजनीतिक शपथ दिलवाना चाहिए। उनके कार्यकाल का विनियमन भी किसी राजनीतिक व्यक्ति ने करना चाहिए। प्रशासनिक व्यक्ति ने नहीं। इससे जमीनी स्तर पर सरकार की अगुवाई करने वाले लोगों की गरिमा और उत्साह में बढ़ोत्तरी होगी। उमंग से भरकर वे निष्ठा और ईमानदारी से विकास कार्य करेंगे। अपनी शिकायत को अपने राजनीतिक वरिष्ठ के पास खुलकर निडरता से बोल सकेंगे। प्रशासन की प्रक्रिया के लंबे, नीरस, और उलझनों में उलझी दुरूह निर्णय प्रक्रिया के दूर हो जाने पर स्थानीय जन प्रतिनिधी विमुख नहीं हो पायेंगे। स्थानीय स्तर पर चुने हुए नेताओं को शपथ दिलाने और उन्हें विनियमन के ये दोनों काम अभी प्रत्येक जिले के कलेक्टर करते हैं।
बोला जाता है। स्थानीय प्रतिनिधियों के बड़े विस्तार और संख्या अधिक होने के नाते उन्हें किसी राजनीतिक व्यक्ति के द्वारा शपथ दिलाना या सीधे नियंत्रण में लेना व्यावहारिक नहीं है। इससे संबंधित व्यक्ति के पास काम इतना अधिक बढ़ जायेंगा कि जिसे व्यावहारिक तौर क्रियान्वित कर पाना कठिन और खर्चीला होगा। सबसे बढ़कर इस काम से नीचलें स्तर पर राजनीति प्रवेश कर जायेंगे। जो राजनीतिक रूप से कम अनुभवी इन लोगों और समाज के लिए ठीक नहीं है। कारण अनेक है, लेकिन हमें कदम बढ़ाना तो होगा।
माना !  राज्यपाल एक संवैधानिक पद है। महामहिम को ये अधिकार देना व्यावहारिक नहीं है। रही बात मुख्यमंत्री की तो इससे उनके काम में भारी विस्तार हो जायेंगा। इसका प्रभाव प्रदेश के शासन कार्यों पर पड़ेगा। इन सभी बाधाओं के बावजूद हम इतना तो कर ही सकते है। नगरीय निकायों के चुने हुए जन प्रतिनिधियों को प्रदेश के नगरीय निकाय और स्थानीय शासन मंत्री से शपथ दिलाकर। सीधे उन्हें इनके नियंत्रण में दिया जा सकता है। इसी भांति ग्राम पंचायतों के चुने हुए लोगों को प्रदेश के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री से शपथ दिलवाकर। इन्हें भी इस मंत्री के अधीन विनियमन के दायरे में लाकर निजात दिलाई जा सकती है। इससे हमारा राजनीतिक लक्ष्य भी पूरा होगा, और ज्यादा कोई व्यावहारिक कठिनाई भी नहीं आयेंगी। प्रजातंत्र के इस पवित्र काम को प्रदेश की राजनीति स्वयं आगे बढ़कर पूरा करेंगी या नहीं। या फिर इस काम को पूरा करने के लिए जन प्रतिनिधी स्वयं आगे बढ़कर शासन से मांग करेंगे। ये समय बतायेंगा।
स्थानीय स्तर पर मध्यप्रदेश ने महिलाओं के लिए लोकल चुनावों में 50 स्थान आरक्षित किए हैं। इस कदम से महिलाओं को स्थानीय शासन में प्रशंसनीय प्रतिनिधित्व मिल रहा हैं। स्थानीय शासन में आये क्रांतिकारी बदलाव के इस शुरूआती दौर में पुरूषों ने अपनी पुरातन मानसिकता के चलते कहों या मजबूरियों के। एक नई अवधारणा पतिवाद चला रखी है। महिलाएं इस क्षेत्र में बड़े तौर पर अपने राजनीतिक हक के प्रयोग के मामलें में आज भी पृष्ठ भूमि में दबी हुई हैं। कहीं शिक्षा के बहाने कहो या उम्मीदवार नहीं मिलने के बहाने। या फिर आर्थिक कमजोरी के। या दबंगाई के डर से। बात एक है। सुधार होना जरूरी है। तभी हम बिना लिंग भेदभाव के वास्तविक स्थानीय प्रजातंत्र बना पायेंगे। बड़े आकार ले चुके इस पतिवाद को शासन ने आगे बढ़कर अवश्य रोकना चाहिए। कोई कानून बनाकर कठोरता से क्रियान्वित होना श्रेष्यकर होगा।
हमारी संसदीय शासन प्रणाली की कमियों को दूर करने विकल्प के तौर पर हमने नये नगर

Add caption
पालिका और नगर निगम अधिनियम में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया है। इन दोनों शहरी संस्थाओं को स्थानीय सरकार के साथ मिलकर राज्य सरकार को गंभीर और समन्वित राजनीतिक प्रयास करना चाहिए। समय-समय पर रिफ्रेशर ट्रेनिंग देना होगी। अध्यक्षात्मक शासन की अवधारणा और महत्व समझाना होगा। इस पावन काम को स्थानीय प्रतिनिधित्व करने वाले लोग भी गंभीरता से लें। तभी हम प्रजातंत्र की अगुवाई करने वाली इस अवधारणा में से अच्छी बातें ले सकेंगे। हमारे लोकतंत्र को स्थीर मजबूती दे सकेंगे।
जनता के तंत्र की विशेषता है। यह किसी व्यक्ति विशेष, परिवार, समूह या संगठन का नहीं हैँ। यह सब लोगों का हैं। इस पर सबका नैसर्गिक हक है। बारी-बारी से व्यवस्था को चलाने का अधिकार देश के हर नागरिक को मिलना चाहिए। ऐसा व्यवहार में तभी संभव है जब राजनीतिक दल अपने यहां उम्मीदवार बनाते समय पुनर्नियुक्ति के भेदाव के अपने यहां से हटा दें। दोबारा स्थानीय स्तर पर किसी व्यक्ति को टिकट नहीं दें। चाहे वो फिर राजनीतिक पुरस्कार के नाते हो, या व्यक्तिगत राजनीतिक संबंधों के नाते। राजनीतिक धरोहर का स्वामी होने के नाते रिस्तेदारों को बार-बार टिकट देना भी गलत है। इसी तरह अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के नाते ही क्यों न दोबारा टिकट दिया जाय। अपनाए गये सभी तरीके प्रजातंत्र के मूल सिद्धांत शासन में भागीदारी सभी का हक, के विपरित है।
सभी विशेषकर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से विनम्र अपील हैं। वे आगामी स्थानीय चुनावों में प्रयोग के तौर पर ही सही किसी भी व्यक्ति को दोबारा टिकट नहीं दें। इससे दल विशेष ही वास्तविक तौर पर प्रजातांत्रिक आकार लेगा। लोकतंत्र के मूल सिद्धांत के अनुसार शासन में अधिकतम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित होगी। अवसर बढ़ने से राजनीति के प्रति लोग अधिक आक्रष्ट होंगे। इन प्रयोगशालाओं से सार्वजनिक जीवन में अधिक अच्छे लोग आयेंगे। प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे सार्वजनिक जीवन में सुचिता आयेंगी। निष्ठा का समावेश होगा। राजनीति चलित हो जाने के कारण व्यावसाय के तौर पर अपनाने वालों के लिए राजनीति धरोहर नहीं रह जायेंगी। राजनीति में चल रहे दोष काफी हद तक स्वमेव कम हो जायेंगे। एक विकसित और स्थिर राजनीतिक ढांचे के सहारे, हम भविष्य में विकसित देशों से प्रतिस्पर्धा कर पायेंगे।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

Friday 17 October 2014

गलत कामों की आवाज ना बनें मतदाता ............. !

सार्वजिनक जीवन नैतिक मूल्यों के सहारे बिताया जाता है, जिसमें भौतिक वस्तुओं से विरक्ति सबसे ऊपर होती है। लोक कल्याण ही उसका नित्य कर्म होता है। देश की सारी जनता उसका परिवार। पूरी सार्वजिनक सम्पत्ति उसकी होती है। फिर संग्रह की आवश्यकता की उसे कोई आश्यकता नहीं रह जाती। इस तरह समाज का ये सेवक पूरी निग्रह होता है। उसके जीवन में संग्रह कोई स्थान नहीं रखता।
यही वे कारण सार्वजनिक व्यक्ति को सदियों तक याद किया जाता है। जगह-जगह उसकी मूर्ति लगाकर, सरकारी योजनाओं या संस्थाओं का नाम उस सार्वजिनक व्यक्ति के नाम पर रखकर उसे अमर बनाया जाता है। जो एक आम व्यक्ति को नसीब नहीं होता है। वो लुप्तप्राय जिन्दगी जीता है, और मरने के बाद भी उसे कोई याद नहीं रखता। लेकिन आज मोह सार्वजिनक जीवन में भी व्यक्ति को इन मूल्यों पर जीवन नहीं बिताने देता। वो अपने लिए या अपने सगे-सबंधियों के अतुल सम्पति एकत्र करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता। नैतिक मूल्य उसके सामने बौने और सामयिक तौर पर निर्थक हो जाते है।
इन बातों के होते हुए, यदि देश का मतदाता आंखें मूंदकर भष्टाचार करने वाले के पक्ष में आवाज उठाता है। तो मानसिक तौर पर विकसित हो रहे मतदाता के लिए इससे बढ़कर गलत बात क्या हो सकती हैंजनता के द्वारा ऐसा करने सार्वजिनक जीवन में सुचिता कैसे आयेंगी ?  कोई व्यक्ति यदि सार्वजिन व्यक्ति होते संयम खोकर इन नैतिक नियमों की सीमा रेखा को लांघता है, उसे दंड देने या न देने के लिए सम्बंधित अंगों को अपना करने देना चाहिये। अपराध को सजा होने के बाद, सार्वजनिक जीवन के दूसरे लोगों को आगाह करेगी। वे गलत कामों से दूर रहेंगे। बड़े-छोटे का भेद कम होगा। आम और खास दोनों को अपने गलत काम की सजा मिलेगी। सार्वजिनक जीवन में सुचिता आयेंगी।
सार्वजिनक जीवन में सुचिता लाने सरकार के तीनों अंगों को तत्परता और निष्ठा दिखानी चाहिए। कार्यपालिका और विधायिका के ढीले रवैये ने देश के लोगों में इस काम के लिए निराशा भर दी है। हां ! हॉल ही के वर्षों में न्यायपालिका ने इस गलत काम को लगाम लगाने सक्रियता अवश्य दिखाई है। उसके सामने कोई खास नहीं है। गलत काम करने की कोई मजबूरी नहीं। सब आम की तरह अंदर। रहना-खाना सबके साथ। अपराध की भनक लगते ही बिना समय गवाए व्यक्ति दरवाजे की पीछे। निष्पक्ष जांच होते तक अंदर कीजिए आराम। व्यक्ति विशेष ने सार्वजनिक जीवन का चुना है रास्ता। फिर डर कैसा अच्छे कामों से होना है उसे अमर। बुरे काम हैं गलत।
राजनीतिक मजबूरियों के चलते कहों या राजनीतिक के ढीले रवैये से सार्वजनिक जीवन में सुचिता लाने के काम तेज नहीं हो पा रहे हैं। कार्यपालिका और विधायिका सुचिता को जमीन पर नहीं उतार पा रही है। ऐसे में यदि न्यायपालिका सुचिता लाने सक्रियता दिखा रही है, तो इसमें गलत क्या है ?  न्यायपालिका के द्वारा देश की  जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करने के नाम पर उसे समय-समय पर विधायिका के लोगों द्वारा डटकारा क्यों जाता हैबनायी गई विधि की सीमा रेखा के अंदर उसे न्याय देने की हिदायत दी जाती है। माना विधि बनाना विधायिका का विशेषाधिकार है, जिसके सहारे वो न्यायपालिका को संयमित कर सकती है।
ऐसे में, विकल्प नहीं होने के कारण सार्वजनिक जीवन में सुचिता लाने के लिए न्यायपालिका ही सक्रियता दिखा रही है। न्यायपालिका ने हॉल ही के सालों में गलत कामों को रोकने जन इच्छा अनुसार अपने कर्तव्य को अमल में लाया है। न्याय पालिका की ही देन है कि उसने गलत काम करने वालों को सलाखों के पीछे धकेलकर मिसाल कायम की। पूर्व संचार मंत्री सुखराम, पूर्व संचार मंत्री ए. राजा, औम प्रकाश चौटाला, लालू प्रसाद यादव, बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य दिग्गजों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसे भी न्याय पालिका ने नहीं बख्शा।    दूर संचार घोटाला, कोल ब्लॉक घोटाला हो या फिर अन्य कोई बड़े से बड़ा घोटाला। न्यायपालिका ने सबका पर्दा फाश किया। अब 18 साल बाद ही सही। तमिलनाडु की पर्व सीएम जय ललिता की बारी आयी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब सीएम के पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति सलाखों के पीछे गया है। यही नहीं मामले में चार साल की कैद, आगामी 10 साल तक चुनाव लड़ने पर मनाही के साथ 100 करोड़ रूपये का रिकॉर्ड जुर्माना हुआ है। ऐसे में जनता द्वारा न्यायालय के काम में दखल देना और किसी का पक्ष लेना समझ के परे है। जूडिशियल को अपना काम करने देना ही ठीक है।
कार्यपालिका और विधायिका गलत कामों को रोकने गंभीर सक्रियता नहीं दिखा रही है। जो उसका एक पवित्र कर्तव्य है।  ऐसे में ! विकल्प नहीं होने के कारण उसे भरने के लिए मतदाताओं को ये काम करना है। हमें दिखा देना है, कि मतदाताओं की परिपक्व हो रही आयु गलत काम करने वाले किसी व्यक्ति का पक्ष कभी नहीं लेंगी। मतदाता कभी व्यक्ति विशेष के प्रति अंध भक्ति नहीं दिखायेंगे। देश की जनता ने सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति को युगों तक जीवित रहने के लिए अमरत्व की दौलत कमाने का मौका दिया। ये सबसे बढ़कर है। इसके बाद राह भटक उसने यदि कोई गलत काम किया है, तो वह आम की तरह सजा का भागीदार है। ताकि गलत काम को मिला दंड भविष्य के लिए एक संयम रेखा बनें।
हम युवा मतदाता तभी कहलायेंगे। जब किसी गलत बात की तरफदारी नहीं करेंगे। इससे हमारे देश का प्रजातंत्र एक नया आकार लेकर विश्व की अगुवाई करेंगा। दूसरों के लिए अनुकरण करने वाला बनेगा। ऐसा हम युवा होते मतदाता ही कर सकते हैं। देश की राजनीति को भी गलत काम करने वालों की राह रोकने के लिए मजबूर कर सकते हैं। सरकार को सुचिता की दिशा में चलने की राह दिखा सकते हैं। किसी भी देश की जनता में जब तक नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती, तब तक उस देश में मूल्य आधारित जीवन का विकसित होना संभव नहीं है। इस काम को हम मतदाताओं को ही करना हैं।

(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्टाय, इदम् न मम्)   

Monday 13 October 2014

मध्यप्रदेश बनेंगा निवेश का किंगपिन

ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट 2014


1.  100 अरब डॉलर का निवेश भारत के दरवाजे पर
2.  मध्यप्रदेश ने किए 6.89 लाख करोड़ रूपये के निवेश समझौते
3.  17 लाख से अधिक लोगों को मध्यप्रदेश में रोजगार के अवसर मिलेंगे
4.  देश के राज्यों में आगे निकला मध्यप्रदेश
5.  केन्द्र और राज्य में एक पार्टी की सरकार एक सुअवर
6.  निवेश को जमीन पर लाना एक बड़ी चुनौती

आज विश्व में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था दिशा के विपरित नहीं बह सकती। उसे अब पूंजीवाद के साथ ही शामिल होकर अपनी भूमिका तय करनी होगी। चाहे राह में कितनी कठिनाईयां क्यों न हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा। हां हॉल ही में जनसंख्या में सबसे बड़े साम्यवादी देश चीन के राष्ट्रपित चाऊ एन लाऊ ने जरूर एक बड़ी रोचक टिप्पणी की। लाऊ ने कहा प्रजातंत्र का अंधानुकरण ठीक नहीं। 
ईराक, अफगानिस्तान, सीरिया, मिस्त्र सहित अरब के अन्य देशों में आए उथल-पुथल का उदाहरण देकर उन्होंने अपनी बात को उचित ठहराया। सच-गलत जो भी हो लेकिन आज विश्व में लोकतंत्र समर्थक देशों का बहुमत तो तिहाई से भी अधिक है। समय अनुसार हमें बहुमत के साथ चलना होगा। पूंजीवाद के रास्ते ही सही लेकिन हमें हर देश से जुड़कर विश्व अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे निकलना होगा। उत्पादन बढ़ाकर हमारे विकास के साथ-साथ बाजार तलाशकर उस पर अपना हक जमाना होगा।
भारत में वोटरों ने इस समस्या को हल करने की राह आसान की। उसने विगत लोकसभा के आम चुनावों में एक राजनीतिक दल को रिकॉर्ड बहुमत देकर गठबंधन की मजबूरी को दूर किया। समय की नब्ज को जानने वाले नरेन्द्र मोदी ने भी हिन्दुस्तान के प्रधान मंत्री पर बैठते ही विश्व के देशों की ताबड़-तोड़ विदेश यात्रायें की। आज नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से 100 अरब डॉलर का निवेश भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। प्रधान मंत्री मोदी ने भी साहसी आह्वान कर डाला। भारत के जिस राज्य में भी जितना दम है उतना निवेश लेकर अपना कल्याण कर लें। इम मंगल काम में उनका राजनीति से ऊपर उठकर हर प्रदेश को पूरा साथ है।
भारत के ह्रदय में बसने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बिना समय गवांए अपने राज्य को देश की अर्थव्यवस्था के ड्राइविंग सीट पर लाने 8, 9 और 10 अक्टूबर 2014 को इंदौर में ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट कर डाली। शिवराज सिंह चौहान ने निवेश को आकर्षित करने के मामलें में देश सभी 29 राज्यों को पीछे छोड़ दिया। उन्हीं के प्रयासों से आज मध्यप्रदेश ने 6.89 लाख करोड़ रूपये के निवेश समझौते किए है। इससे आम आदमी की आय बढ़ने से उसका जीवन खुशहाल होगा।
 इसके साथ ही हर साल राज्य में 17 लाख लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। रिकॉर्ड उत्पादन को उपभोग के साथ निर्यात कर मध्यप्रदेश देश ही नहीं विश्व के औधोगिक क्षेत्र में ऊंचाई के स्तर को छुएंगा। इस पवित्र काम को पूरा करने शिवराज को उनकी ही पार्टी के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का पूरा साथ है। हमारे ऊर्जावान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं निवेश को धरातल पर लाने निरंतर समीक्षा करेंगे। उन्होंने अपने काम को अंजाम तक पहुंचाने निवेशकों के हित में कोई घोषणा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। शिवराज ने सभी बाधाओं को दूर कर निवेशक की पहुंच सीधे मुख्यमंत्री तक बना दी है। 
शिव और नरेन्द्र के इन संयुक्त प्रयासों से प्रदेश में स्टील, फर्टीलाइजर, पेट्रोल, एनर्जी, इंफ्राइंस्ट्रक्चर, उत्पादन, खेती, शिक्षा, हेल्थ, आईटी, पर्यटन, सहित रक्षा में चार चांद लगकर मध्यप्रदेश का डिजिटल राजधानी बनेना का सपना पूरा होना बाकी है। मध्यप्रदेश के पास राजनीतिक स्थिरता, ऊर्जावान खुले दिल का नेतृत्व, शांति, जगह और सस्ता श्रम हैं। अब हमारा ये सपना अवस्य साकार होगा। भारत की तेज गति से रनअप कर रही इस अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक जोर मानव संसाधन तैयार करने कौशल प्रशिक्षण पर दिया जा रहा है। 
इन्हीं प्रक्षित हाथों की आज अधिक जरूरत है। स्कील डेवल्पमेंट के जरिए ही सस्ते रास्ते सरलता से रोजगार प्राप्त किया जा सकता है। मेरा आम आदमी विशेसकर मध्यम या गरीब लोगों से अनुरोध है कि अपने बच्चों को आईटीआई या अन्य किसी स्कील डेवल्पमेंट प्रोग्राम की ट्रेनिंग देकर उन्हें काबिल बनाएं। इससे परिवार ही नहीं घर, समाज, प्रदेश और आखिरकार राष्ट्र हित ही होगा।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)   

Sunday 12 October 2014

महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव परिपक्वता दिखाने का एक मौका

मतदाता सही दबायेंगे ईवीएम की बटन

1.  राजनीतिक दलों का टूटा गठबंधन बनेगा वरदान
2.  मतदाता ना चूके ये समय ने दिया ये अवसर
3.  वोटर दें किसी एक राजनीतिक दल को पूरा बहुमत
4.  राष्ट्रीय हित-अहित देखकर ही करें मतदान
5.  अब वोटरों का हर कदम प्रजातंत्र को मजबूती और दिशा देने वाला हो

आगामी 15 अक्टूबर सन् 2014 को महाराष्ट और हरियाणा विधान सभाओं के आम चुनाव हैं। केन्द्र सरकार में लोकसभा के हुए आम चुनावों को हुए अभी आधा साल भी नहीं बीता है। बीते संसदीय चुनावों में मतदाताओं ने जिस प्रकार एक दल को रिकार्ड बहुमत देकर संघ की सत्ता सौंपी वह काबिले तारिफ ही नहीं वंदनीय है। मतदाता ही हैं जिन्होंने देश में गठबंधन को हटाकर किसी एक दल को बिना किसी लाग-लपेट के राज सौंपकर एक सशक्त भारत बनाने की ओर कदम बढ़ाया है। अब गेंद राज करने वाले दल के पाले में है, जिसकी दिशा भविष्य बतायेंगा।
अब यहीं मौका लोकसभा चुनावों के बाद जल्द ही समय ने हमें दिया है। आगामी 15 अक्टूबर 2014 को महाराष्ट्र और हरियाणा में विधान सभा के आम चुनावों की वोटिंग हैं। ये दोनों चुनाव मतदाताओं के लिए तात्कालिक तौर एक सुअवसर हैं। दोनों राज्यों में हो रहे इन चुनावों में भारत के लोकतंत्र को समय ने एक वरदान दिया है। वोटरों को चाहिए की वे एक गलत कदम ना उठाएं। उल्टी दिशा में उठे मतदाताओं के कदम उनकी परिपक्व हो रही मानसिक आयु पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देंगा।
 ऐसी ही कोई गल्ती को होने से रोकने के लिए राष्ट्र वोटरों की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। भारत को हर हालत में सन् 2020 तक आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी एक विकसित देश बनकर अपनी असरदार भूमिका निभानी है। हिन्दुस्तान को सर्वधर्म समभाव की राह पर चलकर संसार की अगुवाई करनी है। देश को इस मुकाम तक कोई राजनीतिक दल नहीं बल्कि समझदार मतदाता ही ले जा सकते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा में हो रहे इन चुनावों में मतदाताओं को और कुछ नहीं करना है, बस किसी एक राजनीतिक दल के सिर पर ताज पहनाना है। वोटरों के इस कदम से राजनीति की वॉशिंग तो होगी होगी ही, दूसरी ओर  राजनीतिक दल संयमित ही नहीं आगाह भी होंगे।
महाराष्ट्र में हो रहे विधान सभा चुनावों में चारों बड़े दल स्वतंत्र चुनाव लड़ रहे हैं। आज के युवा मानसिक आयु वाले वोटरों की नजरों के सामने विकास अहम है, तो वहीं देश की एकता और अखंडता सर्वोपरि। परंपरावादी और सकुचित सोच का आज के जीवन में कोई महत्व नहीं। विकास के मुकाम को किसी एक दल को बहुमत देकर ही प्राप्त किया जा सकता है। गठबंधन और क्षेत्रीय दलों को तिलांजली देकर ही देश की एकता और अखंडता को मजबूत बनाया जा सकता है। व्यापक आधुनिक सोच के सामने संकुचित विचार ठहर नहीं पायेंगे। ऐसा नहीं है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में वोटरों ने पहली बार कमजोर शासन को हटाया है। 
इन लोकसभा चुनावों से पहले भी उत्तर प्रदेश, बिहार और दूसरे राज्यों में हुए विधान सभा के आम चुनावों में जनता ने अपनी परिपक्व मानसिक आयु का परिचय देकर एक दल को रिकॉर्ड बहुमत देकर लोकतंत्र को विकसित बनाने का परिचय दिया है। उत्तरप्रदेश में जनता ने पहले दलित की बेटी को मायावती को सराकों पर बिठाया, उसके बाद समाजवादियों को समाज की कमान दी है। भाजपा को साथ लेकर नीतिश कुमार के जरिये बिहार को व्यक्तिवादी शासन के कहर से निजात दिलाई।
मुझे लगता है, महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों में वोटर इस बार अपने दूरगामी लक्ष्य को साधने के लिए केन्द्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को देखते हुए, महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों में विजयश्री का ताज भारतीय जनता पार्टी के सिर पर ही पहनाएंगी। बीजेपी की जीत लगभग सुनिश्चित है। 
यदि जनता जनार्दन ऐसा नहीं करना चाहे तो वह अपने प्रदेश की बागडौर भावी महिला मुख्यमंत्री एनसीपी की नेता सुप्रिया सूले को दे सकती है। तीसरे नम्बर पर आती है, स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे की पार्टी। लम्बे समय तक सिंहासन सुख भोगने से पैदा बुराईयों के कारण, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का तो इस क्रम में चौथा नम्बर लगता है। आखिर में आती है नई-नवेली महाराष्ट्र नव निर्माण सेना, जिसे अभी और लम्बा संघर्ष करना है। 
रही बात हरियाणा राज्य के चुनावों की तो इस राज्य में लंबे समय से राज कर रही कांग्रेस के बाद जनता शासन क्रम पलटना ही है। इस नाते हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ही स्वाभाविक तौर से सत्ता पर काबिज होगी। हरियाणा में आम आदमी पार्टी विधान सभा के चुनाव नहीं लड़ने के कारण भाजपा के रास्ते में कोई रोड़ा भी नहीं है। मायावादी की बहुजन समाज पार्टी भी हरियाणा के चुनाव मैंदान से बाहर है। वहीं समाजवादियों का का इस राज्य में कोई वजूद नहीं है।
इन द्वन्द्वों के बीच आखिरकार मतदाता विधान सभा के इन चुनावों में किसी एक दल को पूरा बहुमत देकर अपने प्रदेश के साथ-साथ देश के लोकतंत्र को एक मजबूत दिशा देंगे। अपनी मानसिक आयु के बढ़ते ग्राफ को नींचे नहीं ले जायेंगे। देश के साथ-साथ मैं भी जनता जनार्दन की ओर इसी आशा भरी नजरों से देख रहा हूं। मेरे देश वे निराश नहीं करेंगे।
(इदम् राष्ट्राया स्वा:, इदम् राष्ट्राया, इदम् न मम्)