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Thursday 13 November 2014

स्वच्छता अभियान के बीच उठी विरासत पर सियासत !

विचारधारा को समृद्ध बनाने और बचाने की होड़


1.  14 से 19 नवम्बर तक देश में चलेगा स्वच्छता अभियान
2.  17 और 18 नवम्बर को पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपलब्धियों पर अंतर-राष्ट्रीय सेमिनार
3.  समग्र सफाई केवल हमारे आसपास या राजनीति सहित पूरे सार्वजनिक जीवन की
4.  समग्र सफाई अभियान के बहाने राजनीति तो नहीं ?  
5.  स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई करने वाला दल कांग्रेस तिलमिलाया

15 अगस्त 2014 को, पूर्ण बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी की पहली सरकार के प्रधान मंत्री ने नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश में समग्र स्वच्छता अभियान चलाने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत की। स्वच्छता पसंद और उसे अपने व्यावहारिक जीवन में उतारने वाले हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर से समग्र स्वच्छता अभियान की शुरूआत कर नरेन्द्र मोदी ने देश का दिल जीत लिया। उन्होंने क्लीन इंडिया का नारा देकर अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति जन-जन के सामने जाहिर की।   
जन-जन की भागीदारी वाली इस योजना का भावी हश्र जो भी हो, लेकिन योजना शुरूआती दौर में सांकेतिक तौर पर ही सही पर चल बड़े जोर-शोर से रही है। लोगों में प्रतिस्पर्धात्मक उत्साह और उमंग देखने को मिल रहा है। 
जनता की नाराजगी का डर सताने के कारण सभी राजनीतिक दल इसमें शामिल हो रहे हैं। लोग भी समय-समय पर इन राजनीतिक पार्टियों के साथ भागीदारी कर रहे हैं। भले ही प्रधान मंत्री के ध्यान से ओझल होते ही सफाई अभियान को राजनीतिक कार्यकर्ता और दोनों ही भूल जाते हैं। सफाई अभियान देश में अभी उच्चतम और निम्नतम स्तर के ग्राफ से चल रहा है। इन सब व्यावहारिक कठिनाइयों के बावजूद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अपने व्यस्तम समय में से कुछ समय निकालकर विशेष समयों पर देश में सफाई अभियान में भाग ले रहे है। प्रधान मंत्री के इन कदमों से लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता का संचार हो रहा है। प्रधान मंत्री के बार-बार आव्हान का देश के जनमानस पर गहरा असर हो रहा है। फिर भी, देश में समग्र स्वच्छता अभियान तब तक सफल नहीं हो जब तक लोग उसे व्यक्तिगत नैतिक दायित्व न बना लें। बस एक यही काम है, जिसे हमारे देश की जनता को स्वच्छ भारत बनाने के लिए करना है।
अब आधुनिक भारत के निर्माता कहलाने वाले पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती 14 नवम्बर, बाल दिवस से लेकर देश की आयरन लेडी के नाम से पहचानी जाने वाली पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्म दिन 19 नवम्बर तक देश में सघन स्वच्छता अभियान चलाने का आह्वान किया गया है। इस समय को बीजेपी के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विशेष तौर पर सफाई अभियान के लिए चुनने पर देश में बहस चल निकली है। लोग कहने लगे हैं समग्र सफाई के बहाने  कहीं ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विचारधार विहीन बनाने का प्रयास तो नहीं है ?  बीजेपी के पास पहले से ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद और पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हैं। ऊपर से बीजेपी गांधीवाद को अपने संविधान में शामिल कर विचारधारा को समृद्ध बनाये हुए है। उचित और तेज  कदम बढ़ाते हुए।
कांग्रेस द्वारा हांसिये पर धकेले हुए, भारतीय बिस्मार्क को बीजेपी ने राष्ट्रीय सम्मान की मुख्य धारा में लाकर सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधार को ले लिया। सबसे पहले बीजेपी ने सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा लागाने की घोषणा की। फिर देश भर में रन ऑफ युनिटी का आयोजन किया। इसके बाद 31 अक्टूबर 2014 से सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिन को देश भर में एकता दिवस के रूप में मनाना प्रारम्भ कर दिया। रही बात जयप्रकाश नारायण और उनकी समग्र क्रांति की तो बीजेपी समय-समय पर लोकनायक की इस विरासत पर के प्रति भी गहरी संवेदना जताती रही है। 
वैसे भी जयप्रकाश नारायण आपातकाल के दौरान बीजेपी की पूर्वगामी भारतीय जनसंघ के संगी-साथी रहे है। जयप्रकाश नारायण ने इस कठिन समय में देश को एक ओर लोक नेतृत्व दिया तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आपातकाल का विरोध करने में सबसे अधिक बढ़-चढ़कर भागीदारी की है। ऐसे में बीजेपी समग्र क्रांति को अपने दायरे में पूरी तरह लेकर कभी भी देश के विकास के मार्ग के दर्शन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के साथ शामिल कर सकती है। भारत की पूरी स्वतंत्रता के लिए सपना देखने वाले गरम दल के नेता आजाद हिन्द फौज के कमॉण्डर सुभाष चन्द्र बोस को बीजेपी ने नीरस मन से याद भर करने की जगह राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मान देकर अपना बताना प्रारंभ कर ही दिया है। देश की स्वतंत्रता में क्रांतिकारियों के योगदान की अनदेखी सहन नहीं होने के कारण बीजेपी ने अब चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल जैस अन्य सभी क्रांतिकारियों को भी देश के लिए वंदनीय बनाने का काम करना प्रारंभ कर दिया हैं। बीजेपी ने अब गांधी और सुभाष की नरम और गरम दोनों विचारधाराओं के साथ क्रांतिकारी विचारों को भी देश के लिए सामयिक करार दे दिया है।  
अब कहा जा रहा है, समग्र स्वच्छता के बहाने बीजेपी कांग्रेस के इन दोनों बड़े नेताओं पर डोरे डाल रही है। इससे बीजेपी नेहरू और इंदिरा की विचारधारा पर कब्जा कर कांग्रेस को विचारधारा विहीन बनाना चाहती है। बीजेपी के इस कदम से कांग्रेस तिलमिला उठी है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के जीवन पर इसी दौरान 17 और 18 अक्टूबर को दो दिवसीय अंतर-राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया है। सेमिनार में देश के सभी विपक्षी दलों के प्रमुखों सहित विश्व के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को बुलाया हैं।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रण नहीं दिया गया। इस सम्मेलन में पंडित जवाहर लाल नेहरू के
जीवन की उपलब्धियों को देश के सामने रखा जायेगा। उन्हें प्रचारित किया जायेंगा। नेहरू के कार्यों पर शोध का रास्ता साफ किया जायेगा। नेहरू - इंदिरा की विरास को नष्ट करने का आरोप लगा रही कांग्रेस के पास से इन दोनों लोगों को बीजेपी अपनी झोली में खींच लेती है, तो कांग्रेस के पास विचारधारा के नाम पर ना के बराबर ही बचेगा। बस आगे खड़ी होगी एक पूर्ण समृद्ध विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी। जिसके पास विचारधारा के नाम पर भेदभाव का कोई आरोप नहीं होगा। बीजेपी विपक्ष को विचाराधारा से ही बेदखल कर देंगी ? भविष्य अब बीजेपी की तरह विपक्ष के जीवन में आगामी 65 सालों तक सत्ता में आने का मुंह ताकने का काम देने की तैयारी न कर रहा हो ?  ऐसे में सकते में आयी कांग्रेस विचारधारा को बचाने अब अनेक आयोजन करने लग गई है।
हालांकि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इस क्रिटिकल समय में आगामी 20 नवम्बर तक विदेश यात्रा पर है। 17 से 19 नवम्बर तक चलाये जाने वाले इस समग्र स्वच्छता अभियान को वे अपने साथियों पर छोड़ गये है। नेहरू के जीवन पर कांग्रेस के द्वारा बुलाया गया ये अंतर-राष्ट्रीय सम्मेलन मोदी के प्रभाव से शायद दूर रहें। लेकिन नरेन्द्र मोदी अवश्य ही देश में एक विशेष बहस छोड़ विदेश चले गये है। देश का विचार इसे राजनीतिक विरासत को समृद्ध करने या बचाने की सियासत मान रहा है ?

(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)     

Friday 7 November 2014

31 अक्टूबर का दिन अब भारत का एकता और अखण्डता दिवस

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर विशेष 

 भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद करीब तीन-चौथाई समय तक देश में सत्ता की अगुवाई करने वालों ने हमारे पूर्व महान व्यक्तित्वों के साथ भेदभाव किया। जरा भी निडरता से अपना पक्ष रखने वालों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दरकिनार कर दिया। उन महान लोगों के काम और आदर्शों को अपनी विचार धारा का न तो अंग बनने दिया। और न ही मरने के बाद इन महान नेताओं के नाम  को अमर बनाने की राह पर ले गएं। देश के राष्ट्रीय आंदोलन में पर्दे के पीछे से महान भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों की ओर तो इन कर्ताधर्ताओं ने देखना भी मुनासिब नहीं समझा। एकल पार्टी के दबदबे से लंबे समय तक देश में मजबूत विपक्ष खड़ा नहीं हो पाया। भविष्य के बारे में निष्पक्ष न सोचकर कांगेस इसी अवसर में मग्न रही। राष्ट्रीय व्यक्तित्वों की धरोहर को निष्पक्ष आकार देने की बजाय इसे चंद लोगों और परिवार तक सीमित कर लिया। उन्हें ही अमर बनाते रहें। उनसे कोई दूजा नहीं। हर योजना, स्थान और संस्था का नाम बस उन्हीं चंद लोगों या परिवार के नाम पर रखा। बाकी को बेकार समझा। चाहे वो सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानन्द या फिर चन्द्रशेखर आजाद जैस अन्य क्रांतिकारी हो।
इसी का नतीजा है, भारतीय जनता पार्टी ने अकेले पूरे बहुमत के साथ केन्द्र में आते ही भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के रूप में मनाने का निर्णय लिया। 31 अक्टूबर 2014 से पूरे भारत में सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता और अखंडता दिवस के रूप में मनाई जायेंगी।

भारत के लगभग आधे भाग में सांप्रदायिक और विघटनकारी लोग सक्रिय हैं। ऐसे समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के आदर्श ही हमें याद आते हैं। जो राह दिखा सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश की 565 रियासतों को सादगी और शालीनता से भारत संघ में विलय किया। उनके इसी काम से वे आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माता और हिन्दुस्तान के लौह पुरूष तथा मैकियावेली कहलाए। पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। सरदारगीरी के काम अधिक करने के कारण वे 22 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर पाए और वकालत के पेशे में जुट गए। 1908 में विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश कमाया और धाक जमाई। प्रारंभ में पटेल गांधी जी के कामों से सहमत नहीं थे। मगर गुजरात के चम्पारन जिले में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन की सफलता देख पटेल उनके भक्त बन गए। 1930 से 1933 तक चले आंदोलनों में दक्षिण भारत की कमांड पटेल के हाथों में रही। बारदोली सत्याग्रह के समय पटेल ने किसानों से कहा – देखों भाई ! सरकार के पास निर्दयी आदमी हैं। खुले हुए भाले – बंदूकें हैं। तोपे हैं। ब्रिटेन संसार की एक बड़ी शक्ती है। तुम्हारें पास केवल तुम्हारा ह्रदय है। अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का तुम में हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो। कांग्रेस केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने आठों प्रांतों के कामों कुशलता पूर्वक किया।
दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन ने घोषणा की कि युद्ध के बाद सभी भारतीयों की इच्छा अनुसार भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जायेंगा। पटेल ने इस पर गंभीर प्रतिक्रिया की। पटेल ने मुसलमानों के प्रति अविश्वास और संदेह की शिकायत गांधी जी से की। तब गांधी जी ने कहा सरदार सीधी बात बोलने वाले व्यक्ति है। उनकी बात कड़वी लगती है पर वे दिल के साफ है। अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन के समय सरदार पटेल ने लोगों से कहा – ऐसा समय फिर नहीं आयेंगा। आप मन में भय न रखे। आपको यही समझकर लड़ाई लड़ना है कि – महात्मा गांधी और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जायेंगा। तो आप न भूले कि आपके हाथ में कोई ऐसी शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जायेंगा।
सित्मबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थायी राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। भारत विभाजन के पक्ष सरदार पटेल का कहना था सांप्रदायिकता के जहर को फैलने से रोकने के लिए पहले ही गले – सड़े अंग को आपरेशन कर कटवा देना चाहिए। देशी राज्यों के एकीकरण को पटेल ने बिना खून – खराबे के बड़ी कुशलता से हल किया। देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, बहावलपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने के लिए सरदार को कई पेचिदगियों का सामना करना पड़ा। हैदराबाद के निजाम ने राज्य में निवास करने वाली 85 फीसदी हिन्दू जनता को तीन भाषाओं में – तेलगू, मराठी और कन्नड़ में बांटकर लाभ उठा रखा था। निजाम ने राज्य की जागृति को ऐसी निरस्त करने के लिए ऐसी नीति अपना रखी थी। राष्ट्रीय आंदोलन फैलने से बचाने के लिए हैदराबाद को रेल लाइन से नहीं जुड़ने दिया गया। अंग्रेजी से बचाने और मुसलमानों की भावना को अपने ओर मिलाने निजाम ने शिक्षा में उर्दू को माध्यम बना रखा था। भारत संघ में विलय न होने के उद्देश्य से उसने चुपचाप हैदराबाद को 10 लाख रूपये में पाकिस्तान को बेचने का दुष्चक्र रच लिया था। लेकिन इस साजिश की भनक पटेल को लग गई। तब उन्होंने निजाम की दुर्गति की और हैदराबाद को भारत में मिला लिया।
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान ले। तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकार करें। अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने। बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पीटना पड़ा। चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के ऐतेहासिक कामों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक नीधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेख आदि हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा बलवती थी। एक बार जब उनका युद्धपोत गोआ के निकट से जा रहा था तब पटेल ने कमांडिंग आफिसर से तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं। कप्तान ने कहा 800। पटेल ने फिर पूछा क्या गोआ पर अधिकार करने के लिए इतने सैनिक काफी हैं।
 कमांडर ने उत्तर दिया हां। पटेल ने कहा चलो हम गोआ पर अधिकार कर लेते है। कप्तान ने पटेल से इसका आदेश लिखित मांगा। पटेल ने नेहरू के आपत्ती करने के अंदेशे से गोआ पर अधिकार करने के विचार को त्याग दिया। सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था। फिर गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर बातों को भी वे विनोद में कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर सरदार पटेल ने कहा था – सब जगह मेरा वश चल सकता है, पर जवाहर लाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा। उनका यह कहना कितना सटीक था – भारत में केवल एक ही व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है – जवाहरलाल नेहरू। शेष सब साम्प्रदायिक मुसलमान हैं।
यदि नेहरू को तत्कालीन भारत की उत्कृष्ट प्रेरणा कहा जाय तो सरदार पटेल को उनका प्रबल विनय अनुशासन कहा जा सकता है। 15 दिसम्बर, 1950 को इस महा पुरुष का 76 साल की आयु में निधन हो गया। अब इस खाली स्थान को भर पाना मुश्किल है। गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया। तो नेहरू ने गांधी की कल्पना और दृष्टिकोण को एक बड़ा आयाम दिया। वहीं जो शक्ति और सम्पूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम थी। पटेल की सेवाओं का भारत के जन-मानस पर अमिट प्रभाव है।
31 अक्टूबर को देश स्कूल, कॉलेज और सभी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के साथ जनमानस, इस लौहपुरूष की जयंती को पहली बार एकता और अखण्डता दिवस के रूप में मनाने जा रहा है। यहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल के गौरवशाली कामों और उनके धीर-शील व्यक्तित्व के लिए राष्ट्र की सच्ची भावना होगी। जो सरदार पटेल को भारत के राजनीतिक इतिहास में सच्चा स्थान दिलाकर उनका हक दिलायेंगी।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

·     ब्लॉगर एण्ड पॉलिटिकल क्रिटिसाइजर