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Saturday, 26 December 2015

मंगलमय हो 2016 का ब्रह्म मुहूर्त

संवेदनशील जीवन को ढूंढता जन जीवन

उम्मीदों के जश्न में ही बेहतर भविष्य की आशा


नये साल पर हार्दिक शुभ कामनाएं



दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत सबसे हटके विलक्षण और संवेदनशील है। सबसे पुराने इस प्रजातंत्र की स्वीकार्यता स्वाभाविक और सुदृड़ है। इसके ऊपर किसी प्रकार का भी संदेह करना, स्वीकार करना या सोचना भी गलत है। ऐसी ही अनेकों दुर्लभ विशेषताएं हैं जिसे गिनाना यहां कठिन हैं। जो दुनिया में भारत को विशिष्ट स्थान दिलाती हैं। अपनी इन्हीं चिरकालिक अलग पहचानों के बल पर अब भारत फिर से एक बार विश्व गुरू बनने की सोच रहा है। आप सोच रहे होंगे नये साल की शुरूआत राजनीतिक चिंतन के साथ ही क्यों ? तो यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार प्रसांगिक लगते हैं। गांधी जी की सोच सटीक थी। उनका कहना था। उन्हें राजनीति करने का कोई शौक नहीं। लेकिन वे राजनीति में फिर भी इसलिय सक्रिय है, क्योंकि राजनीति रूपी विषेला नाग समाज के ऊपर इस तरह पिंडली मारकर बैठ गया कि समाज के लिए उससे मुक्ति पाना नामुमकिन है।  इस विषैले साप का थोड़ा भी जहर मैं कम कर संकू तो मेरा सौभाग्य होगा। बस इसी सींख को ध्यान में रख नये साल के ऊषाकाल में राजनीति की दशा और दिशा पर अपनी सोच लोगों के सामने रखना कोई गलत बात नहीं ! राजनीति ईश्वरीय व्यवस्था के बाद इस दुनियां का सबसे बड़ा विनियामकीय क्षेत्र है। इसके भीतर समाज के सभी क्षेत्र समाहित हैं।

शुरू हो रहे नये साल 2016 के ऊषाकाल में राजनीति तेज गति से करवट ले रही है। प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों के समान ही संवेदनशील राजनीति भी धीरे – धीरे गायब होती नजर आ रही है। अब राज नैतिक  न रहकर नीतिक होता जा रहा है। पहले कांग्रेस ने 65 सालों तक भ्रम में उलझाते हुएं देश को मूल्य विहीन बनाने में कोई कोर – कसर नहीं छोड़ी। अपना राजनीतिक हित साधती रहीं। 65 सालों तक देश एक दलीय वंशानुगत राजनीति का दंश झेलता रहा। दुनिया का ये सबसे विशाल लोकतंत्र अपनी एक ही टांग पर कराहता रहा। भारत को एक शक्तिशाली विपक्ष तक नहीं दे पाया। ऐसे में भारतीय जनसंख ने राजनीति के घोर अंधेरे में दीपक की लौ जलाई। लोग उसकी ओर आशा भरी नजरों से देखने लगें। स्वयं सेवकों ने ठंडे पानी में फूले हुए चने बिना नमक मिर्ची के खाकर श्रम किया।  लोग उनके साथ होते गयें। विरोधियों की यातनाएं सहीं। आलोचनाएं झेली। लेकिन एक ही मंत्र चरैवेति – चरैवेति।  कारवां बढ़ता गया। मेहनत रंग लायी। आज लगभग 39 अनुषांगिक संगठनों का संघपरिवार हैं। अब देश में उसके विचारों का राज भी है। भारत के प्रजातंत्र के पास सशक्त पक्ष – विपक्ष। विश्व का एक परिपक्व और पूर्ण लोकतंत्र। यहां संख्या बल के आधार पर पक्ष – विपक्ष को  शक्तिशाली न मानें। बल्कि नये – पुराने दल को भी याद रखें। कभी बीजेपी कांग्रेस की तरह ही नहीं उनसे भी बुरी स्थिति में थी।
पहले अटल बिहारी वाजपेयी 6 सालों तक गठबंधन के बल पर भारतीय प्रजातंत्र को राजनीति के संक्रमणकाल से बाहर निकालने में सफल रहे। उन्होंने एक वोट की भी किसी प्रकार की गलत व्यवस्था नहीं की। एक वोट के अभाव में भी अटल जी ने अपनी सरकार गिरने दी। इतना लंबा राजनीतिक संघर्ष झेलने के बाद भी अपने पास राजनीतिक लिप्सा को फटकने तक नहीं दिया। नैतिक राजनीति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। तब राज नैतिक बनने की आशा बलवती होने लगी। राज की नीति पीछे छुटती नजर आने लगीं। इसके बाद 2014 में लोकसभा के आम चुनावों में जनता ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को करारा जवाब दिया। एनडीए गठबंधन के साथ लड़ने के बावजूद पहली बार बीजेपी को अकेले पूर्ण बहुमत दिया। लोकसभा के इन चुनावों में उत्तरप्रदेश की जनता ने 85 सीटों में से 72 सीटें बीजेपी को देकर अपनी आशा को और अधिक स्पष्ट कर सर्वोपरि बना दिया। जहां वर्षों से विखंडित बहुमत आ रहा था। जिसके एकमत होने की किसी ने आशा तक नहीं की थी। संवेदनशील राजनीति पर फिर एक बार देश की आशा बलवती होने लगी। देश उत्साह, उमंग और स्फूर्ति महसूस करने लगा।

आज बीजेपी के शासन को लगभग पौन दो साल होने को आयें। मगर देश की जनता नये साल को मनाने के शुभ अवसर पर किसी ठोस परिणाम की बाट जोह रही हैं। पहले उसने दिल्ली विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को अप्रत्याशित भारी बहुमत देकर बीजेपी की झोली में 70 में से केवल तीन सीट डालकर संकेत दिया। यहां तक कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी की जमानत तक जब्त करवा दी। इतने बड़े भरे – पूरे परिवार का कुनबा धरा का धरा रह गया। क्योंकि नैतिक मूल्यों की लौ आम आदमी पार्टी लेकर चल रह थी। जो कभी भारतीय जनता पार्टी की पूर्वज भारतीय जनसंघ लेकर चला करती थी। बीजेपी की इस हार के पीछे शायद सबसे बड़ा कारण टिकट वितरण में पार्टी के दीर्घकालीक स्थापित परम्पराओं की उपेक्षा रही हों। फिर बीजेपी के सामने बिहार में आया अपने धुर विरोधियों नीतिश और लालू का बेमेल जोड़। बिहार के विधान सभा चुनाव 2015 में तो बीजेपी अपनी पुरानी जमीन भी बचा पाने कामयाब नहीं हुई। पिछली बार से भी कम सीटों पर उसे संतोष करना पड़ा। इन विधान सभा चुनावों में बिहार की दम तोड़ती क्षेत्रीय राजनीति यहां नहीं जीती। बल्कि संवेदनशील राजनीति का झंडा लेकर यहां पहुंची बीजेपी के लड़खड़ाते कदमों को संभालने के लिए एक बार फिर जनता ने बीजेपी के कान जोर से फूंके। ताकि समय रहते इसे गुरू मंत्र समझ जागे। व्यक्ति निष्ठ बनने के प्रयास न करें। पार्टी निष्ठ ही बने रहे। उपलब्धि और कठिन समय दोनों सामूहिक हो। यशोगान में संगठन की भावना प्रतिध्वनित हो।


बिहार – दिल्ली विधान सभा चुनावों में जो हुआ वो हो भी क्यों न ?  प्रजातंत्र में सशक्त विपक्ष ही तो नियंत्रण का सर्वोच्च साधन होता है। वही तो है जो अपनी रचनात्मक भूमिका से शासन – प्रशासन को स्वच्छ बनाये रखने के साथ उसे सतर्क रख, गलत के प्रति आवाज उठाकर उसमें डर बनाये रखने का काम करता है। बीजेपी को देश की बागडौर सौंपकर अपनी नैतिक मूल्यों की धरोहर को आगे बढ़ाने का पूरा मौका तो देश की जनता ने उसे दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर जनता तो उसके साथ हैं। मगर एक परिपक्व लोकतंत्र राज्यों में भी पूरी तरह बीजेपी को एक छत्र पताका सौंपकर कैसे निरंकुता की ओर बढ़ा सकता हैं ?  खिलखिलाते प्रजातंत्र में ये मतदाताओं की परिपक्वता नहीं तो क्या ?  इससे हमारे राजनीतिक दलों को देश में परिपक्व हो रही मतदाताओं की मानसिक आयु के प्रति आगाह हो जाना चाहिए !  लोकतंत्र परिणामनोम्खी मामले पर संवेदनशील होता है। वोटर उसे सत्ताहीन कर सकता है। चुनाव प्रोपेगण्डा के दौरान होने वाली लोक लुभावन बातें भविष्य नहीं संवार सकती। जनता को धरातल पर मूर्त रूप से महसूस होना चाहिए। देश के प्रत्येक व्यक्ति के खातें में आने वाले 15 लाख रूपयों की चर्चाएं भी अब ओझल होती जा रही हैं। महंगाई से आम आदमी की थरथराहट बढ़ती जा रही हैं। विदेश यात्राएं रोजमर्रा की बात हो जाने के कारण ये लोगों के ध्यान से हटाती जा रही हैं। इन पौने दो सालों में न कोई धरातल पर ठोस निवेश आया, और न ही रोजगार के अवसरों में कोई चमत्कारिक बढ़ोत्तरी हुईं। बस विश्व लेवल पर हमारे उत्साहवर्धक चुनाव परिणामों की एवज में हमारे प्रजातंत्र की झोली में सम्मान और वाहवाही आयें। ठोस आवक नहीं हुईं। पड़ोसी मुल्क से तक चुनावी दौरान हुई चर्चा अनुरूप न कोई संबंध सुधरें और न ही कोई ठोस प्रतिकार नजर आया। पूरी दुनिया में गोपनीय रखते हुए अटल जी द्वारा परमाणु विष्फोट के काम को अंजाम देने से बुद्ध मुस्कराया तो समझ में आता है। लेकिन मोदी जी द्वारा अपनों को विश्वास में लिए बिना अचानक पाकिस्तान जाने से तो लगता है नवाज जरूर मुस्कराया।

आर्थिक सुधार सर्वहारा वर्ग के लिए नींचे से शुरू करने से उन्हें महसूस होतें। ऊपर से होने वाले सुधार तो उन्हें केवल ढांढस ही बंधा पा रहे हैं। सपने जैसा ही लग रहे हैं। लगता है धैर्य की परीक्षा हो रही है। ऊपर से सुधार नींचे वालों के साथ होते तो स्थायीत्व आता। महसूस होत। विकास होता। हम सबका। राज करने वालों और जनता दोंनों का। विधायी कार्यों में भी कोई ठोस पहल नजर नहीं आती। न्यायिक नियुक्ति आयोग पर कानून बना तो उसे भी न्यायपालिका ने रद्द घोषित कर दिया। राज्य सभा में बहुमत न होने के बहाने से जनता को कोई लेनादेना नहीं। उसे ठोस आकार चाहिएं। जिसमें वो अपने आप को बेहतर तरीके से ढाल सकें। पुराने ही कानूनों की ही कमियों को टटोलने या उनमें सुधार के लिए सुधार के प्रयास करने से काम नहीं चलने वाला हमें समन्वय की राजनीतिक संस्कृति से परिणाम लाने होंगे। हमें अटल – अडवाणी जी की गंभीर संस्कृति को अपनाना होगा। अहं या अतिशय अनुशासन को नहीं आने देना होगा। कांग्रेस तो लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, भारतीय भू-सुधार अधिनियम, भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, रोजगार गारंटी अधिनियम, सूंचना का अधिकार अधिनियम, शिक्षा का मूल अधिकार अधिनियम जैसे समय और लोकोपयोगी अधिनिय बनाकर अलग हो गई। प्रारंभिक दौर के चलते सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं कर पायी। प्रभावी दायित्व अब बीजेपी के ऊपर हैं। वो अच्छे पुराने कानूनों को प्रभावी तौर पर क्रियान्वित कर सकती हैं या इनसे अच्छे समयोंपयोगी कानून बनाकर लागू कर सकती हैं। बीजेपी को समय मिला है। राजनीति में अछूतवाद जैसी कोई चीज नहीं होती वो भी लोकोपयोगी कानूनों के प्रति। कांग्रेस ने जरूर अछूतवाद किया। बीजेपी तो राजनीतिक अछूदवाद के विरूद्ध लड़ने वाली पार्टी हैं। उसने राजनीतिक अछूतवाद के विरूद्ध लंबा संघर्ष किया है। जम्मू एण्ड काश्मीर में पीडीपी जैसी अलगावादी पार्टी के साथ राज्य में सरकार बनाने के पीछे छिपे तर्क भी समझ से परे लगते हैं। वो भी एक वोट के लिए केन्द्र की सरकार गिरा देने वाली सत्यनिष्ठ पार्टी बीजेपी के लिए ऐसे बेमेल गठबंधन।
ऊपर से जम्मू एण्ड काश्मीर में होती बीजेपी की राजनीतिक किरकिरी। उसके स्थापित सिद्धांतों से ही परे लगती है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोकपाल एवं लोकआयुक्त अधिनियम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल की नियुक्ति के लिए तो अब आम जनता को चर्चाएं तक सुनाई नहीं देती। नियुक्ति नसीब होना तो दूर। जबकि लोकपाल अधिनियम में लोकपाल की नियुक्ति के लिए तय एक साल की समय से काफी अधिक समय हो चुका है। मेरे राज्य में व्यापम काला सच जस का तस है। दूध और पानी कब  अलग होंगे पता नहीं। जबकि मध्यप्रदेश में बीजेपी लगातार 15 वर्षों तक शासन करने का रिकॉर्ड बनाने जा रही हैं। कार्यकर्ता राजनीतिक विलगाव के चलते अवसाद में चला जा रहा हैं। आंतरिक प्रजातंत्र के नाम पर कड़े अनुशासन के सहारे व्यक्तिनिष्ठ पहल सामने आ रही है। राजनीति संवेदनशील होने की बजाय अपनी नैतिक राह से भटक रही है।
आम जन जीवन पर हमारा सोचना लाजमि है। अब इससे आगे नये साल पर लिखने की कलम इजाजत नहीं देती। हां, नवंबर - 2015 में पेरिस में हुए अंतर्राष्ट्रीय ग्रीन सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग पर उठें ज्वलंत सवालों के चलते हम इस नये साल के अवसर पर हर व्यक्ति एक पौधा रोपकर अस्तित्व के संकट में पड़ते मानव जीवन को ये सर्वोतम् उपहार देकर नये साल के जश्न को झूमकर मना सकतें हैं। एक बेहतर भविष्य की आशा कर सकतें हैं। यहीं शुरू हो रहे नये साल 2016 को सर्वोत्म उपहार होगा। साथ ही हमारा सामाजिक और नैतिक कर्तव्य भी पूरा होगा।
                                       
  (इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)


Tuesday, 11 August 2015

वैचारिक द्वंद के घने कोहरे में हम सबका राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट

15 अगस्त 2015 पर विशेष


1.   जन-गण-मन ..... की एक स्वर में प्रतिध्वनि हमारी मूल पहचान 

2.   एक निष्पक्ष – चिंता या चिंतन 

3.   हमेशा ऊंचा लहराता रहे हमारा अमर तिरंगा 

4.   देश की आन-बान-शान में जा देने को हम तैयार

5.   गहरी होती कौंध से भरती जनता की आंखें 

6.   नजरों से ओझल होता निकट भविष्य

7.   उथल – पुथल के इस युग में घबरातें लोग

8.   अपने आने वाले दिनों की तस्वीर को साफ देखने लालायित देशवासी 

9.   इन हिलोरों के बाद कंचन बनकर उभरेगा देश 

10.                   दुनिया की अंगुवाई करने हम तैयार

  
 हर साल की तरह फिर आज हम स्वतंत्रता दिवस की बेला में खड़े हैं। खुशी के साथ चिंतन और मनन को लेकर आने वाले इस राष्ट्रीय पर्व को हम मनाने जा रहे हैं। 15 अगस्त की सुबह उत्साह और उमंग की ऊर्जा के साथ एक बार फिर हम सब भारत के लोगों का एक स्वर में राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट .......... !  हर संकट की घड़ी में हम सभी एक, देश हर दम एक साथ खड़ा – यहीं हम सबकी विशेषता। अच्छे विचारों को सामने लाने के लिए आंतरिक तौर पर वैचारिक मत भिन्नता जरूरी …… !  इन सबके बावजूज सबसे पहले दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए जवानों के साथ हम सब हर पल तैयार .... सजग ....... सतर्क ...... संवेदनशील ....... ।
स्वतंत्रता दिवस याने हमारे उन पूर्वजों के संघर्षों की यादों को संजोने ...... याद करने ..... उनके बतायें रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा लेने का दिन ...... जिन्होंने 180 वर्षों के अपने अथक संघर्षों से हमें ये स्वतंत्रा दिलाई। उन घोर अमानवीय यातनाओं के याद करने का दिन जो हमनें गुलामी के दौर में झेली हैं। ये यादें ही हमें बताती हैं हमें गुलामी का महत्व। ये यादे ही हमें प्रेरित करती हैं मातृ भूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने ...... संघर्ष करने ..... सतर्क रहने ...... दुश्मन को करारा जवाब देने पुरजोर जज्बा देने के लिए। 
आज हम 69 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्त किए 68 साल बित गएं। इस लंबे अर्से में भारत ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में अनेक ऊंचाईयों को छुआ हैं। भारत की मानसिक आयु ने भी अपना एक ऊंचा मुकाम हांसिल कर लिया हैं। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भारत का ये सिंहासन लगातर ऊंचा होता जा रहा है। अब हमारे बुजुर्गों ही नहीं, हमारे युवा और उनके पीछे आती किशोरों की पीढ़ी भी हमारी वैचारिक विरासत को अधिक याद करने की बजाय वो वर्तमान और भविष्य पर अधिक चिंतन करना चाहती हैं। पृष्ठ भूमि वाले आधारभूत विषय आज देश के हर तबके के नागरिक के दिल-दिमाग में लगभग स्पष्ट हैं। आज व्यक्ति मेजर की जगह तात्कालीक तौर पर उभरते और उसके हित वाले माइनर विषयों पर अधिक सोचने लगा हैं।
परिपक्वता की दहलीज पर पहुंच चुकी देश के मतदाताओं की मानसिक आयु व्यवस्था को ट्रैक पर लाने के लिए लगातार आगे बढ़ रही हैं। जनता ने ही 2014 में लोकसभा के आम चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देकर प्रजातंत्र को पूरा किया। जनता जनार्दन ही हैं जिसने स्वतंत्रता के बाद पहली बार विपक्षी दल बीजेपी को अकेले आशा अधिक बहुमत देकर देश को एक दलीय और वंशानुगत शासन व्यवस्था के श्राप से मुक्त किया है। 1990 के दशक से जो राजनीति में उथल-पुथल (In a Time of Tarbulance) का दौर शुरू हुआ। उसकी मजबूरी वश देश गठबंधन राजनीति की खाई में जा गिरा। विश्व की दौड़ में शामिल होने के लिए इसी समय कांग्रेस के करकमलों से पूर्व प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिंहराव की अगुवाई में देश में शुरू हुआ आर्थिक ग्लोबलाइजेशन। जो कभी पटरी से उतरता तो कभी कभी ट्रैक से पर दौड़ता नजर आया। तभी से आज भी आर्थिक ग्लोबलाइजेशन भारत में अविरल रूप से लगातार ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहा हैं। 

ऐसे विपरित समय में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक सफल खेवनहार की तरह देश को गठबंधन की सफल राजनीति का पाठ पढ़ाकर देश को विपत्ती के महासागर से बाहर निकाल लिया। अटल जी के बाद फिर देश ने गठबंधन सरकार के दो मौन कार्यकाल देंखें। पूरे 10 वर्षों तक उस पर वंशवाद का साया छाया रहा। फिर भी वो देश के लिए अतुलनीय रूप से सफल रहा। उसने भले ही रेल तेज नहीं दौड़ायी लेकिन हमारी गाड़ी को ट्रैक से उतने नहीं दिया। परिवर्तन के प्रारंभिक दौर में स्वभावत: अपने हित साधने वालों ने जरूर सेंध लगाई जिससे बदनामी भी ज्यादा सामने उभरकर सामने आयी। इस दौरान विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र ने वंश विशेष के साथ स्वतंत्र शासक के अदभूत समन्वय को देखा। भले ही मौन के बल पर समय आगे बढ़ा हो। तथाकथित रूप से लगभग ही सही, मगर देश का वो विपरीत समय भी दुनियां की मैराथन में शामिल रहते हुए, आगे निकलने के पुरजोर प्रयास के साथ, मौन देश के शासन को इस विपत्ती के समय से बाहर निकाल ले आया।

अब 2014 के आम चुनावों में जनता ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी को रिकॉर्ड बहुमत देते हुए उस पर गुरूत्तर दायित्व डालकर भरोसा जताया हैं। जिन वादों को लेकर वर्तमान सरकार अस्तित्व में आयी थी, उन्हें कारगर करने प्रतिध्वनि तो बहुत ऊंची सुनाई दे रही हैं। यदि ये मधुर ध्वनि धरातल पर आयी तो हम दुनिया की अगुवाई करते नजर आयेंगे। विश्व गुरू रहे भारत का सपना एक बार फिर होगा। आज संसार के सभी लोगों की नजरें भारत के ऊपर हैं। प्लीज कम एण्ड मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, विदेशों में जमा काले धन की पाई-पाई घर आने की आशा, प्रभावशाली बनने के लिए आगे बढ़ती हमारी विदेश नीति, सरकारी कोष में जमा होने वाले धन का बढ़ता ग्राफ और दहाड़ से घबरा रही महंगाई वाले हमारे साहसी बोल हमारे सुनहरे भविष्य की राह खोल रहे हैं, कहे या खोल सकते हैं। अभी कहना मुमकिन नहीं। इन्हें भविष्य पर छोड़ने के अलावा अभी कोई रास्ता नहीं। आम लोगों के लिए देश में महंगाई घबराने की बजाय टस से मस न होकर अपने कदम आगे ही बढ़ा रही हैं। 
भ्रष्टाचार ने तो लगता है व्यवस्था में सारे मूल्यों को ही निगल लिया हैं। घुस लेने वाले से ज्यादा देने वाला खुश हो रहा हैं। लेने वाला तो घबराता भी है लेकिन देने वाला केवल अपना हित चाहता है। उसे चाहिये कम खर्चें में बिना लंबी प्रक्रिया में पड़े शीघ्र काम। देने वाले की इस दोहरी मनोवृत्ती पर लगाम लगे बिना सरकार के लिए भ्रष्टाचार पर विजय हांसिल करना दुष्कर ही नहीं मगर कठिन अवश्य है। एक ओर व्यक्ति गलत कामों के सहारे ही सहीं, मगर हर हाल में आगे बढ़ना चाहता हैं। दूसरी ओर वो भ्रष्टाचार के लिए सरकार को कोसता हैं। लगता है ये व्याधि तब तक दूर नहीं हो सकती जब तक समाज के हर लोगों में व्यक्तिगत तौर पर नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती हैं। हमें एक जुट होकर हर जगह बुराई का विरोध करना चाहिये। आवाज उठाना चाहिए। चाहे बुराई किसी भी रूप में हो। दिल्ली की आप सरकार सार्वजनिक स्थलों पर हो रही बुराई के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाने की पहल के लिए  आह्वान कर रही है। जिसे पूरे देश में आगे बढ़ना चाहिए। आज दिवस देखना चाहता है सभी एक दूसरे की अच्छी पहल का स्वागत करें, देश में समनव्य की संस्कृति हो।
इसमें दो राय नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहले रोजगार की गारंटी को कानून में बदलकर देश को महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट दिया। इसके बाद देश को सूंचना अधिकार अधिनियम आरटीआई देकर व्यवस्था को पारदर्शी बनाने वाला साहसी कदम उठाया। इसी क्रम में देश के बच्चों के लिए शिक्षा के मूल अधिकार को कठोरता से क्रियान्वित करने शिक्षा का अधिकार अधिनयम लाकर अमह कदम उठाया। अपनी स्थिति को भापकर आखिर में जाते-जाते ही सही कांग्रेस देश को भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनिय और भारतीय लोकपाल अधिनियम दें गईं। कांग्रेस लोक कल्याण के साथ-साथ हमारे प्रजातंत्र के लिए मील का पत्थर साबित होने वाले इन कदमों का प्रभावी क्रियान्वयन आने वाली सरकार पर छोड़ गई। देश की जनता अब बीजेपी से इन अहम विषयों को जमीन पर लाने के साथ-साथ कांग्रेस द्वारा उठाए गये इन कदमों से भी बेहतर कानूनी प्रबंध की आशा कर रही हैं। आज नवीन सरकार को बने एक साल से अधिक का समय गुजर गया, अभी देश केवल गूंज सुन रहा है। एक ओर देश अपने आपको आत्मविश्वास से लबरेज महसूस कर रहा है, तो दूसरी ओर देश के लोग उठाये गयें कदमों की आहट सुनने के सुनने के साथ-साथ, उसे महसूस करने के लिए बेसब्री से लालायित हैं। लोकपाल बनाने के लिए अधिनियमित की गई एक साल की समय सीमा के चले जाने के बाद भी देश को लोकपाल की नियुक्ति के लिए आवाज तक सुनाई नहीं आ रही है।
 आज उसी अण्णा हजारे को जिसे बीते एक समय आज का गांधी पुकारा जाने लगा था, उनकी लंबी-लंबी चिठ्ठियों के जवाब एक लाइन में मिल रहे हैं। सचमुच उस समय गांधी के बाद कोई तो मुखौटा आया जिसके साथ पूरा देश एक स्वर में खड़ा था। उनके एक आह्वान पर थोड़ी देर के लिए शाम के समय सारे देश में एक साथ अंधेरा छा गया और मोमबत्तीयां जल उठी। बिना भेद-भाव, ईर्ष्या-द्वैष, स्वैच्छा से हर तबकें, न कोई गरीब, न कोई अमीर सभी के सामने एक ही निर्विवाद आवाज। जनता सड़कों पर उमड़ पड़ी। देश में पिन ड्राप साइलेंस। सभी कर्ताधर्ता सन्न। क्या आरएसएस, बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी, कम्यूनिष्ट या अन्य क्षेत्रीय दल हम सब उनके साथ। विडंबना ये धरोहर हम संजो नहीं पायें। आगे नहीं बढ़ा पायें। महत्वाकांक्षाओं ने उसे तितर-बितर कर दिया। मानव शांति के अस्तित्व के लिए खतरा बना आतंकवाद लगातार हमें चिड़ाने के प्रयास कर रहा हैं। हमारी विदेश नीति की अधिकांश चर्चा पाकिस्तान के ही ईर्द-गिर्द घुम रही है। दूसरी ओर लंबे समय से आतंकवाद की पीड़ा झेल रहे जम्मू एण्ड कश्मीर की सरकार में पीडीपी और बीजेपी का बेमेल हमारे दिमाग के परे लगता है। पाक आतंकवादी हमारे निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए हर कभी हमारे देश में चले आते हैं। उन्हें हम जिन्दा पकड़े या मुर्दा। पड़ोसी उसे अपने यहां के नागरिक होने से इंकार कर देता है। साक्ष्यों को तो वो धता दिखाता हैं।  
संसद हो या विधान सभाएं हमारी विधायिकाएं प्रासंगिक बहस की जगह संख्या बल की राजनीति अधिक करने लगी हैं। समय से पहले सत्रावसान होना। सदन को चलने से बाधित करना। विशेज्ञता के इस युग में तकनीकी पर आधारित बहस की जगह राजनीतिक विषयों की बहस पर ही सदन का समय गवा देना। राजनीति दलों में अतिशय अनुशासन की सीमा के चलते बड़े पैमाने पर डम्प पार्लियामेंट, डम्प विधान सभाओं के बढ़ते अस्तित्व जैसे अनेक विषयों ने आम लोगों को चिंता में डाल दिया हैं। सभी अपनी – अपनी बात उचित ठहराने में लगे हैं। जिन्होंने मूल्य आधारित जनजीवन की बहतरी के लिए विपक्ष में रहकर लंबे समय तक संघर्ष किया वो भी और जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद से आज तक सत्ता सुख भोगा वो भी। सभी एक ट्रैक पर। प्रजातंत्र के पूरा होने पर आज भी हम वो ही देख रहे हैं, जो विगत 65 सालों से देखते आ रहे हैं।
  
चारों ओर सुषमा-वसुंधरा-शिवराज के नाम का हो हल्ला। जनता को सच्चाई कुछ सूझ नहीं रहीं। क्या विवादों में आयी किसी धरोहर को बचाना इतना जरूरी हैं। या किसी को जांच की भट्टी में तपाकर उसे कंचन बनाकर निकालना। कहीं वहीं तो नहीं हो रहा जो 65 सालों से कांग्रेस करती आयी। वो भी तब जब बीजेपी जैसा मूल्य आधारित राजनीतिक दल सत्ता में हैं। जनसंघ के काल से मूल्य आधारित राजनीतिक दल की दुहाई दे रहें बीजेपी में उसी कांग्रेस के कार्यकर्ता धड़ल्ले से आ रहे हैं। जिसके मूल्यों के विरोध में हमने संघर्ष किया। लगता है अब इस अवसरवादी विपरित प्रवाह ने चुनावी जीत को सर्वोपरी बना दिया हैं। मूल्य बीतें दिनों की बात बनकर रह गएं। गलत काम करने वाला एक व्यक्ति ललित मोदी विदेश में बैठकर निडरता से एक से बढ़कर एक आरोप सभी दलों के हमारे कर्ताधर्ताओं पर लगा रहा हैं। हमारी व्यवस्था की कमियों को उजागर कर स्वच्छ बनाने की चाह रखने वाले हमारे व्हीसिल ब्लोअर अपनी जान की सुरक्षा गारंटी की कमी के चलते बड़े पैमाने पर एक्टिव होकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। सरकार के लिए व्हीसिल ब्लोअर की सुरक्षा और उनके द्वारा होने वाले संभावित दुरूपयोग के बीच संतुलन बिठाना कठिन हो रहा हैं। देश इस पर सरकार के किसी कड़े कदम उठाने की आशा कर रहा है।    

 कांग्रेस के आखिर समय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कालेधन की जांच के लिए एसआईटी बनाने के निर्देश के क्रियान्वयन के अलावा कालेधन पर कोई सीधा फायदा आम जनता को पहुंचता नजर नहीं आ रहा हैं। पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाली जनसंप्रभु सत्ता प्राप्त संस्था विशालकाय संसद की जगह न्याय पालिका अधिक सक्रिय नजर आ रही है। पूरे देश की आशाएं अब लगता हैं देश की न्याय पालिका पर ही आ टिकी हैं। न्याय पालिका अपने ऊपर आये दायित्व की भूमिका बखूबी निभा रही हैं। उस पर देश को फक्र ही नहीं पूरा विश्वास भी है। हमारी विधायिकाओं को इस विसंगति को दूर करने के लिए अपनी भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाना होगा। मतदाता अपना काम अच्छी तरह कर रहे हैं। संभवत: अक्टूबर-नवम्बर में होने वाले बिहार विधान सभा के चुनावों में विजय का सेहरा स्पष्ट बहुमत के साथ बीजेपी के सिर बांध दे तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। गठबंधन की जगह बिहार की स्पष्ट विजय भारतीय प्रजातंत्र के सिर पर ताज चढ़ाने जैसा ही होगा। जो आज का जागरूक मतदाता ही कर सकता हैं।

इसी साल के आखिर में पश्चिम बंगाल की विधान सभा के होने वाले आम चुनावों में मतदाता बीजेपी को स्पष्ट बहुमत देकर भारत के प्रजातंत्र के ताज में किंगपिन लगाकर भारतीय प्रजातंत्र को विश्व सिंहासन पर बैठाने के लिए आगे बढ़ा सकते हैं। मतदाता ही हैं जिसने पहले पश्चिम बंगाल में 40 वर्षों से चले आ रहें कम्युनिष्टों के एक छत्र राज को उखाड़ फेंक प्रदेश की बागडौर ममता बैनर्जी की पार्टी तृण मूल कांग्रेस को सौंपी। अब आगामी चुनावों में बंगाल की जनता अपने प्रदेश की सत्ता राष्ट्रीय राजनीतिक दल बीजेपी के हाथों में देकर अपना राष्ट्रीय कर्तव्य पूरा कर सकती हैं। इसी के साथ हमारे दायित्व में भी बहुत अधिक गुरूत्तर वृद्धि होगी। अहम के चलते विजय को हल्के में लेने के नतीजे के संकेत भी प्रजातंत्र दिल्ली में ऐतिहासिक बहुमत देते हुए आप की सरकार बनाकर दें चुका हैं। जनता ने दी इस ऐतिहासिक विजय के बाद से दिल्ली में जो कुछ जंग की नजीब खींची जा रही है। वो शायद जनता को भा नहीं रही। दिल्ली दूसरों को सौंपकर तो जनता ने केवल लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को धरातल पर लाया है।
                      
 प्रजातंत्र में विपक्ष की भी उतनी ही अहम् भूमिका होती है, जितनी सत्ता पक्ष की। दृड़ इच्छा शक्तिशाली वाला विपक्ष सत्ता को विरोध के साहारे सतर्क-सजग रखकर प्रजातंत्र को पूरा करता है। स्वतंत्रता के बाद गांधी जी ने तो भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की सार्वभौम धरोहर को संजोकर रखने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक राजनीतिक दल बनाने का विरोध किया था। गांधी जी का कहना था भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की ये विरासत भारत को युग-युग तक एकत्व के साथ संघर्ष करने की प्रेरणा देती रहेंगी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लंबे संघर्ष से मिली मूल्यों की ये दुर्लभ धरोहर कभी राजनीतक तौर पर भी लांछीत नहीं होगी। अनेकता में एकता रखने वाले भारत के हर नागरिक के लिए एक समान सम्मानीय, अनुकरणीय होगी। भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक राजनीतिक दल में बदलने के बाद भी गांधी जी ने कईं बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को समाप्त करने की बात उठाई थी। लेकिन अवसरवादियों के सामने गांधी जी की एक नहीं चली।
 गांधी जी के इस दूरगामी विचार को बीजेपी ने अपने प्रचार तंत्र के अंग में भी शामिल किया है। ऐसे में देश की राजधानी में आप के साथ चल रही बीजेपी की खटपट की कैसे आशा की जा सकती है। देश के मूल्यों की अनदेखी से रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस के विकल्प के तौर पर आप उभरने को बेताब हो रही है, तो होने दिया जाय। दिल्ली में आप की विजय कोई हमारी पराजय न होकर लोकतंत्र में मिलने वाले संकेत के समान हैं। 
हाल ही में सरकार द्वारा कुछ अश्लील वेबसाइटों को बंद करने और मुम्बई बम धमाकों के आरोपी को फांसी देने के बाद कवरेज करने वाले कुछ टी.वी. चैनलों को नोटिस दिए जाने के कारण हमारा विरोध गलत हैं। अश्लील वेबसाइटों को बैन कर सरकार ने ऐसा क्या गलत कर दिया। इससे हमारे बच्चें और संस्कृति दोनों ही सुरक्षित हुए हैं। वहीं सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ने की संभावना के चलते संवेदनशील कवरेज बैन होने से तो कोई अनचाही अनहोनी ही निर्मूल हुई है। ऐसी सकारात्मक सोच ही हैं जो हमारे देश को ऊंचाईयों पर ले जायेंगी। हम सीना फुलाकर गर्व से कह सकेंगे हम हैं भारतवासी ........... ! एक साथ सारे देशवासियों का राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट ..........!  सदा लहराता रहे हमारा अमर तिरंगा ......... !
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम् ..... !)       

Friday, 19 June 2015

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर दो शब्द



21 जून, 2015

विश्व समुदाय से अनुनय

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर दो शब्द

आज विश्व अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है। प्रतिवर्ष 21 जून को इसे मनाया जायेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के मान्यता देने के बाद पहले ही बार इसमें 192 देश शामिल हो रहे हैं। लंबे समय से सारी दुनियां आलस्य और भागमभाग के कारण स्वास्थ्य के गिरने की रफ्तार तेज होने के कारण एक नये विकल्प की तलाश में थीं। जो इस भौतिक उपभोगवाद की कलह और द्वैष भरी दुनियां में इंद्रियों को नियंत्रण में लेकर,  मानसिक तनाव को दूर करने का सरल और सुगम यंत्र बनकर, जीवन में उत्साह और उमंग का साधन बनें। विश्व, देश, समाज, परिवार और हर व्यक्ति की सुबह प्रभात में उछलतें – कूंदते हो, उसे सूर्य नारायण प्रतिदिन जाग्रत देंखे। प्रकाश बिखेरते समय जिसके पास किसी देश, समाज, धर्म, जाति, नस्ल और जीव को लेकर कोई भेदभाव नहीं हों। सब बराबर का एक ही भाव।
आज सनातन भारत की ये वैदिक धरोहर पूरे संसार की बनने जा रही है। इसे सबने सर्व मानवीय समस्यों के हल के तौर पर मान्यता दी हैं। सब खुले दिल से अपनाने जा रहे हैं। सदियों के अनुसंधान के बाद कसौटियों पर खरी उतरी इस पुरातन तकनीक को दुनियां के हर घर के हर व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में उतारकर योग को संसार में हर व्यक्ति का सार्वभौमिक कर्तव्य बना देना चाहियें। तभी हम सारी दुनियां के लोग विश्व को मानवीय आकार देने में सफल हो सकते हैं। पूरी दुनियां मुठ्ठी में होने का सपना साकार हो सकता है। योग की ये पुरातन तकनीक हम सबके जीवन में रोजाना एक नया सबेरा ला सकती है। व्यतता के बहाने रोजाना देर से उठकर, चढ़ती दोपहरी का स्वागत करने जन्म ले चुकी नीरस आदत को भगाकर, इस जगत से आलस्य का खात्मा किया जा सकता है।

समाज का हर व्यक्ति कल से अपने जीवन में योग को अपनाकर, अपने और परायों के जीवन में एक नये सूरज का आगाज करेंगां ......... ! इसी आशा के साथ आपका .......... ।
            
 (इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् नमम्)   

Monday, 30 March 2015

मेरी आदर्श राह



टूटे हुए तारों से, फूटे बासंती स्वर ।
पत्थर की छाती में, उग आया नव अंकुर ।।
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहक रात ।
प्राची में अरूणिम की रेख, देख पाता हूं ।।
गीत नया गाता हूं ..........

टूटे हुए सपनों की, कौन सुने सिसकी ।
अन्तर चीर व्यथा, पलकों पर ठिठकी ।।
हार नहीं मानूगा, रार नहीं ठानूंगा ।।
काल के कपाल पे, लिखता मिटाता हूं ।
गीत नया गाता हूं .............

   
                 
 ...... महान् चिंतक और कर्मदूत

                   माननीय अटल बिहारी वाजपेयी