Morning Woke Time

Morning Woke Time
See Rising sun & Addopete Life Source of Energy.

Monday 8 April 2013

दीदी आयी, खुशियां लायी

उमा श्री भारती को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने पर हार्दिक बधाई


दीदी आयी, खुशियां लायी। आज हम सभी बीजेपी कार्यकर्ता खुश ही नहीं, गदगद हैं। हम सब भूल चूंके हैं। उस दुस्वप्न रूपी राजनीतिक वीथिका को। जिसकी पीड़ा से हम कभी गुजरे हैं। हम हमारे सामने  विपक्षी दल कांग्रेस नहीं ठहर पायेंगा। अब तीसरी बार भी एमपी में बीजेपी को विजय पताका फहराने कोई नहीं रोक सकता। अब हम सब एक हैं। हमारे परिवार की क्षरण हुई ताकत फिर से परिपूर्ण हो गई। ऐसे लग रहा है। मानों। दीदी के आते ही आज फूल खिल रहे हैं। हवा सौंधी खुशबू बिखेर रही है। मातृ भूमि इठला रही हैं। पूर्वज पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल जी परिवार के सभी सदस्यों के सर पर आशिर्वाद का हाथ रख आत्मीय सुख महसूस कर रहे हैं। परिवार फिर से अपने मूल आकार में आया है।
कभी संघ परिवार की उच्छश्रंखल बेटी कही जाने वाली बेटी। अटल-अडवाणी की लाड़ली। ने भी बीजेपी के दिग्गजों के साथ। पार्टी को अपने पसीने सींचकर। अपने अदम्य साहस की खाद देकर। बीजेपी परिवार को बड़ा किया। भारत का जो नागरिक एक बार बीजेपी की विचारधारा से जुड़ जाय। उसके लिए। फिर से किन्हीं दूसरे विचारों को आत्मसात कर पाना कठिन ही नहीं। दुष्कर हो जाता है। याद है। मुझे वो दिन। जब उमा श्री भारती राम के दरबार में मथ्था टेकने पैदल निकली। जंगल-पहाड़, दुर्गम इलाके। दिसंबर-जनवरी की कड़ाके की ठंड।
पांव में छाले-फफोलें। ना कोई रक्षा। ना कोई सुरक्षा। इन्हीं राहों पर वो भी देखा। दीदी के लिए पलक-पावड़े बिछाते लोग। उमड़ा जनसमूह। फिर। कभी अदम्य राष्ट्रीय साहस की अगुवाई करने वाली। ये निश्चल राष्ट्र भक्त। निकल पड़ी। कांग्रेस की गलत नीतियों से देशवासियों को आगाह करने। भारत बचाओं यात्रा पर। इस दौरान भी जनता ने इस नेत्री का साथ नहीं छोड़ा। चाहे वो विदेशी वंशवाद को विरोध हो। या राम सेतु को बचाने सबसे पहले रामेश्वरम् पहुंचना। विदेशी वंशवाद को रोकने तो ये किसे दरवाजे मथ्था टेकने नहीं गईं। चाहे वो कट्टर विरोधी ही क्यों न हो। मुलायाम सिंह जैसे ठेठ की झिड़कन।
तिरष्कार तक को शिरोधार्य किया। विचारधारा के प्रति निष्ठा पर शक की तो कोई गुंजाईश ही नहीं। अब किवदंती बन चुके वनवास काल के। मुझे वो भी पल याद है। जब अपनों के विरोध में नारे लगाये जाते। तब दीदी हमें कड़ी हिदायत देती। हमारे लिए। बीजेपी कार्यकर्ता सबसे पहला आदरणीय है। हमारी मंजिल एक है। हम वो एक है। आपसी विचार-विमर्श के समय। बैठकों में। अपनों की पुरानी यादों में खो जाती। सुनाने लगती वो पल-किस्सें। जिन अपनों की बीच रहकर उन्होंने संघर्ष के आदर्श उकेरें।
हमें महसूस होती। तो बस एक ही बात। बिछोह की पीड़ा। उसके अंदर समाया। विचारों को आकार देने में बहाया हजारों-लाखों लोगों का खून-पसीना। अंदर ही अंदर कचोटता एक आत्मबोध। असहनीय पीड़ा। एक ओर नियति की भटकाईं राहें। तो दूसरी ओर हमारे घर की ओर उठती उंगलियां। आज बीजेपी के सभी कार्यकर्ता खुश हैं। आभारी हैं। हमारे सभी वरिष्ठों के प्रति जिन्होंने हमें एकाकार किया। ना कोई द्वेष। ना कोई ईर्ष्या। ना कोई शिकवा-शिकायत। ना कोई छोटा ना कोई बड़ा। विचार और संगठन सर्वोपरि। यही हमारे आदर्श शिक्षक।
 बस सबके सामने मछली की आंख। जिसे इस साल होने वाले विधान सभा चुनावों। और आने वाले साल 2014 के आम चुनावों में भेदना है। अब विरिष्ठों से एक ही विनम्र गुजारिश। एमपी की बेटी। हम सबकी प्यारी दीदी को। अपने गृह राज्य आने पर। वही सरोकार। वही आतिथ्य मिले। जो अन्य समकक्षों को प्राप्य हो। किसी प्रकार का कोई। अछूतवाद नहीं। कोई को किसी से डर नहीं। यहीं हमारे वरिष्ठों का हम सब कार्यकर्ताओं के लिए आशीर्वाद होगा। 
हम सब कार्यकर्ता गदगद होंगे। इस पहल से विचार, एकाकारिता और संगठन की सर्वोपरिता का संदेश मिलेगा। देश भक्ति की जुनूनी नेत्री। हम सबकी दीदी। उमा श्री भारती को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये जाने पर सभी वरिष्ठ नेताओं के प्रति हम सबका आभार.........।
( इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय , इदम् न मम्। )
http://aajtak.intoday.in/livetv.php

Saturday 6 April 2013

भारतीय जनता पार्टी स्थापना दिवस


6 अप्रेल 2013 पर विशेष


बीजेपी एक लंबी राजनीतिक यात्रा पूरी कर। आज अपना स्थापना दिवस मना रही है। फिर आज बीजेपी असमंजस भरी राहों पर खड़ी है। जहा से सही रास्ता चुनने की चुनौती उसके सामने खड़ी है। इस साल 14 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव। और अगले साल देश में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव बीजेपी ही नहीं देश की जनता के लिए भी अहम मोड़ लाने वाले है। भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी आपे से बाहर हो रही है। तुष्टीकरण की राजनीति अंग्रेजों से भी आगे जाने को बेताब है। अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तेज करवट ले रही है। कई देशों की अर्थव्यवस्था डावाडोल हो रही है। सुपर पॉवर कही जाने वाला अमेरिका तक जवाब दे रहा है। ऐसे में हम भारत के लोग। यूपीए सरकार के विकल्प के तौर पर एनडीए की ओर ही टकटकी लगा सकते हैं। 
विडम्बना कहों। या बड़ा परिवार। बीजेपी आज तक नेतृत्व की स्पष्ट अवधारणा नहीं अंगीकार कर पायी। बस ऊहापोह ही बार-बार उसे ले डूबी। अपने जन नेताओं को वो आगे नहीं बढ़ा पायी। हां इस बार जरूर मोदी गीत गाएं जा रहे हैं। उस पर भी आशा के साथ शंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं। कुल मिलाकर भारी रिस्क। भारत गठबंधन की राजनीति की गिरफ्त में है। ऐसे में किसी दल के लिए अपने बूते सरकार बनाना एक सपना ही है। अब एक सवाल सबके दिमाग में कौंध रहा है। जो जुबा नहीं आ पा रहा है। नरेन्द्र मोदी की दबंग कार्यशैली कहो। या प्रभावशाली व्यक्तित्व। या फिर वन मैन शो। ऐसे में कैसे। अन्य दल बीजेपी की छत्र छाया में आयेंगे। एक मोदी की बहु प्रचारित तथाकथित सांप्रदायिक छबि। तो दूसरी ओर एकला चलों रे की नीति। इसके संकेत मोदी को बीजेपी संसदीय बोर्ड में लेने के बाद बनाई गई राष्ट्रीय कार्य समिति की सूंची से भी मिल रहे है। वहीं गुजरात में इतनी देर से लाया लोकायुक्त बिल भी मोदी की किरकिरी कर रहा है। भाई हम क्लीन मैन है तो डर कैसा ? लगता है अटल जी की निश्चल राजनीति का सानी अभी बीजेपी नहीं है। ना कोई डर। ना कोई लाग लपेट। ना कोई मोह।

ऐसे में घटक दल एनडीए से सर्व स्वीकार्य नेता की मांग कर सकते है। बीजेपी के झुंकने की नौबत आती है। तब सुई पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ आकर अटक सकती है। घटक दल शायद ही ये पाशा फेंकने से चूंके। कभी बीजेपी का थिंक टैंक कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य की बात में लोगों को दम नजर आने लगे। इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
कांग्रेस तो ताक में बैठी है। उसके पास नेता के मामले पर कोई ऊहापोह नहीं। कोई असमंजस नहीं। देश या गुणवत्ता की परवाह किए बगैर। अंध भक्त बन। वंश विशेष की लाठी पकड़े है। एनडीए के सबसे बड़े घटक दल युनाईटेड जनता दल ने तो अपना तुरूप का पत्ता चल ही दिया है। नीतीश कुमार का कहना साफ है। जो उनके राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देंगा वो उनका साथ देंगे। उन्हें किसी से परहेज नहीं है। 
कांग्रेस नीतीश की इस चाल को अपनी बोतल में उतार चुकी है। रही बात। चंद्र बाबू नायडू की तेलगुदेशम, ममता की तृणमूल कांग्रेस, जयललिता की एडीएमके जैसे बड़े साथियों की। अभी यह प्रश्न अनुत्तरीत ही है कि इन दलों के महत्वाकांक्षी नेता मोदी की हेकड़ी सहन कर पायेंगे या नहीं ?  ऐसे में यदि आडवाणी जी की उम्र आड़े आती है। तब भी। चुनाव पूर्व। यदि एनडीए अपना नेता घोषित किए बिना मैदान में उतरने के लिए सहमत हो तो। वो भी समय की मांग हो सकती है। चुनाव बाद एनडीए बहुमत में आती है। तब नेता का चुनाव का चुनाव फिर दूभर हुआ तो। बीजेपी अपने किसी मुख्यमंत्री का नाम भी बढ़ा सकती है। चाहे वो शिवराज सिंह चौहान या रमण सिंह भी सकते हैं।

आने वाले दिनों में बीजेपी को। अपने प्रशंसा गीत गाने के साथ-साथ। हर कदम फूंक-फूंककर रखना है। नेता घोषित करने का मसला उसके लिए दिनो-दिन नाजुक बनता जा रहा है। आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए इस संवेदनशील मुद्दे को हल करना चुनौती भरा होगा। जो पार्टी की दशा और दिशा तय करेगा। अगर बीजेपी ने संभलकर सधे कदम नहीं उठाएं। तब आखिर में कांग्रेस की ही पौ बारह हो तो। अचंभित होने वाली। जैसी कोई बात नहीं होगी।
    (इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय , इदम् न मम्)
http://indiatvnews.com/livetv/