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Sunday 18 May 2014

जय हो........!

जाति, सम्प्रदाय, वर्ग, भाषा और क्षेत्रीयता के दायरे से बाहर आकर पहली बार किया मतदान


1.  जय हो मतदाता...... जय हो भारत........ जय हो नरेन्द्र मोदी.........!
2.   पूर्ण हुआ विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र
3.   वयस्क हुआ भारत का मतदाता
4.   विश्व गुरू बनने की ओर भारत ने बढ़ाया पहला कदम

2014 के लोकसभा के इन आम चुनावों के परिणामों से आज देश का हर नागरिक रोमांचित है। वह अपने आपकों तरोताजा उत्साहित महसूस कर रहा है। वो अपने सुखद भविष्य के प्रति आशा से लबरेज हो गया है। अब देश के हर नागरिक की सुबह एक नई स्फूर्ति और आत्मबल से होगी। ये सब होगा। क्योंकि अब देश के पास होगा एक प्रभावशाली नेतृत्व। किसी देश, संगठन, समाज या परिवार का नेतृत्व ही उसकी हर सुबह को नई बनाता है। देशवासियों को नीरसता से उबारता है। स्थिर-सशक्त नेतृत्व में देश का हर नागरिक स्वाभिमान महसूस करेगा। देश के लोकतंत्र को ऐसी ऐतिहासिक दिशा देने के लिए जय हो मतदाता.......... ! जय हो भारत.......... ! जय हो नरेन्द्र मोदी....... !
स्वतंत्रता के बाद से देश में सशक्त विपक्ष के अभाव में भारत का लोकतंत्र एक पैर पर ही चलता रहा। स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए चला जन आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जब एक राजनीतिक पार्टी बना। तभी भारत के लोकतंत्र का दुर्भाग्य लिख दिया था। जिसमें मौकापरस्त सामंतवादी लोगों ने कब्जा जमा लिया। 1967 तक तो देश में कांग्रेस का एक छत्र राज्य रहा। 1951 में स्थापित जनसंघ ने पहली बार कांग्रेस की अहितकारी नीतियों का विरोध करने का बीड़ा उठाया। गठबंधन के तौर पर 1977 में जनता पार्टी और 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा जैसी गैर कांग्रेसी सरकार अवश्य बनी। लेकिन वो स्थिर नहीं रह पायी। 
भारत का लोकतंत्र एक पैर पर लड़खड़ाता रहा। लंबे संघर्ष के बाद वो समय भी आया जब 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन.डी.ए. की गठबंधन सरकार बनी। इस गैर कांग्रेसी सरकार ने भी जैसे-तैसे 6 साल खींचे। अटल बिहारी वाजपेयी के चमत्कारिक लीडरशिप के बावजूद ये सरकार भी साथी दलों के ब्लैकमैलिंग की शिकार होने से नहीं बच पायी। बहुमत के अभाव में अटल जी की एनडीए सरकार की उपलब्धि भी देश को राजनीतिक अस्थिरता के दौर से बाहर निकालने तक ही सीमित रही। 1947 में स्वतंत्रता के बाद के इन 66 सालों में 55 साल से अधिक समय तक तो कांग्रेस के हाथ ही देश की बागडौर रही। 
स्वतंत्रता के बाद पहली बार 2014 के इन लोकसभा चुनावों में किसी एक पार्टी बीजेपी को मतदाताओं ने स्पष्ट बहुमत दिया है। और बीजेपी के नेतृत्व वाले इस गठबंधन एनडीए को दो-तिहाई बहुमत के निकट पहुंचाकर भारत के प्रजातंत्र को पूरा कर दिया। अब तक देश का लोकतंत्र एक सशक्त विपक्ष के अभाव में कांग्रेस रूपी एक टांग पर ही चलता रहा। एक पूर्ण बहुमत वाले विपक्ष बीजेपी के रूप में अब भारत के लोकतंत्र को दूसरा मजबूत पैर मिल गया है। स्वतंत्रता के बाद भारत के लोकतंत्र को पूर्ण होने होने में 67 साल से अधिक समय लग गया। आज भारत का लोकतंत्र पूर्ण हो गया।
इन सबके लिए कोई राजनीतिक दल जिम्मेवार नहीं होकर। सीधे-सीधे देश के मतदाताओं को इसका श्रेय जाता है। जिसने पहली बार जाति, सम्प्रदाय, वर्ग, भाषा और क्षेत्रीयता के संकुचित दायरे से बाहर निकलकर वोट किया। वो अब अपने लिए विकास के मायने समझने लगा है। गुमराह करने वाली राजनीति के झांसे में वो इस बार नहीं आया। जय हो मतदाता ........... ! ............धन्यवाद मतदाता............ ! जय हो जनता जनार्दन........ ! जय हो भावी नमो भारत........ !
इन चुनाव परिणामों ने इस बात के प्रमाण दे दिए है कि अब भारत के मतदाता की मानसिक आयु परिक्व पूरी समझ वाली हो चुकी है। अब उसे किसी भी आधार पर बहलाया-फुसलाया नहीं जा सकता। संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, ईटली जैस राजनीतिक रूप से विकसित देशों के मतदाताओं के समान भारत के मतदाताओं ने भी मानसिक तौर पर परिपक्व आयु को प्राप्त कर लिए। अब वो वयस्क हो गए है। बच्चे नहीं रहें। किसी देश के लिए यही वो स्थिति होती है जहां से राजनीतिक सुधार की प्रक्रियां प्रारंभ होती है। देश का राजनीतिक ढांचा परिपक्वता की ओर कदम बढ़ाता है। राजनीति दलों के मातहत ये काम नहीं होता। 
राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ में अच्छे विषयों पर भी आम सहमति नहीं बन पाती है। दल विशेष तो केवल राजनीतिक सुधार प्रक्रिया के माध्यम बनते है। किसी देश के मतदाता ही दल विशेष को सुधारों के लिए अवसर देते है। प्रेरित करते हैं। मजबूर करते हैं। राजनीतिक बाधाओं को दूर करते हैं। इससे राजनीतिक दल अपने भावी अस्तित्व को बनाये रखने जन इच्छा को आकार देते हैं। इसका शानदार प्रमाण उत्तरप्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों के मतदाताओं ने इन चुनावों में दिया है। इन चुनावों में भारत के मतदाताओं ने वयस्क आयु को छुकर भारत के लिए राजनीतिक रूप से एक विकसित देश बनने की शुरूआत कर दी है। अब आगे देश का सुखद भविष्य गढ़ना बीजेपी के हाथों में है। जय हो भारत.............. ! धन्यवाद भारत........... !
आर्थिक तौर पर प्राचीन काल में सोने की चिड़िया रहा भारत...........। सबकों फूलने-फलने का अवसर देकर। उनकों आत्मसात करने की विशेषता के चलते। भारत विश्व गुरू रहा है। विश्व बंधुत्व हिन्दुस्तान की मूल आत्मा रही है। इन चुनावों के बाद जाने-माने भविष्यवेत्ताओं की वो भविष्यवाणी पूरी होने की संभावनाएं खुल गई है। जिसमें कहा गया है भारत 21वीं सदीं में विश्व गुरू बनकर संसार का मार्गदर्शन करेगा। मतदाताओं ने भी अब की बार देश की बागडौर भारत को पुनविश्व गुरू बनाकर वृहत्तर भारत का सपना दिखाया है। देश की आशा तभी आगे बढ़ेगी। जब देश का मतदाता आगे भी देश के आम चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देगा। देश का मतदाता स्थिर तार्किक बना रहेगा, डावाडोल नहीं होगा। फिर एक बार जय हो मतदाता.......... !  जय हो भारत ........... ! जय हो नमो भारत ......... !
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

Monday 12 May 2014

नरेन्द्र मोदी के ये तीन दिन

बना सकते है रोड मैप


यूपीए सरकार के दस साल शासन करने के बाद, मतदाताओं द्वारा विपक्ष को सत्ता सौंपने की स्वाभाविक प्रक्रिया कहों। या नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रबंधन का चमत्कार। या फिर भारतीय जनता पार्टी के लंबे संघर्ष के बाद, एक सशक्त विपक्ष के रूप में खड़े होना कहों। आंकलन का तरीका जो भी हो। लेकिन बीते कल, 12 मई के आखिरी दौर के मतदान के सम्पन्न होने के बाद नरेन्द्र मोदी का प्रधान मंत्री बनना लगभग तय हो गया है। बस 16 मई को मतगणना की औपचारिकता शेष बची है। ऐसे में 13, 14 और 15 मई के ये तीन दिन मोदी के जीवन में अहम ही नहीं है। बल्कि शायद ही लौटकर आयें। वे इन तीन दिनों के बाद दूसरा कार्यकाल लेकर आगामी दस सालों के लिए भी देश के प्रधान मंत्री के तौर पर काबिज हो सकते है। मोदी के लिए ये तीन दिन आराम-सुकुन भरें तो हो ही सकते है। साथ ही यही वो तीन दिन भी हो सकते है जो मोदी को भूत-भविष्य और वर्तमान के चिंतन का अवसर देने वाले है।
सबसे पहली बात तो संघ ने अपने संगठन सर्वोपरि के सिद्धांत को दरकिनार कर मोदी पर दांव खेल अपनी मूल्यवादी साख की तक चिंता नहीं की। अब मोदी के कर्तव्य में आता है, इसे बरकरार ही नहीं रखे बल्कि इसमें अभिवृद्धि भी करें। अपने राजनीतिक लक्ष्य को साधने अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी के दूसरे वरिष्ठ स्तंभ लालकृष्ण आडवाणी को तक को चुप करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। बस येन-केन प्रकरेण सत्ता तक पहुंचना ही लक्ष्य बना लिया। भले ही बीजेपी में व्यक्तिवाद ही क्यों न शुरू करना पड़े। नैतिक मूल्यों का जो झंडा देश में कभी स्वयं सेवक लेकर घूमते थे। वो अब आम आदमी पार्टी के लोग लेकर घूम रहे हैं। स्वतंत्रता के प्रारंभिक दौर के घोर अंधकार में जब कांग्रेस का देश में एकछत्र राज था, तब स्वयं सेवक ही थे जो आशाओं का एक टिमटिमाता दीपक हथेली पर जलाये हुए दर-दर पहुंचते थे। और आज उसी का नतीजा है, बीजेपी को देश की बागडौर पूरी तरह मिलने वाली है। महंगाई और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे इस देश में यही टिमटिमाता दीपक बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के हाथों में पकड़ा दिया है।
 इस सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश में कोई भी संगठन, देश के 80 फीसदी लोगों की संवेदनाओं को छूये बिना दीर्घजीवी, स्थिर और प्रजातांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता। पिछली सरकार के सुरक्षा और विदेश नीति पर ढुलमुल रवैये को एक स्पष्ट दिशा देनी होगी, जिसमें भ्रम की कोई गुंजाइश न हो। बल्कि अपने-आप में जन इच्छाएं समेटे होनी चाहिए। लंबे समय से गुजरात में बीजेपी संगठन की प्रजातांत्रिक कार्य शैली, स्वयं सेवकों की संख्यात्मक बढ़ोत्तरी, सूचना के अधिकार आरटीआई के क्रियान्वन और राज्य में लोक आयुक्त जैसी संस्थाओं की सक्रियता पर लगे प्रश्न चिन्हों को हटाना होगा। बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर संगठन सर्वोपरिता को कायम रखते हुए, उन्हें बीजेपी की उस दुहाई को भी जिंदा ही नहीं, बल्कि उसे फलने-फूलने का अवसर देना होगा, जो बीजेपी लंबे समय से सर्वाधिक प्रजातांत्रिक राजनीतिक संगठन होने की दुहाई दे रहा है।
 इसकी जगह व्यक्ति गुणगान और व्यक्ति सर्वोपरिता घातक होगी। अन्यथा नैतिक मूल्यों की झंडाबदर बीजेपी की चाल ही बदल जायेगी। इससे बीजेपी कांग्रेस की जगह ले लेगी। और आम आदमी पार्टी बीजेपी की जगह खड़ी नजर आ सकती है। विकास ऐसा होना चाहिये जो आम लोगों के दिलों को छूये ना की पूंजीपतियों तक ही नजर आयें। संगठन की सर्वोपरिता धरातल पर आकार लेना चाहिए। स्वयं सेवकों और कार्यकर्ताओं के भावनात्मक लगाव का विस्तार होना चाहिए।
महंगाई को कम करने सीधा तेज प्रहार हो। ताकि ये सरकार सीधे लोगों के दिलों पर राज कर सकें। भ्रष्टाचार के खात्में पर तो देश किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं करने वाला। पार्टी में अनुशासन के नाम पर किसी के साथ अन्याय न हो।हमारे वरिष्ठों का सम्मान इस प्रकार बरकरार रहे कि अन्दर ही अंदर हमारे कार्यकर्ताओं में विमुखता का भाव न घर कर जायें। हमें इस बात को नहीं भूलना होगा कि बीजेपी ही एक ऐसी पार्टी है जिसके कार्यकर्ता इसके लिए दिल से काम करते है। पूरी तरह प्रतिबद्धता के साथ। इसी का नतीजा है आज बीजेपी पूरे बहुमत के साथ देश की सत्ता संभालने को तैयार है।
 ये सब बीजेपी और स्वयं सेवकों के द्वारा नैतिक मूल्यों की अगवाई करने का ही नतीजा है। लेकिन अब आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को अपने पाले में करती नजर आ रही है। भले ही उसमें हमें कुछ शुरूआती बुराई नजर आती हो। जो कभी कांग्रेस ने हमारे भीतर देखी थी। जो भी कोई जमे-जमायें लोगों के विरोध में धारा के विरूद्ध चलने का प्रयास करता है।  उसके ऊपर ऐसे आरोप लगना एक स्वाभाविक है। कांग्रेस के एकछत्र युग में जब बीजेपी और स्वयं सेवक भी ऐसा कर रहे थे तो उनकी भी खिल्ली उड़ाई गई। अनेक यातनाएं सहन करनी पड़ी। अनेकों को अपनी जान यहां तक की परिवार तक गंवाने पड़े। तब जाकर आज हम यहां पहुंचे। इन सबके पीछे था आम लोगों को हमारे भीतर नजर आती अच्छाई, आशा की किरण। 
धीरे-धीरे जनमानस बीजेपी के साथ होता गया। पारदर्शिता, भ्रष्टाचार, महंगाई, संगठन का प्रजातांत्रिक स्वरूप, बुजुर्गों, स्वयं सेवकों, कार्यकर्ताओं का सम्मान। स्पष्ट-स्थिर सुरक्षा और विदेश नीति। आम लोगों के दिलों को छूता राजनीतिक परिवर्तन ही हमारे रोड-मैप का रास्ता हो सकते है। ये तीन दिन ही नरेन्द्र मोदी के लिए अपने अगले-पिछले, अच्छे-बुरें अनुभवों और गल्तियों के विश्लेषण से एक अच्छा चिंतन निकालने वाले साबित हो सकते है। फिर शायद, उन्हें सत्ता की आपाधापी से ऐसा समय न मिले। या फिर वे सत्ता की छाया में सब भूल जाये। अभी ह्रदय निर्मल है। बोझिल नहीं। ये कोई अकेले प्रांत गुजरात की बात नहीं। अब उनके हाथ में पूरा देश होगा। भारत की साख उनके जिम्मे होगी। वो सपना उनके हाथ में होगा जो कभी हजारों लाखों स्वयं सेवकों और बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने अपने बलिदान की कीमत चुकाकर देखा था।
 उबले हुए चने की जगह पानी में फूले चने खाकर घर-घर मूल्यों का संदेश घर-घर पहुंचाया। एक मूल्यवादी समाज को गढ़ने के सपने का प्रचार-प्रसा किया था। मोदी स्वयं एक स्वयं सेवक रहे है, जो इन बातों से अनजान कैसे हो सकते है। तो भी.... सत्ता पाई, काही मद ना होई......की कहावत को अपने आड़े आने से रोकना होगा। 16 मई को विजय घोष के साथ यही प्रतिध्वनित होना चाहिए। सबसे पहले भाजपा की जय हो......। उन बड़े बुजुर्गों के आशिर्वाद की जय हो......। जिन्होंने हमें ये विरासत सौंपी। उनके बलिदान की जय हो.....। लोगों के दिलों को जीतने वाले स्यवं सेवकों की जय हो.......। बीजेपी कार्यर्ताओं की प्रतिबद्धता की जय हो.........। उस जनता जनार्दन की जय हो.......। जो हमारी ओर आशा भरी नजरों से देख रही है। और इन सबके बाद अन्तत: नरेन्द्र मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व की जय हो......। जिसके सहारे हम एक सशक्त भारत गढ़ने जा रहे है।
(इदम राष्ट्राय स्वा: , इदम राष्ट्राय, इदम न मम्।)