15 अगस्त को गुजरात के कच्छ के लालन कॉलेज से
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की दी गई स्पीच चर्चा और आलोचना का विषय बन गया है। आलोचकों
का कहना है। एक तो राष्ट्रीय पर्व के दिन को इस राजनीतिक विरोध के लिए चुनना नैतिक
दायरे से बाहर की बात है। दूसरे इस पवित्र दिन पर किसी मुख्यमंत्री के द्वारा भाषण
के लिए प्रधानमंत्री को खुली चुनौती देना
देश की संघीय परंपरा के भविष्य के लिए लाभकारी नहीं होगा। वहीं मोदी के समर्थ इसे
देश की जरूरत बताकर जायज ठहरा रहे हैं। ये लोग तर्क दे रहे हैं। आज देश का सक्षम
नेतृत्व की जरूरत है। मोदी तो इसे विकास की एक स्वस्थ लोकतांत्रिक स्पर्धा बताकर अपनी
बात को उचित ठहरा रहे है।
सोचने का तरीका चाहे जो भी हो। लेकिन देश की अधिकांश
जनता इस बात को महसूस करने लगी है कि समस्याओं के संक्रमण से गुजरते भारत को एक
अनुभवी, सक्षम और सूझबूझ वाले नेतृत्व की जरूरत है। ऐसे में परिक्वता की ओर बढ़ता
भारत का मतदाता मोदी के बढ़ते कदमों को मजबूती दे सकता है। तो इसमें कोई नई बात
नहीं होगी। इसके प्रमाण हमें देश में हुए कुछ राज्यों में हुए पिछले चुनावों में
मिल चुके हैं। उम्र में बढ़ता ये देश का वही मतदाता है। जिसने उत्तरप्रदेश में विखंडित
शासन का खात्मा कर दलित की बेटी को भारी बहुमत दिया। वो एक अलग बात है कि इसके
बावजूद वो सुशासन नहीं दे पायी।
दूसरी पारी में यूपी के इसी मतदाता ने विकल्प
बदलकर मुलायाम की समाजवादी पार्टी को दो तिहाई से अधिक बहुमत देकर अपनी बढ़ती
मानसिक आयु का परिचय दिया। उसने फिर इस राज्य को विखंडित बहुमत की खाई में नहीं
गिरने दिया। भले ही अब इस सूबे में शासन की अच्छाईयों की अपेक्षा बुराईयां ज्यादा
सामने आ रही है।
इसी सूबे के मतदाता अब अगर अगले चुनावों में किसी राष्ट्रीय दल का
दामन थाम ले तो यह कोई अचानक होने वाली घटना न होकर मतदाता की विकसित होती सोच का
ही परिचायक होगी। ये वही मतदाता है जिसने बिहार में लंबे समय से चले आ रहे लालू
प्रसाद यादव के एक छत्र डर को एक झटके में खत्म कर शासन की बागडौर स्वच्छ छबि वाले
उदार नेता नीतिश कुमार के हाथ में सौंप दी। अब यही बात भारत का मतदाता राष्ट्रीय
स्तर पर अगले साल होने वाले आम चुनवों में दोहरा सकता है। मोदी को भारी बहुमत देकर
केन्द्र में ताजपोशी कर सकता हैं। जो भारतीय मतदाता की पूर्ण परिक्वता का ही
परिचायक होगा। वो नरेन्द्र मोदी की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। उसे विकल्प के
तौर पर मोदी ही सामने नजर आ रहे है।
मोदी लोगों की पहली पसंद हो भी क्यों नहीं ? मोदी 39 से अधिक अनुषांगिक संगठन वाले
लोकतांत्रिक संघ परिवार में प्रशिक्षित हुए है। किसी व्यक्ति, परिवार या मुठ्ठी भर
लोगों द्वारा रेग्यूलेट होने वाले संठन का साया उन पर नहीं है। उनके पीछे एक विशाल
लोकतांत्रिक संघ परिवार खड़ा है। जहां निर्णय प्रक्रिया किसी व्यक्ति विशेष से
प्रभावित न होकर विशुद्ध लोकतांत्रिक स्वरूप लिए हुए है। कुछ माह पहले तक अखड़ कहे
जाने वाले मोदी अब सबकों साथ लेकर चलने की बात कर है। उनके ऊपर लगने वाले कट्टरता
के तथाकथित आरोपों पर उनके द्वारा दी जा रही विकास की ललकार आच्छादित होती जा रही
है। इंडिया फस्ट अब उनकी थीम बन गई है। जो उनकी भावी दृड़ राजनीतिक इच्छा शक्ति का
संकेत दे रही है। देश में सर्वमान्य बनने की ओर उनके कदम लगातार बढ़ रहे है।
केन्द्र
को विकास की खुली प्रतिस्पर्धा की चुनौती देकर मोदी ने लोगों का दिल जीतने का ही
काम किया है। स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर प्रधानमंत्री को भाषण की चुनौती देकर मोदी
ने मनमोहन सिंह को अपनी इच्छा शक्ति को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया। इसे भी
मनमोहन सिंह भुना नहीं पाये। अब इसमें मोदी की क्या गल्ती। देश की नजरे
आत्मविश्वास से लबरेज मुखिया को तलाश रही है। जिसे मोदी ने अपने साहस पूरा ही तो
किया है। मोदी ने उन पर लगने वाले तथाकथित सांप्रदायिकता के दाग इंडिया फस्ट को
राष्ट्र धर्म बताकर ओझल कर दिया है। मोदी ने संविधान को देश का पवित्र ग्रंथ बताकर
अपनी इच्छा शक्ति जता दी। राष्ट्र भक्ति को जनता जनार्दन की कोटी-कोटी सेवा बताकर उनके
दिलों में घर बना लिया।
रही बात एनडीए में साथी दलों को जोड़ने या उनकी
संख्या बढ़ाने की तो मोदी वो सभी नेता को सभी गट्स है। जो एक चमत्कारिक लीडरशीप
में होने चाहिए। जो आने वाले समय में मूर्तरूप लेंगे। जयललिता के विकास मॉडल की
प्रशंसा कर उन्होंने एडीएमके को अपना भावी साथी होने के संकेत दे दिये है। दूसरी
ओर हैदराबाद में आम सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने तेलंगाना के लोगों के पक्ष
में जोरदार आवाज उठाकर उनका दिल जीत लिया। वहीं चन्द्रबाबू नायडू को एन.टी.
रामाराव के सपनों को पूरा करवाने की जिम्मेवारी दे दी। तेलंगाना वासियों के लिए
सबसे पहले आवाज उठाने के श्रेय उन्होंने एन.टी. रामाराव को देकर अपने खुले दिल का
परिचय दिया। टी.डी.पी. भी अब उनकी भावी सहयोगी होने की संभावना को मोदी ने बढ़ा
दिया है।
ये वहीं मोदी जो अब अपने साथियों का नाम लेने से
भी परहेज नहीं करते। उन्होंने लालन कॉलेज से अपने संबोधन में बीजेपी शासित राज्यों
का ही तरजीह नहीं दी। बल्कि अन्य राज्य सरकारों के काम को भी दिल से बया किया। विकास
को केन्द्र राज्य का समन्वित प्रयास बताकर उन पर लगने वाले एकला चलो रे के आरोप को
भी विराम दे दिया। अब वे अपनी पार्टी के भी किसी नेता का नाम लेने से नहीं
हिचकाकिचाते। भारत के आईटी शहर हैदराबाद में उन्होंने ओबामा के समान हम कर सकते
हैं, जनता से लगवाकर अपनी दृड़ इच्छा का परिचय दिया है।
अब इन बातों को ध्यान में
रखकर देश का मतदाता अगर बहुदलीय व्यवस्था का खात्मा कर किसी एक दल को बहुमत देता
है तो वह देश हित में होगा। यह मतदाताओं की परिपक्वता को ही सूचित करेगा। इसमें
अप्रत्याशित होने जैसी कोई बात नहीं होगी। देश की समस्याओं का हल अब मतदाताओं को
ही अपने स्तर खोजना होगा। बोलों भारत माता की जय.......!
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)