23 जनवरी
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जयंती पर विशेष
राष्ट्र प्रेरणा के अमर स्त्रोत नेताजी
सुभाष चन्द्र बोस
भारत के महान् क्रांतीकारी रास बिहारी बोस ने
बैंकाक में भारत स्वतंत्रता लीग की स्थापना की। तिरंगे झण्डे को वहां लहराया। अपना
लक्ष्य भारत की तुरंत और पूर्ण स्वतंत्रता रखा। सिंगापुर के पतन के पश्चात।
अंग्रेजों ने 40 हजार भारतीय सैनिकों को जापान को सौंप दिया। जापान ने इन भारतीय
सौनिकों कैप्टन मोहन सिंह को सौंप दिया। मोहन सिंह ने अपने थोड़े सैनिकों के साथ
आजाद-हिन्द सेना का गठन किया। बाद में नागरिक भी इस सेना में सम्मिलित हुए। इस
सेना के अधिकारी केवल भारतीय ही थें। निश्चय किया गया। यह सेना केवल भारत की
स्वतंत्रता के लिए ही युद्ध करेंगी।
सुभाष चन्द्र बोस आजाद-हिन्द सेना के आमंत्रण पर
जापान पहुंचे। जापान के प्रधान मंत्री टोजो ने उनका स्वागत किया। उसने सुभाष
चन्द्र बोस को स्पष्ट किया। जापान भारत की स्वतंत्रता चाहता है। उसे अपने लिए कुछ
नहीं चाहिए। परंतु युद्ध के समय में भारत जापान की अधीनता में रहेगा। सुभाष चन्द्र
बोस ने उनकी इस बात को स्वीकार कर लिया। नेता जी ने अंग्रेजों के विरूद्ध। भारत की
स्वतंत्रता के लिए। संघर्ष करने। अपना पहला संदेश। भारतीयों को टोकियो रेडियों से
दिया। सुभाष चंद्र बोस के सिंगापुर पहुंचने पर। भारतीयों और भारत स्वतंत्रता लीग
ने भव्य स्वागत किया। पूर्वी एशिया के भारत स्वतंत्रता संग्राम की बागडोर रास
बिहारी बोस ने सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दी।
सुभाष चन्द्र बोस को आजाद हिंद सेना
का सेनापति बना दिया गया। उसी समय सुभाष चन्द्र बोस नेता जी पुकारे गए। नेता जी
द्वारा आवाज लगाई गई। दिल्ली चलों। इस आवाज ने सिपाहियों पर जादू का असर किया। वह
दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया। जब आजाद हिंद फौज की सेनाएं कोहिमा
और मणिपुर के युद्ध में जुट गई। दो महीने में ही उनका आक्रमण उग्र हो गया।
अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा। सारे विश्व ने। सुभाष चन्द्रबोस की विलक्षण संगठन
शक्ति का अनुभव किया। सुभाष ब्रिगेड, गांधी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड और आजाद
ब्रिगेड में सेना का वितरण किया गया। कैप्टन लक्ष्मी सहगल की देखरेख में महिलाओं
की अलग झांसी रानी रेजीमेंट थी। बच्चों की अलग टुकड़ी थी। बच्चों का यह दल अत्यंत
उपयोगी सिद्ध हुआ।
कुछ माह पश्चात उन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र
भारत की एक अस्थाई सरकार की स्थापना की। इस सरकार ने मित्र राष्ट्रों से युद्ध की
घोषणा कर दी। कुछ ही दिनों में स्वतंत्र भारत की इस अस्थायी सरकार को। जापान,
जर्मनी, इटली, कोरिया, बर्मा, थाईलैंड, राष्ट्रीय चीन, फिलीपींस और मनचूरिया ने
मान्यता प्रदान कर दी। राष्ट्रीय अभिवादन- जय हिंद। राष्ट्रीय मुहर और राष्ट्रीय
चिन्ह- टीपू सुल्तान का शेर। राष्ट्रीय बैज, राष्ट्रीय गीत, शुभ, सुख चैन की बरसा।
और न जाने कितनी राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ती आजाद हिंद फौज में भारतीय रीति से
की गई। साम्प्रदायिक एकता का जो आदर्श आजाद हिंद फौज ने उपस्थित किया। वह हमेशा
स्मरणीय और अनुकरणीय है। जापान ने अंडमान-निकोबार द्बीप समूह को इस सरकार को सौंप
दिया। आजाद हिंद सेना ने जापानियों के साथ मिलकर साहस से युद्ध में भाग लिया। असम
में इम्फाल तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। परंतु उसके पश्चात उसे पीछे हटने के
लिए बाध्य होना पड़ा। जापान को भी मित्र राष्ट्रों के सम्मुख आत्म समर्पण करना
पड़ा।
नेताजी के प्रयास विफल हुएं। फिर भी उनके प्रयासों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई। आजाद हिंद फौज का नाम युगों तक अमर रहेंगा। पीठ पर सुरंगे बांधकर। जमीन पर लेटकर। ब्रिटिश टैंकों को उड़ाने वाले बाल सैनिकों। भूखे पेट या पत्तें खाकर छापा मारने वाले। गुलामी के घी से आजादी की घास को श्रेष्ठ समझने वाले सैनिकों। सोलह-सोलह घंटे तक युद्ध करके ब्रिटिश सेना के छक्के छुड़ा देने वाली रानी झांसी रेजीमेंट की महिला सैनिकों को युग-युग तक इतिहास में याद किया जायेगा।
सुभाष चन्द्र बोस अभी तक भारत के एक राष्ट्रीय
नेता स्वीकार किए जाते है। एक देश प्रेमी के रूप में भारतीय उन्हें हमेशा याद करते
रहेंगे। आजाद-हिन्द फौज और उनके अधिकारियों के दिल्ली के लाल किले में हुए
ऐतिहासिक मुकदमें ने सम्पूर्ण भारत में एक जन आन्दोलन को जन्म दिया। इस सेना के
निर्माण से अंग्रेजों का विश्वास भारतीय सेना से उठ गया। इन सभी घटनाओं ने
अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए प्रभावित किया।
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