नव वर्ष -
2015 की अगवानी करने के लिए विश्व के साथ–साथ भारत की जनता भी आतुर हैं। निरंतर
ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहने वाला भारत देश भी आज अपने भविष्य को लेकर व्यथित
हो उठा है। आसमान छूती महंगाई, हिलोरे लेती अर्थव्यवस्था, दरवाजे पर भौंकते
आतंकवाद, बेलगाम हुए भ्रष्टाचार और सार्वजनिक जीवन में सबसे नींचले स्तर को छूते नैतिक
मूल्यों के ग्राफ के बीच आज हम नव वर्ष 2015 के स्वागत में जश्न मनाने के लिए
तैयार हैं। भविष्य की स्थिरता और उन्नति की राह की तलाश में भारत की जनता की नजरें
पथराती जा रही हैं।
विश्व के
साथ-साथ भारत का जनमानस भी अपने सुखमय
भविष्य को लेकर व्यथित हो उठा हैं। वह एक विशेष प्रकार की कुंठा में जकड़ा
हुआ अपना जीवन बिता रहा हैं। ऐसे विपरित समय में भरे मन से ही ठीक लेकिन खुश होकर
अपने भविष्य के लिए शुभ मंगलमय राह की तलाश में जमकर खुशियां मनाने में कोई
कोर-कसर नहीं छोड़ रहा हैं।
भारत का
नागरिक इस नये साल के राष्ट्रीय कहो या अंतर्राष्ट्रीय भोर समारोह में मग्न होने
में वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता। इस अंतर्राष्ट्रीय भोर समारोह का केवल एक धर्म
है, मानव विकास की राह पर चलकर सुखमय जीवन व्यतीत करें। वह पूरी तरह इस जश्न में
डूब सा गया हैं। बस भारतीय नागरिक की यहीं वो बात है, जो उसे अवश्य ही शुभ मंगलमय
की भावी राह पर ले जायेंगी। यही वो तत्व है, जो हमारे देश को हर कठिन समय में उत्साह
और उमंग से भर देता है। घोर अंधेरे में भी भारत अपने ज्ञान के जरिए, विपरित राह की
जगह उचित राह अपना लेता है। इसीलिए हमारे देश का नामकरण हमारे पूर्वजों ने निरंतर
ज्ञान से प्रकाशित रहने वाले भारत नाम से किया। इसी ज्ञान के प्रकाश से भारत
शाश्वत रहा है, और शाश्वत रहेंगा।
देश में
महंगाई सातवां आसमान छूने की कहावत बोल रही है। महंगाई ने नागरिकों के रोजमर्रा के
जीवन को दूभर कर दिया है। वो अब रोजना सस्ता भरपेट भोजन की आशा भी नहीं पाल पा रहा
हैं। अच्छे कपड़े पहनकर जीवन बिताने की बात तो दूर। रहने के लिए एक पक्के मकान के
बारे में तो एक सामान्य व्यक्ति के लिए सोचना तक मना सा हो गया है। मकान बनाकर –
लेकर रहना तो एक सपना बन गया, जो भविष्य में शायद ही कभी साकार हो।
भारत की
अर्थव्यवस्था आज ऊंची कूद की छलांग लगाने को तैयार है। इस ऊंची कूद के बाद
अर्थव्यवस्था में बनने वाला ग्राफ भी इसी ऊंची कूद की छलांग की प्रक्रिया में ऊपर
की ओर अर्ध पैराबोलिक (अर्ध परवलयिक) बनेगा। ये अर्ध पैराबोलिक ग्राफ अपने
सर्वोच्च शिखर पर उच्चतम बिन्दु को छुकर कुछ समय के लिए समतलता लिए होगा। अर्थव्यवस्था
की ये समतलता कुछ समय के लिए हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे पिकअप पाइंट के साथ पिकअप
रन-वे लिए होगी। भारत आज संसार की सबसे उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। प्राकृतिक और
मानव संसाधन के लिहाज से आज देश सबसे आगे है। हिन्दुस्तान पर विश्व के कोने-कोने
के निवेशकों की नजरें हैं। इसमें कोई दो राय नहीं, हम आगामी कुछ सालों में
संसार में सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था बनेंगे। हमारी अर्थव्यवस्था छलांग
लगाकर ग्राफ के सबसे उच्चतम बिन्दु को छुएंगी। तरक्की के इस उच्चतम शिखर के बाद आर्थिक
क्षेत्र में स्थिरता या समतल रास्ता आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
अर्थव्यवस्था
के हिलोरे लेते इस भंवर में सर्वहारा वर्ग का मन व्यथित हो उठा है, आखिर देश में
धन-धान्य की प्रगति – विकास किसके लिए ? तरक्की के समतल रास्ते पर कौन अपने स्थिर कदम बढ़ा पायेंगा ? आखिर विकास के उस भावी
समतल रास्ते पर दौड़ने वाला कौन होगा – केवल पूंजीपति या सर्वहारा वर्ग भी ? जन का मन ये सोचकर व्यथित
हो उठा है कि चल रही अर्थव्यवस्था की दौड़ में कैसे सर्वहारा वर्ग पूंजीपति के साथ
अपने कदम साधकर दौड़े। ताकि भावि विकास की समतल राह पर सर्वहारा वर्ग पूंजीपति के
साथमैराथन दौड़ में भागने में मुकाबला कर सकें।
बिगड़े
पारिस्थिकीय संतुलन के चलते प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या, आंतरिक कानून एवं
न्याय व्यवस्था और आतंकवाद के साये ने सरकार पर बेमतलब बेसुमार खर्च बढ़ाकर विकास
के काम की जगह पुनर्वास के काम में उलझा दिया है। अप्रत्याशित तौर पर बार-बार आने
वाले इस भारी-भरकम अनचाहे आर्थिक व्यय ने एक ओर हमारा विकास अवरूद्ध किया हुआ है। वहीं
दूसरी ओर विकास की राह में रोड़ा बताने का बहाना सरकार के हाथ में थमा दिया है। जो
जन मन को बहुत व्यथित किए हुए है।
बेलगाम हुए
भ्रष्टाचार पर रस्साकसी हमें सोने नहीं दे रही है। भ्रष्टाचार पर ये रस्साकसी हर
समय हमारी आंखों के सामने झूल रही है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर सवारी करने वाला
कोई तारणहार सवार हमें नहीं मिल रहा है। इस तारणहार को भी जन मन ही ढूंढ सकता हैं।
कोई राजनीतिक दल या संगठन नहीं! इसके लिए मतदाताओं को
परिपक्व मानसिकता के साथ वोटिंग कर संकट मोचक को चुनना होगा। भ्रष्टाचार के प्रपात
से बनने वाला भंवर और बढ़ा ही होता जा रहा है। कोई भ्रष्टाचार के इस बढ़ते भंवर को
बहता पानी बताने का प्रयास कर रहा हैं, तो कोई उसे खत्म करने की बात कर रहा है।
कोई तो भंवर को बताकर हमारी नजरों से ही ओंझल करने के प्रयास कर रहा हैं। गलत तरीके
से धन एकत्रीकरण के बढ़ते इस दायरे ने जन मन के साथ मस्तक को भनभना दिया है। देश
में काले धन पर लगाम होती तो आज हमारी ये आर्थिक हालत नहीं होती।
सार्वजनिक
जीवन में सादे और उच्च विचारों वाले लोगों की लगातार घटती संख्या ने जनमानस को
चिंता में डाल दिया है। अब ऐसे सदाचार लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही बच गये हैं।
भविष्य में शायद हमें साधारण दिखने वाले ऐसे सर्वोच्च लोग उंगलियों पर गिनने को
नहीं मिलेंगे। जनता का दिल मानने लगा है कि देश में सभी समस्याओं की जड़ में
सर्वमान्य और अच्छे नेताओं का अभाव ही हैं। व्यवस्था की इस कमी को परिपक्व
प्रक्रियाओं का विकास कर ही पूरा किया जा सकता है। सर्वमान्य और अच्छे लोगों के
आने की पुरानी आशा करना अब पुरानी हो गई है। सार्वजनिक दायित्व को अब पूरी तरह
चलित, तार्किक और युवा बनाकर ही इस कमी को पूरा किया जा सकता है। सार्वजनिक दायित्व
को सभी के उपयोग का हक बनाकर इसे समाज में पूरा विस्तार मिलें। भाई-भतीजावाद से
परे ढांचा पूरी तरह पारदर्शी बनें।
परेशानियां
चाहे कितनी हों ..... ! इन जकड़ी हुई आर्थिक परिस्थितियों मेंहम भारतवासी इस नये साल की पूर्व
संध्या पर नव वर्ष के जश्न को जमकर मनायेंगे। पूरी तरह मग्न होकर इस नये साल की
अगवानी में कोई कमी नहीं छोडेंगे। इस नये वर्ष के जश्न से हम एक नया उत्साह, उमंग
और भरपूर आत्म विश्वास लेकर बाहर निकलेंगे। जो आगामी कठिन परिस्थितियों को हमारे
पक्ष में करने के लिए बल देगा। हम इस कठिन दौर का सामना कर बाहर निकल खुली हवा में
सांस लेंगे। हम एक भावी सुखद भविष्य में निवास कर बिना किसी व्यथाओं के स्वतंत्रता
से विचरण करेंगे।
छलांग लगाने
को तैयार, उभरती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के इस प्रारंभिक दौर में पिक रन-वे (Run Way) के पहले हमारे लिए एक आसियाना अवस्य बनायेंगे या लेंगे। हमें मालूम है,
अर्थव्यवस्था के विकास के सर्वोच्च बिन्दु के बाद तो मकान के दाम आज के भी चार
गुना होंगे। रोटी और कपड़ा की भावी व्यवस्था के लिए धन के बचत की राह पर तेज कदम
बढ़ाना शुरू कर देंगे। अंदर और बाहर न्याय एवं कानून व्यवस्था को सुधारने, आतंकवाद
का मुंह कुचलकर मानव जीवन को शांत माहौल देने और सार्वजनिक जीवन में सद् विचार वाले लोगों की कमी
को पूरा करने के लिए आने वाले चुनावों में हम भारतवासी एक दल की स्थिर सरकार बनाने
वोट करेंगे। जकड़ी हुई बेड़ियां अधिक देर तक हमें बांध नहीं रख पायेंगी। आने वाले
समय को ज्ञान के प्रकाश से हमारे पक्ष में कर लेंगे। अर्थव्यवस्था में पूंजीपतियों
के साथ सर्वहारा वर्ग की रफ्तार पकड़ती इस तेज मैराथन दौड़ में हम सब अपना – अपना
हित साधकर अपने आपको ही नहीं समाज के साथ – साथ राष्ट्र को भी गौरवान्वित कर अपना
भावी समय सुखमय बनायेंगे।
हमें
परेशानियों का ज्ञान हैं, लेकिन निराशा नहीं। धुंआ उड़कर आंखों में जाने पर कुछ नदिखने या समझ में न आने वाली कुंध या भैराने जैसी हमारी स्थिति नहीं हैं। हम
धुंए से भले ही घिरे हुए हो लेकिन भैराये हुए नहीं हैं। भारत ज्ञान से निरंतर
प्रकाशित रहने वाला देश है। सर्व मानव धर्म के इस अंतर्राष्ट्रीय पर्व की पूर्व
शाम पर भारत हमेशा सराबोर रहा हैं ....... हैं ........ रहेंगा ....... ! बेमन से नहीं पूरे आत्मबल से इस नये साल – 2015 की पूर्व संध्या पर हम
हिन्दुस्तानियों की एक सुर में आवाज हैं ....... आव्हान हैं ...... नव वर्ष 2015
स्वागत हैं ...... वंदन हैं ..... अभिनन्दन हैं ...... ! हम तैयार हैं ........ !
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम्
राष्ट्राय, इदम् न मम्)