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Tuesday, 11 August 2015

वैचारिक द्वंद के घने कोहरे में हम सबका राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट

15 अगस्त 2015 पर विशेष


1.   जन-गण-मन ..... की एक स्वर में प्रतिध्वनि हमारी मूल पहचान 

2.   एक निष्पक्ष – चिंता या चिंतन 

3.   हमेशा ऊंचा लहराता रहे हमारा अमर तिरंगा 

4.   देश की आन-बान-शान में जा देने को हम तैयार

5.   गहरी होती कौंध से भरती जनता की आंखें 

6.   नजरों से ओझल होता निकट भविष्य

7.   उथल – पुथल के इस युग में घबरातें लोग

8.   अपने आने वाले दिनों की तस्वीर को साफ देखने लालायित देशवासी 

9.   इन हिलोरों के बाद कंचन बनकर उभरेगा देश 

10.                   दुनिया की अंगुवाई करने हम तैयार

  
 हर साल की तरह फिर आज हम स्वतंत्रता दिवस की बेला में खड़े हैं। खुशी के साथ चिंतन और मनन को लेकर आने वाले इस राष्ट्रीय पर्व को हम मनाने जा रहे हैं। 15 अगस्त की सुबह उत्साह और उमंग की ऊर्जा के साथ एक बार फिर हम सब भारत के लोगों का एक स्वर में राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट .......... !  हर संकट की घड़ी में हम सभी एक, देश हर दम एक साथ खड़ा – यहीं हम सबकी विशेषता। अच्छे विचारों को सामने लाने के लिए आंतरिक तौर पर वैचारिक मत भिन्नता जरूरी …… !  इन सबके बावजूज सबसे पहले दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए जवानों के साथ हम सब हर पल तैयार .... सजग ....... सतर्क ...... संवेदनशील ....... ।
स्वतंत्रता दिवस याने हमारे उन पूर्वजों के संघर्षों की यादों को संजोने ...... याद करने ..... उनके बतायें रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणा लेने का दिन ...... जिन्होंने 180 वर्षों के अपने अथक संघर्षों से हमें ये स्वतंत्रा दिलाई। उन घोर अमानवीय यातनाओं के याद करने का दिन जो हमनें गुलामी के दौर में झेली हैं। ये यादें ही हमें बताती हैं हमें गुलामी का महत्व। ये यादे ही हमें प्रेरित करती हैं मातृ भूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने ...... संघर्ष करने ..... सतर्क रहने ...... दुश्मन को करारा जवाब देने पुरजोर जज्बा देने के लिए। 
आज हम 69 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्त किए 68 साल बित गएं। इस लंबे अर्से में भारत ने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में अनेक ऊंचाईयों को छुआ हैं। भारत की मानसिक आयु ने भी अपना एक ऊंचा मुकाम हांसिल कर लिया हैं। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भारत का ये सिंहासन लगातर ऊंचा होता जा रहा है। अब हमारे बुजुर्गों ही नहीं, हमारे युवा और उनके पीछे आती किशोरों की पीढ़ी भी हमारी वैचारिक विरासत को अधिक याद करने की बजाय वो वर्तमान और भविष्य पर अधिक चिंतन करना चाहती हैं। पृष्ठ भूमि वाले आधारभूत विषय आज देश के हर तबके के नागरिक के दिल-दिमाग में लगभग स्पष्ट हैं। आज व्यक्ति मेजर की जगह तात्कालीक तौर पर उभरते और उसके हित वाले माइनर विषयों पर अधिक सोचने लगा हैं।
परिपक्वता की दहलीज पर पहुंच चुकी देश के मतदाताओं की मानसिक आयु व्यवस्था को ट्रैक पर लाने के लिए लगातार आगे बढ़ रही हैं। जनता ने ही 2014 में लोकसभा के आम चुनावों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत देकर प्रजातंत्र को पूरा किया। जनता जनार्दन ही हैं जिसने स्वतंत्रता के बाद पहली बार विपक्षी दल बीजेपी को अकेले आशा अधिक बहुमत देकर देश को एक दलीय और वंशानुगत शासन व्यवस्था के श्राप से मुक्त किया है। 1990 के दशक से जो राजनीति में उथल-पुथल (In a Time of Tarbulance) का दौर शुरू हुआ। उसकी मजबूरी वश देश गठबंधन राजनीति की खाई में जा गिरा। विश्व की दौड़ में शामिल होने के लिए इसी समय कांग्रेस के करकमलों से पूर्व प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिंहराव की अगुवाई में देश में शुरू हुआ आर्थिक ग्लोबलाइजेशन। जो कभी पटरी से उतरता तो कभी कभी ट्रैक से पर दौड़ता नजर आया। तभी से आज भी आर्थिक ग्लोबलाइजेशन भारत में अविरल रूप से लगातार ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहा हैं। 

ऐसे विपरित समय में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक सफल खेवनहार की तरह देश को गठबंधन की सफल राजनीति का पाठ पढ़ाकर देश को विपत्ती के महासागर से बाहर निकाल लिया। अटल जी के बाद फिर देश ने गठबंधन सरकार के दो मौन कार्यकाल देंखें। पूरे 10 वर्षों तक उस पर वंशवाद का साया छाया रहा। फिर भी वो देश के लिए अतुलनीय रूप से सफल रहा। उसने भले ही रेल तेज नहीं दौड़ायी लेकिन हमारी गाड़ी को ट्रैक से उतने नहीं दिया। परिवर्तन के प्रारंभिक दौर में स्वभावत: अपने हित साधने वालों ने जरूर सेंध लगाई जिससे बदनामी भी ज्यादा सामने उभरकर सामने आयी। इस दौरान विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र ने वंश विशेष के साथ स्वतंत्र शासक के अदभूत समन्वय को देखा। भले ही मौन के बल पर समय आगे बढ़ा हो। तथाकथित रूप से लगभग ही सही, मगर देश का वो विपरीत समय भी दुनियां की मैराथन में शामिल रहते हुए, आगे निकलने के पुरजोर प्रयास के साथ, मौन देश के शासन को इस विपत्ती के समय से बाहर निकाल ले आया।

अब 2014 के आम चुनावों में जनता ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी को रिकॉर्ड बहुमत देते हुए उस पर गुरूत्तर दायित्व डालकर भरोसा जताया हैं। जिन वादों को लेकर वर्तमान सरकार अस्तित्व में आयी थी, उन्हें कारगर करने प्रतिध्वनि तो बहुत ऊंची सुनाई दे रही हैं। यदि ये मधुर ध्वनि धरातल पर आयी तो हम दुनिया की अगुवाई करते नजर आयेंगे। विश्व गुरू रहे भारत का सपना एक बार फिर होगा। आज संसार के सभी लोगों की नजरें भारत के ऊपर हैं। प्लीज कम एण्ड मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, विदेशों में जमा काले धन की पाई-पाई घर आने की आशा, प्रभावशाली बनने के लिए आगे बढ़ती हमारी विदेश नीति, सरकारी कोष में जमा होने वाले धन का बढ़ता ग्राफ और दहाड़ से घबरा रही महंगाई वाले हमारे साहसी बोल हमारे सुनहरे भविष्य की राह खोल रहे हैं, कहे या खोल सकते हैं। अभी कहना मुमकिन नहीं। इन्हें भविष्य पर छोड़ने के अलावा अभी कोई रास्ता नहीं। आम लोगों के लिए देश में महंगाई घबराने की बजाय टस से मस न होकर अपने कदम आगे ही बढ़ा रही हैं। 
भ्रष्टाचार ने तो लगता है व्यवस्था में सारे मूल्यों को ही निगल लिया हैं। घुस लेने वाले से ज्यादा देने वाला खुश हो रहा हैं। लेने वाला तो घबराता भी है लेकिन देने वाला केवल अपना हित चाहता है। उसे चाहिये कम खर्चें में बिना लंबी प्रक्रिया में पड़े शीघ्र काम। देने वाले की इस दोहरी मनोवृत्ती पर लगाम लगे बिना सरकार के लिए भ्रष्टाचार पर विजय हांसिल करना दुष्कर ही नहीं मगर कठिन अवश्य है। एक ओर व्यक्ति गलत कामों के सहारे ही सहीं, मगर हर हाल में आगे बढ़ना चाहता हैं। दूसरी ओर वो भ्रष्टाचार के लिए सरकार को कोसता हैं। लगता है ये व्याधि तब तक दूर नहीं हो सकती जब तक समाज के हर लोगों में व्यक्तिगत तौर पर नैतिक संवेदनाएं नहीं जागती हैं। हमें एक जुट होकर हर जगह बुराई का विरोध करना चाहिये। आवाज उठाना चाहिए। चाहे बुराई किसी भी रूप में हो। दिल्ली की आप सरकार सार्वजनिक स्थलों पर हो रही बुराई के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाने की पहल के लिए  आह्वान कर रही है। जिसे पूरे देश में आगे बढ़ना चाहिए। आज दिवस देखना चाहता है सभी एक दूसरे की अच्छी पहल का स्वागत करें, देश में समनव्य की संस्कृति हो।
इसमें दो राय नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहले रोजगार की गारंटी को कानून में बदलकर देश को महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट दिया। इसके बाद देश को सूंचना अधिकार अधिनियम आरटीआई देकर व्यवस्था को पारदर्शी बनाने वाला साहसी कदम उठाया। इसी क्रम में देश के बच्चों के लिए शिक्षा के मूल अधिकार को कठोरता से क्रियान्वित करने शिक्षा का अधिकार अधिनयम लाकर अमह कदम उठाया। अपनी स्थिति को भापकर आखिर में जाते-जाते ही सही कांग्रेस देश को भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनिय और भारतीय लोकपाल अधिनियम दें गईं। कांग्रेस लोक कल्याण के साथ-साथ हमारे प्रजातंत्र के लिए मील का पत्थर साबित होने वाले इन कदमों का प्रभावी क्रियान्वयन आने वाली सरकार पर छोड़ गई। देश की जनता अब बीजेपी से इन अहम विषयों को जमीन पर लाने के साथ-साथ कांग्रेस द्वारा उठाए गये इन कदमों से भी बेहतर कानूनी प्रबंध की आशा कर रही हैं। आज नवीन सरकार को बने एक साल से अधिक का समय गुजर गया, अभी देश केवल गूंज सुन रहा है। एक ओर देश अपने आपको आत्मविश्वास से लबरेज महसूस कर रहा है, तो दूसरी ओर देश के लोग उठाये गयें कदमों की आहट सुनने के सुनने के साथ-साथ, उसे महसूस करने के लिए बेसब्री से लालायित हैं। लोकपाल बनाने के लिए अधिनियमित की गई एक साल की समय सीमा के चले जाने के बाद भी देश को लोकपाल की नियुक्ति के लिए आवाज तक सुनाई नहीं आ रही है।
 आज उसी अण्णा हजारे को जिसे बीते एक समय आज का गांधी पुकारा जाने लगा था, उनकी लंबी-लंबी चिठ्ठियों के जवाब एक लाइन में मिल रहे हैं। सचमुच उस समय गांधी के बाद कोई तो मुखौटा आया जिसके साथ पूरा देश एक स्वर में खड़ा था। उनके एक आह्वान पर थोड़ी देर के लिए शाम के समय सारे देश में एक साथ अंधेरा छा गया और मोमबत्तीयां जल उठी। बिना भेद-भाव, ईर्ष्या-द्वैष, स्वैच्छा से हर तबकें, न कोई गरीब, न कोई अमीर सभी के सामने एक ही निर्विवाद आवाज। जनता सड़कों पर उमड़ पड़ी। देश में पिन ड्राप साइलेंस। सभी कर्ताधर्ता सन्न। क्या आरएसएस, बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी, कम्यूनिष्ट या अन्य क्षेत्रीय दल हम सब उनके साथ। विडंबना ये धरोहर हम संजो नहीं पायें। आगे नहीं बढ़ा पायें। महत्वाकांक्षाओं ने उसे तितर-बितर कर दिया। मानव शांति के अस्तित्व के लिए खतरा बना आतंकवाद लगातार हमें चिड़ाने के प्रयास कर रहा हैं। हमारी विदेश नीति की अधिकांश चर्चा पाकिस्तान के ही ईर्द-गिर्द घुम रही है। दूसरी ओर लंबे समय से आतंकवाद की पीड़ा झेल रहे जम्मू एण्ड कश्मीर की सरकार में पीडीपी और बीजेपी का बेमेल हमारे दिमाग के परे लगता है। पाक आतंकवादी हमारे निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए हर कभी हमारे देश में चले आते हैं। उन्हें हम जिन्दा पकड़े या मुर्दा। पड़ोसी उसे अपने यहां के नागरिक होने से इंकार कर देता है। साक्ष्यों को तो वो धता दिखाता हैं।  
संसद हो या विधान सभाएं हमारी विधायिकाएं प्रासंगिक बहस की जगह संख्या बल की राजनीति अधिक करने लगी हैं। समय से पहले सत्रावसान होना। सदन को चलने से बाधित करना। विशेज्ञता के इस युग में तकनीकी पर आधारित बहस की जगह राजनीतिक विषयों की बहस पर ही सदन का समय गवा देना। राजनीति दलों में अतिशय अनुशासन की सीमा के चलते बड़े पैमाने पर डम्प पार्लियामेंट, डम्प विधान सभाओं के बढ़ते अस्तित्व जैसे अनेक विषयों ने आम लोगों को चिंता में डाल दिया हैं। सभी अपनी – अपनी बात उचित ठहराने में लगे हैं। जिन्होंने मूल्य आधारित जनजीवन की बहतरी के लिए विपक्ष में रहकर लंबे समय तक संघर्ष किया वो भी और जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद से आज तक सत्ता सुख भोगा वो भी। सभी एक ट्रैक पर। प्रजातंत्र के पूरा होने पर आज भी हम वो ही देख रहे हैं, जो विगत 65 सालों से देखते आ रहे हैं।
  
चारों ओर सुषमा-वसुंधरा-शिवराज के नाम का हो हल्ला। जनता को सच्चाई कुछ सूझ नहीं रहीं। क्या विवादों में आयी किसी धरोहर को बचाना इतना जरूरी हैं। या किसी को जांच की भट्टी में तपाकर उसे कंचन बनाकर निकालना। कहीं वहीं तो नहीं हो रहा जो 65 सालों से कांग्रेस करती आयी। वो भी तब जब बीजेपी जैसा मूल्य आधारित राजनीतिक दल सत्ता में हैं। जनसंघ के काल से मूल्य आधारित राजनीतिक दल की दुहाई दे रहें बीजेपी में उसी कांग्रेस के कार्यकर्ता धड़ल्ले से आ रहे हैं। जिसके मूल्यों के विरोध में हमने संघर्ष किया। लगता है अब इस अवसरवादी विपरित प्रवाह ने चुनावी जीत को सर्वोपरी बना दिया हैं। मूल्य बीतें दिनों की बात बनकर रह गएं। गलत काम करने वाला एक व्यक्ति ललित मोदी विदेश में बैठकर निडरता से एक से बढ़कर एक आरोप सभी दलों के हमारे कर्ताधर्ताओं पर लगा रहा हैं। हमारी व्यवस्था की कमियों को उजागर कर स्वच्छ बनाने की चाह रखने वाले हमारे व्हीसिल ब्लोअर अपनी जान की सुरक्षा गारंटी की कमी के चलते बड़े पैमाने पर एक्टिव होकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। सरकार के लिए व्हीसिल ब्लोअर की सुरक्षा और उनके द्वारा होने वाले संभावित दुरूपयोग के बीच संतुलन बिठाना कठिन हो रहा हैं। देश इस पर सरकार के किसी कड़े कदम उठाने की आशा कर रहा है।    

 कांग्रेस के आखिर समय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कालेधन की जांच के लिए एसआईटी बनाने के निर्देश के क्रियान्वयन के अलावा कालेधन पर कोई सीधा फायदा आम जनता को पहुंचता नजर नहीं आ रहा हैं। पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाली जनसंप्रभु सत्ता प्राप्त संस्था विशालकाय संसद की जगह न्याय पालिका अधिक सक्रिय नजर आ रही है। पूरे देश की आशाएं अब लगता हैं देश की न्याय पालिका पर ही आ टिकी हैं। न्याय पालिका अपने ऊपर आये दायित्व की भूमिका बखूबी निभा रही हैं। उस पर देश को फक्र ही नहीं पूरा विश्वास भी है। हमारी विधायिकाओं को इस विसंगति को दूर करने के लिए अपनी भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाना होगा। मतदाता अपना काम अच्छी तरह कर रहे हैं। संभवत: अक्टूबर-नवम्बर में होने वाले बिहार विधान सभा के चुनावों में विजय का सेहरा स्पष्ट बहुमत के साथ बीजेपी के सिर बांध दे तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। गठबंधन की जगह बिहार की स्पष्ट विजय भारतीय प्रजातंत्र के सिर पर ताज चढ़ाने जैसा ही होगा। जो आज का जागरूक मतदाता ही कर सकता हैं।

इसी साल के आखिर में पश्चिम बंगाल की विधान सभा के होने वाले आम चुनावों में मतदाता बीजेपी को स्पष्ट बहुमत देकर भारत के प्रजातंत्र के ताज में किंगपिन लगाकर भारतीय प्रजातंत्र को विश्व सिंहासन पर बैठाने के लिए आगे बढ़ा सकते हैं। मतदाता ही हैं जिसने पहले पश्चिम बंगाल में 40 वर्षों से चले आ रहें कम्युनिष्टों के एक छत्र राज को उखाड़ फेंक प्रदेश की बागडौर ममता बैनर्जी की पार्टी तृण मूल कांग्रेस को सौंपी। अब आगामी चुनावों में बंगाल की जनता अपने प्रदेश की सत्ता राष्ट्रीय राजनीतिक दल बीजेपी के हाथों में देकर अपना राष्ट्रीय कर्तव्य पूरा कर सकती हैं। इसी के साथ हमारे दायित्व में भी बहुत अधिक गुरूत्तर वृद्धि होगी। अहम के चलते विजय को हल्के में लेने के नतीजे के संकेत भी प्रजातंत्र दिल्ली में ऐतिहासिक बहुमत देते हुए आप की सरकार बनाकर दें चुका हैं। जनता ने दी इस ऐतिहासिक विजय के बाद से दिल्ली में जो कुछ जंग की नजीब खींची जा रही है। वो शायद जनता को भा नहीं रही। दिल्ली दूसरों को सौंपकर तो जनता ने केवल लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को धरातल पर लाया है।
                      
 प्रजातंत्र में विपक्ष की भी उतनी ही अहम् भूमिका होती है, जितनी सत्ता पक्ष की। दृड़ इच्छा शक्तिशाली वाला विपक्ष सत्ता को विरोध के साहारे सतर्क-सजग रखकर प्रजातंत्र को पूरा करता है। स्वतंत्रता के बाद गांधी जी ने तो भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की सार्वभौम धरोहर को संजोकर रखने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक राजनीतिक दल बनाने का विरोध किया था। गांधी जी का कहना था भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की ये विरासत भारत को युग-युग तक एकत्व के साथ संघर्ष करने की प्रेरणा देती रहेंगी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लंबे संघर्ष से मिली मूल्यों की ये दुर्लभ धरोहर कभी राजनीतक तौर पर भी लांछीत नहीं होगी। अनेकता में एकता रखने वाले भारत के हर नागरिक के लिए एक समान सम्मानीय, अनुकरणीय होगी। भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक राजनीतिक दल में बदलने के बाद भी गांधी जी ने कईं बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को समाप्त करने की बात उठाई थी। लेकिन अवसरवादियों के सामने गांधी जी की एक नहीं चली।
 गांधी जी के इस दूरगामी विचार को बीजेपी ने अपने प्रचार तंत्र के अंग में भी शामिल किया है। ऐसे में देश की राजधानी में आप के साथ चल रही बीजेपी की खटपट की कैसे आशा की जा सकती है। देश के मूल्यों की अनदेखी से रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस के विकल्प के तौर पर आप उभरने को बेताब हो रही है, तो होने दिया जाय। दिल्ली में आप की विजय कोई हमारी पराजय न होकर लोकतंत्र में मिलने वाले संकेत के समान हैं। 
हाल ही में सरकार द्वारा कुछ अश्लील वेबसाइटों को बंद करने और मुम्बई बम धमाकों के आरोपी को फांसी देने के बाद कवरेज करने वाले कुछ टी.वी. चैनलों को नोटिस दिए जाने के कारण हमारा विरोध गलत हैं। अश्लील वेबसाइटों को बैन कर सरकार ने ऐसा क्या गलत कर दिया। इससे हमारे बच्चें और संस्कृति दोनों ही सुरक्षित हुए हैं। वहीं सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ने की संभावना के चलते संवेदनशील कवरेज बैन होने से तो कोई अनचाही अनहोनी ही निर्मूल हुई है। ऐसी सकारात्मक सोच ही हैं जो हमारे देश को ऊंचाईयों पर ले जायेंगी। हम सीना फुलाकर गर्व से कह सकेंगे हम हैं भारतवासी ........... ! एक साथ सारे देशवासियों का राष्ट्र ध्वज को सैल्यूट ..........!  सदा लहराता रहे हमारा अमर तिरंगा ......... !
(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम् ..... !)       

Friday, 19 June 2015

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर दो शब्द



21 जून, 2015

विश्व समुदाय से अनुनय

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर दो शब्द

आज विश्व अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है। प्रतिवर्ष 21 जून को इसे मनाया जायेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के मान्यता देने के बाद पहले ही बार इसमें 192 देश शामिल हो रहे हैं। लंबे समय से सारी दुनियां आलस्य और भागमभाग के कारण स्वास्थ्य के गिरने की रफ्तार तेज होने के कारण एक नये विकल्प की तलाश में थीं। जो इस भौतिक उपभोगवाद की कलह और द्वैष भरी दुनियां में इंद्रियों को नियंत्रण में लेकर,  मानसिक तनाव को दूर करने का सरल और सुगम यंत्र बनकर, जीवन में उत्साह और उमंग का साधन बनें। विश्व, देश, समाज, परिवार और हर व्यक्ति की सुबह प्रभात में उछलतें – कूंदते हो, उसे सूर्य नारायण प्रतिदिन जाग्रत देंखे। प्रकाश बिखेरते समय जिसके पास किसी देश, समाज, धर्म, जाति, नस्ल और जीव को लेकर कोई भेदभाव नहीं हों। सब बराबर का एक ही भाव।
आज सनातन भारत की ये वैदिक धरोहर पूरे संसार की बनने जा रही है। इसे सबने सर्व मानवीय समस्यों के हल के तौर पर मान्यता दी हैं। सब खुले दिल से अपनाने जा रहे हैं। सदियों के अनुसंधान के बाद कसौटियों पर खरी उतरी इस पुरातन तकनीक को दुनियां के हर घर के हर व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में उतारकर योग को संसार में हर व्यक्ति का सार्वभौमिक कर्तव्य बना देना चाहियें। तभी हम सारी दुनियां के लोग विश्व को मानवीय आकार देने में सफल हो सकते हैं। पूरी दुनियां मुठ्ठी में होने का सपना साकार हो सकता है। योग की ये पुरातन तकनीक हम सबके जीवन में रोजाना एक नया सबेरा ला सकती है। व्यतता के बहाने रोजाना देर से उठकर, चढ़ती दोपहरी का स्वागत करने जन्म ले चुकी नीरस आदत को भगाकर, इस जगत से आलस्य का खात्मा किया जा सकता है।

समाज का हर व्यक्ति कल से अपने जीवन में योग को अपनाकर, अपने और परायों के जीवन में एक नये सूरज का आगाज करेंगां ......... ! इसी आशा के साथ आपका .......... ।
            
 (इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् नमम्)   

Monday, 30 March 2015

मेरी आदर्श राह



टूटे हुए तारों से, फूटे बासंती स्वर ।
पत्थर की छाती में, उग आया नव अंकुर ।।
झरे सब पीले पात, कोयल की कुहक रात ।
प्राची में अरूणिम की रेख, देख पाता हूं ।।
गीत नया गाता हूं ..........

टूटे हुए सपनों की, कौन सुने सिसकी ।
अन्तर चीर व्यथा, पलकों पर ठिठकी ।।
हार नहीं मानूगा, रार नहीं ठानूंगा ।।
काल के कपाल पे, लिखता मिटाता हूं ।
गीत नया गाता हूं .............

   
                 
 ...... महान् चिंतक और कर्मदूत

                   माननीय अटल बिहारी वाजपेयी

Monday, 15 December 2014

मेरे प्रेरणा पद्य – 01



·      मेरा नित्य प्रभात सूर्य नमस्कार मंत्र जाप  –
तं सूर्यं जगतकर्तारम्, महातेज: प्रदीपनम् ।
महापापहरम् देवं तं, सूर्यं प्रण महाम्यम् ।।


·      मेरा नित्य आराध्य महामंत्र जाप –
ऊँ नमो नम: शिवाय:

·      मेरा नित्य कर्म दर्शन महापाठ –
 श्रीमद् भागवद् गीता


·      मेरा नित्य प्रभात सूर्य तर्पण मंत्र जाप –
ऊँ रौम रीम, सह सूर्याय नम:


मेरा दैनिक मानस –
उमा कहहु मैं अनुभव अपना ।
सत हरि भजन जगत सब सपना ।।
-        रामचरित मानस
मेरा सद् विचार –
भरत न होहि राजमदु, विधि हरिहर पद पाई ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि, क्षीरसिंधु बिन साई ।।
-        रामचरित मानस

तुलसी वचन –
कलि महँ एक पुनीत प्रतापा ।
मानस पुण्य पाप नहि व्यापा ।।
-        रामचरित मानस, उतरकाण्ड


लोक कहावत में मेरे जल्दी उठने की प्रेरणा –
                 तीन बजे जागे सुयोगी,
                 चार बजे जागे सुसंत ।
          पांच बजे जागे सो महात्मा,
          छह बजे जागे सो भगत ।।
              बाकी सब ठगत ।


मेरा चिकित्सक महा मृत्युंजय मंत्र –
      


(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्।)

Sunday, 14 December 2014

व्यथाओं की दहलीज पर नव वर्ष की दस्तक

 स्वागत ..... वंदन ..... अभिनन्दन .... !

शुभ मंगलमय राह की तलाश में पथराती आंखें

नव वर्ष - 2015 की अगवानी करने के लिए विश्व के साथ–साथ भारत की जनता भी आतुर हैं। निरंतर ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहने वाला भारत देश भी आज अपने भविष्य को लेकर व्यथित हो उठा है। आसमान छूती महंगाई, हिलोरे लेती अर्थव्यवस्था, दरवाजे पर भौंकते आतंकवाद, बेलगाम हुए भ्रष्टाचार और सार्वजनिक जीवन में सबसे नींचले स्तर को छूते नैतिक मूल्यों के ग्राफ के बीच आज हम नव वर्ष 2015 के स्वागत में जश्न मनाने के लिए तैयार हैं। भविष्य की स्थिरता और उन्नति की राह की तलाश में भारत की जनता की नजरें पथराती जा रही हैं।
विश्व के साथ-साथ भारत का जनमानस भी अपने सुखमय  भविष्य को लेकर व्यथित हो उठा हैं। वह एक विशेष प्रकार की कुंठा में जकड़ा हुआ अपना जीवन बिता रहा हैं। ऐसे विपरित समय में भरे मन से ही ठीक लेकिन खुश होकर अपने भविष्य के लिए शुभ मंगलमय राह की तलाश में जमकर खुशियां मनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा हैं।
भारत का नागरिक इस नये साल के राष्ट्रीय कहो या अंतर्राष्ट्रीय भोर समारोह में मग्न होने में वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता। इस अंतर्राष्ट्रीय भोर समारोह का केवल एक धर्म है, मानव विकास की राह पर चलकर सुखमय जीवन व्यतीत करें। वह पूरी तरह इस जश्न में डूब सा गया हैं। बस भारतीय नागरिक की यहीं वो बात है, जो उसे अवश्य ही शुभ मंगलमय की भावी राह पर ले जायेंगी। यही वो तत्व है, जो हमारे देश को हर कठिन समय में उत्साह और उमंग से भर देता है। घोर अंधेरे में भी भारत अपने ज्ञान के जरिए, विपरित राह की जगह उचित राह अपना लेता है। इसीलिए हमारे देश का नामकरण हमारे पूर्वजों ने निरंतर ज्ञान से प्रकाशित रहने वाले भारत नाम से किया। इसी ज्ञान के प्रकाश से भारत शाश्वत रहा है, और शाश्वत रहेंगा।
देश में महंगाई सातवां आसमान छूने की कहावत बोल रही है। महंगाई ने नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन को दूभर कर दिया है। वो अब रोजना सस्ता भरपेट भोजन की आशा भी नहीं पाल पा रहा हैं। अच्छे कपड़े पहनकर जीवन बिताने की बात तो दूर। रहने के लिए एक पक्के मकान के बारे में तो एक सामान्य व्यक्ति के लिए सोचना तक मना सा हो गया है। मकान बनाकर – लेकर रहना तो एक सपना बन गया, जो भविष्य में शायद ही कभी साकार हो।
भारत की अर्थव्यवस्था आज ऊंची कूद की छलांग लगाने को तैयार है। इस ऊंची कूद के बाद अर्थव्यवस्था में बनने वाला ग्राफ भी इसी ऊंची कूद की छलांग की प्रक्रिया में ऊपर की ओर अर्ध पैराबोलिक (अर्ध परवलयिक) बनेगा। ये अर्ध पैराबोलिक ग्राफ अपने सर्वोच्च शिखर पर उच्चतम बिन्दु को छुकर कुछ समय के लिए समतलता लिए होगा। अर्थव्यवस्था की ये समतलता कुछ समय के लिए हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे पिकअप पाइंट के साथ पिकअप रन-वे लिए होगी। भारत आज संसार की सबसे उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। प्राकृतिक और मानव संसाधन के लिहाज से आज देश सबसे आगे है। हिन्दुस्तान पर विश्व के कोने-कोने के निवेशकों की नजरें हैं। इसमें कोई दो राय नहीं, हम आगामी कुछ सालों में संसार में सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था बनेंगे। हमारी अर्थव्यवस्था छलांग लगाकर ग्राफ के सबसे उच्चतम बिन्दु को छुएंगी। तरक्की के इस उच्चतम शिखर के बाद आर्थिक क्षेत्र में स्थिरता या समतल रास्ता आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
अर्थव्यवस्था के हिलोरे लेते इस भंवर में सर्वहारा वर्ग का मन व्यथित हो उठा है, आखिर देश में धन-धान्य की प्रगति – विकास किसके लिए ? तरक्की के समतल रास्ते पर कौन अपने स्थिर कदम बढ़ा पायेंगा ? आखिर विकास के उस भावी समतल रास्ते पर दौड़ने वाला कौन होगा – केवल पूंजीपति या सर्वहारा वर्ग भी ? जन का मन ये सोचकर व्यथित हो उठा है कि चल रही अर्थव्यवस्था की दौड़ में कैसे सर्वहारा वर्ग पूंजीपति के साथ अपने कदम साधकर दौड़े। ताकि भावि विकास की समतल राह पर सर्वहारा वर्ग पूंजीपति के साथ मैराथन दौड़ में भागने में मुकाबला कर सकें। 
बिगड़े पारिस्थिकीय संतुलन के चलते प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या, आंतरिक कानून एवं न्याय व्यवस्था और आतंकवाद के साये ने सरकार पर बेमतलब बेसुमार खर्च बढ़ाकर विकास के काम की जगह पुनर्वास के काम में उलझा दिया है। अप्रत्याशित तौर पर बार-बार आने वाले इस भारी-भरकम अनचाहे आर्थिक व्यय ने एक ओर हमारा विकास अवरूद्ध किया हुआ है। वहीं दूसरी ओर विकास की राह में रोड़ा बताने का बहाना सरकार के हाथ में थमा दिया है। जो जन मन को बहुत व्यथित किए हुए है।
बेलगाम हुए भ्रष्टाचार पर रस्साकसी हमें सोने नहीं दे रही है। भ्रष्टाचार पर ये रस्साकसी हर समय हमारी आंखों के सामने झूल रही है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर सवारी करने वाला कोई तारणहार सवार हमें नहीं मिल रहा है। इस तारणहार को भी जन मन ही ढूंढ सकता हैं। कोई राजनीतिक दल या संगठन नहीं ! इसके लिए मतदाताओं को परिपक्व मानसिकता के साथ वोटिंग कर संकट मोचक को चुनना होगा। भ्रष्टाचार के प्रपात से बनने वाला भंवर और बढ़ा ही होता जा रहा है। कोई भ्रष्टाचार के इस बढ़ते भंवर को बहता पानी बताने का प्रयास कर रहा हैं, तो कोई उसे खत्म करने की बात कर रहा है। कोई तो भंवर को बताकर हमारी नजरों से ही ओंझल करने के प्रयास कर रहा हैं। गलत तरीके से धन एकत्रीकरण के बढ़ते इस दायरे ने जन मन के साथ मस्तक को भनभना दिया है। देश में काले धन पर लगाम होती तो आज हमारी ये आर्थिक हालत नहीं होती।
सार्वजनिक जीवन में सादे और उच्च विचारों वाले लोगों की लगातार घटती संख्या ने जनमानस को चिंता में डाल दिया है। अब ऐसे सदाचार लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही बच गये हैं। भविष्य में शायद हमें साधारण दिखने वाले ऐसे सर्वोच्च लोग उंगलियों पर गिनने को नहीं मिलेंगे। जनता का दिल मानने लगा है कि देश में सभी समस्याओं की जड़ में सर्वमान्य और अच्छे नेताओं का अभाव ही हैं। व्यवस्था की इस कमी को परिपक्व प्रक्रियाओं का विकास कर ही पूरा किया जा सकता है। सर्वमान्य और अच्छे लोगों के आने की पुरानी आशा करना अब पुरानी हो गई है। सार्वजनिक दायित्व को अब पूरी तरह चलित, तार्किक और युवा बनाकर ही इस कमी को पूरा किया जा सकता है। सार्वजनिक दायित्व को सभी के उपयोग का हक बनाकर इसे समाज में पूरा विस्तार मिलें। भाई-भतीजावाद से परे ढांचा पूरी तरह पारदर्शी बनें।
परेशानियां चाहे कितनी हों ..... !  इन जकड़ी हुई आर्थिक  परिस्थितियों में हम भारतवासी इस नये साल की पूर्व संध्या पर नव वर्ष के जश्न को जमकर मनायेंगे। पूरी तरह मग्न होकर इस नये साल की अगवानी में कोई कमी नहीं छोडेंगे। इस नये वर्ष के जश्न से हम एक नया उत्साह, उमंग और भरपूर आत्म विश्वास लेकर बाहर निकलेंगे। जो आगामी कठिन परिस्थितियों को हमारे पक्ष में करने के लिए बल देगा। हम इस कठिन दौर का सामना कर बाहर निकल खुली हवा में सांस लेंगे। हम एक भावी सुखद भविष्य में निवास कर बिना किसी व्यथाओं के स्वतंत्रता से विचरण करेंगे।
छलांग लगाने को तैयार, उभरती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के इस प्रारंभिक दौर में पिक रन-वे (Run Way) के पहले हमारे लिए एक आसियाना अवस्य बनायेंगे या लेंगे। हमें मालूम है, अर्थव्यवस्था के विकास के सर्वोच्च बिन्दु के बाद तो मकान के दाम आज के भी चार गुना होंगे। रोटी और कपड़ा की भावी व्यवस्था के लिए धन के बचत की राह पर तेज कदम बढ़ाना शुरू कर देंगे। अंदर और बाहर न्याय एवं कानून व्यवस्था को सुधारने, आतंकवाद का मुंह कुचलकर मानव जीवन को शांत माहौल देने और  सार्वजनिक जीवन में सद् विचार वाले लोगों की कमी को पूरा करने के लिए आने वाले चुनावों में हम भारतवासी एक दल की स्थिर सरकार बनाने वोट करेंगे। जकड़ी हुई बेड़ियां अधिक देर तक हमें बांध नहीं रख पायेंगी। आने वाले समय को ज्ञान के प्रकाश से हमारे पक्ष में कर लेंगे। अर्थव्यवस्था में पूंजीपतियों के साथ सर्वहारा वर्ग की रफ्तार पकड़ती इस तेज मैराथन दौड़ में हम सब अपना – अपना हित साधकर अपने आपको ही नहीं समाज के साथ – साथ राष्ट्र को भी गौरवान्वित कर अपना भावी समय सुखमय बनायेंगे।
हमें परेशानियों का ज्ञान हैं, लेकिन निराशा नहीं। धुंआ उड़कर आंखों में जाने पर कुछ न दिखने या समझ में न आने वाली कुंध या भैराने जैसी हमारी स्थिति नहीं हैं। हम धुंए से भले ही घिरे हुए हो लेकिन भैराये हुए नहीं हैं। भारत ज्ञान से निरंतर प्रकाशित रहने वाला देश है। सर्व मानव धर्म के इस अंतर्राष्ट्रीय पर्व की पूर्व शाम पर भारत हमेशा सराबोर रहा हैं ....... हैं ........ रहेंगा ....... ! बेमन से नहीं पूरे आत्मबल से इस नये साल – 2015 की पूर्व संध्या पर हम हिन्दुस्तानियों की एक सुर में आवाज हैं ....... आव्हान हैं ...... नव वर्ष 2015 स्वागत हैं ...... वंदन हैं ..... अभिनन्दन हैं ...... ! हम तैयार हैं ........ !
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)   


Thursday, 13 November 2014

स्वच्छता अभियान के बीच उठी विरासत पर सियासत !

विचारधारा को समृद्ध बनाने और बचाने की होड़


1.  14 से 19 नवम्बर तक देश में चलेगा स्वच्छता अभियान
2.  17 और 18 नवम्बर को पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपलब्धियों पर अंतर-राष्ट्रीय सेमिनार
3.  समग्र सफाई केवल हमारे आसपास या राजनीति सहित पूरे सार्वजनिक जीवन की
4.  समग्र सफाई अभियान के बहाने राजनीति तो नहीं ?  
5.  स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई करने वाला दल कांग्रेस तिलमिलाया

15 अगस्त 2014 को, पूर्ण बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी की पहली सरकार के प्रधान मंत्री ने नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश में समग्र स्वच्छता अभियान चलाने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत की। स्वच्छता पसंद और उसे अपने व्यावहारिक जीवन में उतारने वाले हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर से समग्र स्वच्छता अभियान की शुरूआत कर नरेन्द्र मोदी ने देश का दिल जीत लिया। उन्होंने क्लीन इंडिया का नारा देकर अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति जन-जन के सामने जाहिर की।   
जन-जन की भागीदारी वाली इस योजना का भावी हश्र जो भी हो, लेकिन योजना शुरूआती दौर में सांकेतिक तौर पर ही सही पर चल बड़े जोर-शोर से रही है। लोगों में प्रतिस्पर्धात्मक उत्साह और उमंग देखने को मिल रहा है। 
जनता की नाराजगी का डर सताने के कारण सभी राजनीतिक दल इसमें शामिल हो रहे हैं। लोग भी समय-समय पर इन राजनीतिक पार्टियों के साथ भागीदारी कर रहे हैं। भले ही प्रधान मंत्री के ध्यान से ओझल होते ही सफाई अभियान को राजनीतिक कार्यकर्ता और दोनों ही भूल जाते हैं। सफाई अभियान देश में अभी उच्चतम और निम्नतम स्तर के ग्राफ से चल रहा है। इन सब व्यावहारिक कठिनाइयों के बावजूद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अपने व्यस्तम समय में से कुछ समय निकालकर विशेष समयों पर देश में सफाई अभियान में भाग ले रहे है। प्रधान मंत्री के इन कदमों से लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता का संचार हो रहा है। प्रधान मंत्री के बार-बार आव्हान का देश के जनमानस पर गहरा असर हो रहा है। फिर भी, देश में समग्र स्वच्छता अभियान तब तक सफल नहीं हो जब तक लोग उसे व्यक्तिगत नैतिक दायित्व न बना लें। बस एक यही काम है, जिसे हमारे देश की जनता को स्वच्छ भारत बनाने के लिए करना है।
अब आधुनिक भारत के निर्माता कहलाने वाले पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती 14 नवम्बर, बाल दिवस से लेकर देश की आयरन लेडी के नाम से पहचानी जाने वाली पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्म दिन 19 नवम्बर तक देश में सघन स्वच्छता अभियान चलाने का आह्वान किया गया है। इस समय को बीजेपी के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विशेष तौर पर सफाई अभियान के लिए चुनने पर देश में बहस चल निकली है। लोग कहने लगे हैं समग्र सफाई के बहाने  कहीं ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विचारधार विहीन बनाने का प्रयास तो नहीं है ?  बीजेपी के पास पहले से ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद और पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हैं। ऊपर से बीजेपी गांधीवाद को अपने संविधान में शामिल कर विचारधारा को समृद्ध बनाये हुए है। उचित और तेज  कदम बढ़ाते हुए।
कांग्रेस द्वारा हांसिये पर धकेले हुए, भारतीय बिस्मार्क को बीजेपी ने राष्ट्रीय सम्मान की मुख्य धारा में लाकर सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधार को ले लिया। सबसे पहले बीजेपी ने सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा लागाने की घोषणा की। फिर देश भर में रन ऑफ युनिटी का आयोजन किया। इसके बाद 31 अक्टूबर 2014 से सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिन को देश भर में एकता दिवस के रूप में मनाना प्रारम्भ कर दिया। रही बात जयप्रकाश नारायण और उनकी समग्र क्रांति की तो बीजेपी समय-समय पर लोकनायक की इस विरासत पर के प्रति भी गहरी संवेदना जताती रही है। 
वैसे भी जयप्रकाश नारायण आपातकाल के दौरान बीजेपी की पूर्वगामी भारतीय जनसंघ के संगी-साथी रहे है। जयप्रकाश नारायण ने इस कठिन समय में देश को एक ओर लोक नेतृत्व दिया तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आपातकाल का विरोध करने में सबसे अधिक बढ़-चढ़कर भागीदारी की है। ऐसे में बीजेपी समग्र क्रांति को अपने दायरे में पूरी तरह लेकर कभी भी देश के विकास के मार्ग के दर्शन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के साथ शामिल कर सकती है। भारत की पूरी स्वतंत्रता के लिए सपना देखने वाले गरम दल के नेता आजाद हिन्द फौज के कमॉण्डर सुभाष चन्द्र बोस को बीजेपी ने नीरस मन से याद भर करने की जगह राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मान देकर अपना बताना प्रारंभ कर ही दिया है। देश की स्वतंत्रता में क्रांतिकारियों के योगदान की अनदेखी सहन नहीं होने के कारण बीजेपी ने अब चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल जैस अन्य सभी क्रांतिकारियों को भी देश के लिए वंदनीय बनाने का काम करना प्रारंभ कर दिया हैं। बीजेपी ने अब गांधी और सुभाष की नरम और गरम दोनों विचारधाराओं के साथ क्रांतिकारी विचारों को भी देश के लिए सामयिक करार दे दिया है।  
अब कहा जा रहा है, समग्र स्वच्छता के बहाने बीजेपी कांग्रेस के इन दोनों बड़े नेताओं पर डोरे डाल रही है। इससे बीजेपी नेहरू और इंदिरा की विचारधारा पर कब्जा कर कांग्रेस को विचारधारा विहीन बनाना चाहती है। बीजेपी के इस कदम से कांग्रेस तिलमिला उठी है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के जीवन पर इसी दौरान 17 और 18 अक्टूबर को दो दिवसीय अंतर-राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया है। सेमिनार में देश के सभी विपक्षी दलों के प्रमुखों सहित विश्व के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को बुलाया हैं।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रण नहीं दिया गया। इस सम्मेलन में पंडित जवाहर लाल नेहरू के
जीवन की उपलब्धियों को देश के सामने रखा जायेगा। उन्हें प्रचारित किया जायेंगा। नेहरू के कार्यों पर शोध का रास्ता साफ किया जायेगा। नेहरू - इंदिरा की विरास को नष्ट करने का आरोप लगा रही कांग्रेस के पास से इन दोनों लोगों को बीजेपी अपनी झोली में खींच लेती है, तो कांग्रेस के पास विचारधारा के नाम पर ना के बराबर ही बचेगा। बस आगे खड़ी होगी एक पूर्ण समृद्ध विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी। जिसके पास विचारधारा के नाम पर भेदभाव का कोई आरोप नहीं होगा। बीजेपी विपक्ष को विचाराधारा से ही बेदखल कर देंगी ? भविष्य अब बीजेपी की तरह विपक्ष के जीवन में आगामी 65 सालों तक सत्ता में आने का मुंह ताकने का काम देने की तैयारी न कर रहा हो ?  ऐसे में सकते में आयी कांग्रेस विचारधारा को बचाने अब अनेक आयोजन करने लग गई है।
हालांकि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इस क्रिटिकल समय में आगामी 20 नवम्बर तक विदेश यात्रा पर है। 17 से 19 नवम्बर तक चलाये जाने वाले इस समग्र स्वच्छता अभियान को वे अपने साथियों पर छोड़ गये है। नेहरू के जीवन पर कांग्रेस के द्वारा बुलाया गया ये अंतर-राष्ट्रीय सम्मेलन मोदी के प्रभाव से शायद दूर रहें। लेकिन नरेन्द्र मोदी अवश्य ही देश में एक विशेष बहस छोड़ विदेश चले गये है। देश का विचार इसे राजनीतिक विरासत को समृद्ध करने या बचाने की सियासत मान रहा है ?

(इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)     

Friday, 7 November 2014

31 अक्टूबर का दिन अब भारत का एकता और अखण्डता दिवस

सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर विशेष 

 भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद करीब तीन-चौथाई समय तक देश में सत्ता की अगुवाई करने वालों ने हमारे पूर्व महान व्यक्तित्वों के साथ भेदभाव किया। जरा भी निडरता से अपना पक्ष रखने वालों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दरकिनार कर दिया। उन महान लोगों के काम और आदर्शों को अपनी विचार धारा का न तो अंग बनने दिया। और न ही मरने के बाद इन महान नेताओं के नाम  को अमर बनाने की राह पर ले गएं। देश के राष्ट्रीय आंदोलन में पर्दे के पीछे से महान भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों की ओर तो इन कर्ताधर्ताओं ने देखना भी मुनासिब नहीं समझा। एकल पार्टी के दबदबे से लंबे समय तक देश में मजबूत विपक्ष खड़ा नहीं हो पाया। भविष्य के बारे में निष्पक्ष न सोचकर कांगेस इसी अवसर में मग्न रही। राष्ट्रीय व्यक्तित्वों की धरोहर को निष्पक्ष आकार देने की बजाय इसे चंद लोगों और परिवार तक सीमित कर लिया। उन्हें ही अमर बनाते रहें। उनसे कोई दूजा नहीं। हर योजना, स्थान और संस्था का नाम बस उन्हीं चंद लोगों या परिवार के नाम पर रखा। बाकी को बेकार समझा। चाहे वो सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानन्द या फिर चन्द्रशेखर आजाद जैस अन्य क्रांतिकारी हो।
इसी का नतीजा है, भारतीय जनता पार्टी ने अकेले पूरे बहुमत के साथ केन्द्र में आते ही भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के रूप में मनाने का निर्णय लिया। 31 अक्टूबर 2014 से पूरे भारत में सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता और अखंडता दिवस के रूप में मनाई जायेंगी।

भारत के लगभग आधे भाग में सांप्रदायिक और विघटनकारी लोग सक्रिय हैं। ऐसे समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के आदर्श ही हमें याद आते हैं। जो राह दिखा सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश की 565 रियासतों को सादगी और शालीनता से भारत संघ में विलय किया। उनके इसी काम से वे आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माता और हिन्दुस्तान के लौह पुरूष तथा मैकियावेली कहलाए। पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। सरदारगीरी के काम अधिक करने के कारण वे 22 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर पाए और वकालत के पेशे में जुट गए। 1908 में विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश कमाया और धाक जमाई। प्रारंभ में पटेल गांधी जी के कामों से सहमत नहीं थे। मगर गुजरात के चम्पारन जिले में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन की सफलता देख पटेल उनके भक्त बन गए। 1930 से 1933 तक चले आंदोलनों में दक्षिण भारत की कमांड पटेल के हाथों में रही। बारदोली सत्याग्रह के समय पटेल ने किसानों से कहा – देखों भाई ! सरकार के पास निर्दयी आदमी हैं। खुले हुए भाले – बंदूकें हैं। तोपे हैं। ब्रिटेन संसार की एक बड़ी शक्ती है। तुम्हारें पास केवल तुम्हारा ह्रदय है। अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का तुम में हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो। कांग्रेस केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने आठों प्रांतों के कामों कुशलता पूर्वक किया।
दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन ने घोषणा की कि युद्ध के बाद सभी भारतीयों की इच्छा अनुसार भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जायेंगा। पटेल ने इस पर गंभीर प्रतिक्रिया की। पटेल ने मुसलमानों के प्रति अविश्वास और संदेह की शिकायत गांधी जी से की। तब गांधी जी ने कहा सरदार सीधी बात बोलने वाले व्यक्ति है। उनकी बात कड़वी लगती है पर वे दिल के साफ है। अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन के समय सरदार पटेल ने लोगों से कहा – ऐसा समय फिर नहीं आयेंगा। आप मन में भय न रखे। आपको यही समझकर लड़ाई लड़ना है कि – महात्मा गांधी और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जायेंगा। तो आप न भूले कि आपके हाथ में कोई ऐसी शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जायेंगा।
सित्मबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थायी राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। भारत विभाजन के पक्ष सरदार पटेल का कहना था सांप्रदायिकता के जहर को फैलने से रोकने के लिए पहले ही गले – सड़े अंग को आपरेशन कर कटवा देना चाहिए। देशी राज्यों के एकीकरण को पटेल ने बिना खून – खराबे के बड़ी कुशलता से हल किया। देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, बहावलपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने के लिए सरदार को कई पेचिदगियों का सामना करना पड़ा। हैदराबाद के निजाम ने राज्य में निवास करने वाली 85 फीसदी हिन्दू जनता को तीन भाषाओं में – तेलगू, मराठी और कन्नड़ में बांटकर लाभ उठा रखा था। निजाम ने राज्य की जागृति को ऐसी निरस्त करने के लिए ऐसी नीति अपना रखी थी। राष्ट्रीय आंदोलन फैलने से बचाने के लिए हैदराबाद को रेल लाइन से नहीं जुड़ने दिया गया। अंग्रेजी से बचाने और मुसलमानों की भावना को अपने ओर मिलाने निजाम ने शिक्षा में उर्दू को माध्यम बना रखा था। भारत संघ में विलय न होने के उद्देश्य से उसने चुपचाप हैदराबाद को 10 लाख रूपये में पाकिस्तान को बेचने का दुष्चक्र रच लिया था। लेकिन इस साजिश की भनक पटेल को लग गई। तब उन्होंने निजाम की दुर्गति की और हैदराबाद को भारत में मिला लिया।
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान ले। तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकार करें। अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने। बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पीटना पड़ा। चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के ऐतेहासिक कामों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक नीधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेख आदि हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा बलवती थी। एक बार जब उनका युद्धपोत गोआ के निकट से जा रहा था तब पटेल ने कमांडिंग आफिसर से तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं। कप्तान ने कहा 800। पटेल ने फिर पूछा क्या गोआ पर अधिकार करने के लिए इतने सैनिक काफी हैं।
 कमांडर ने उत्तर दिया हां। पटेल ने कहा चलो हम गोआ पर अधिकार कर लेते है। कप्तान ने पटेल से इसका आदेश लिखित मांगा। पटेल ने नेहरू के आपत्ती करने के अंदेशे से गोआ पर अधिकार करने के विचार को त्याग दिया। सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था। फिर गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर बातों को भी वे विनोद में कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर सरदार पटेल ने कहा था – सब जगह मेरा वश चल सकता है, पर जवाहर लाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा। उनका यह कहना कितना सटीक था – भारत में केवल एक ही व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है – जवाहरलाल नेहरू। शेष सब साम्प्रदायिक मुसलमान हैं।
यदि नेहरू को तत्कालीन भारत की उत्कृष्ट प्रेरणा कहा जाय तो सरदार पटेल को उनका प्रबल विनय अनुशासन कहा जा सकता है। 15 दिसम्बर, 1950 को इस महा पुरुष का 76 साल की आयु में निधन हो गया। अब इस खाली स्थान को भर पाना मुश्किल है। गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया। तो नेहरू ने गांधी की कल्पना और दृष्टिकोण को एक बड़ा आयाम दिया। वहीं जो शक्ति और सम्पूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम थी। पटेल की सेवाओं का भारत के जन-मानस पर अमिट प्रभाव है।
31 अक्टूबर को देश स्कूल, कॉलेज और सभी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के साथ जनमानस, इस लौहपुरूष की जयंती को पहली बार एकता और अखण्डता दिवस के रूप में मनाने जा रहा है। यहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल के गौरवशाली कामों और उनके धीर-शील व्यक्तित्व के लिए राष्ट्र की सच्ची भावना होगी। जो सरदार पटेल को भारत के राजनीतिक इतिहास में सच्चा स्थान दिलाकर उनका हक दिलायेंगी।
(इदम् राष्ट्राय स्वा:, इदम् राष्ट्राय, इदम् न मम्)

·     ब्लॉगर एण्ड पॉलिटिकल क्रिटिसाइजर