पिता का पत्र पुत्री के नाम- 01
राजा बेटी कंचन
शुभ आशिर्वाद !
आपकी मेगा सिटी
पूना में मौसम के मिजाज कैसे है ? पर्यावरण में आये
इस अजीबो-गरीब परिवर्तन ने तो समूची मानवता के अस्तित्व को ही सांसत में डाल रखा
है। वहीं इसके समानांतर भौतिक चकाचौंध की भागदौड़ ने समाज के मूल्यों को गौण बना
दिया है। पैदा हो गई है एक अंतहीन दौड़। न रास्ता क्लीयर है, और न ही मंजिल। बस
आगे एक खोह इंतजार कर रही है।
मेरी सीईओ बेटी ! आपने
मेरी ब्रिलियेंट लाड़ली होने का सबूत दिया है। मेरा मन आत्म संतुष्ट है। बस अब
मेरी चाहत है। बेटी गृहस्थ जीवन में प्रवेश करे। साथ में मूल्यों की धरोहर लेकर। वो
अपने लिए दूल्हा ढूंढे। अहम को दरकिनार कर। उसे रिश्तों के चयन में अपने से कम
ओहदे वाले लड़के का चयन करने में कोई हिचकिचाहट महसूस न हो। मुझे लगता है बराबरी
का दर्जा पाती बेटी को भी इस बात का ध्यान रखना है।
जो गल्ती पुरूषों ने महिलाओं को दोयम दर्जा देकर आज तक की।
वो अब हमारी जांबाज बेटियां न दोहराएं। अन्यथा एक गल्ती को सुधारने के लिए दूसरी बुराई
का जन्म होगा। और हम पायेंगे समाज फिर वहीं का वहीं खड़ा है। जहां से हम चले थे
फिर वहीं पहुंच गएं। ऐसा करने से एक कमजोर परिवार का उद्धार होगा। साथ ही समाज में आर्थिक संतुलन भी कायम होगा। हमारा
राष्ट्र एक स्वस्थ समाज के लिए जाना जायेंगा। ऐसा मेरा मानना है। आगे आपकी
मर्जी......... !
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