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Saturday 6 April 2013

भारतीय जनता पार्टी स्थापना दिवस


6 अप्रेल 2013 पर विशेष


बीजेपी एक लंबी राजनीतिक यात्रा पूरी कर। आज अपना स्थापना दिवस मना रही है। फिर आज बीजेपी असमंजस भरी राहों पर खड़ी है। जहा से सही रास्ता चुनने की चुनौती उसके सामने खड़ी है। इस साल 14 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव। और अगले साल देश में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव बीजेपी ही नहीं देश की जनता के लिए भी अहम मोड़ लाने वाले है। भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी आपे से बाहर हो रही है। तुष्टीकरण की राजनीति अंग्रेजों से भी आगे जाने को बेताब है। अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तेज करवट ले रही है। कई देशों की अर्थव्यवस्था डावाडोल हो रही है। सुपर पॉवर कही जाने वाला अमेरिका तक जवाब दे रहा है। ऐसे में हम भारत के लोग। यूपीए सरकार के विकल्प के तौर पर एनडीए की ओर ही टकटकी लगा सकते हैं। 
विडम्बना कहों। या बड़ा परिवार। बीजेपी आज तक नेतृत्व की स्पष्ट अवधारणा नहीं अंगीकार कर पायी। बस ऊहापोह ही बार-बार उसे ले डूबी। अपने जन नेताओं को वो आगे नहीं बढ़ा पायी। हां इस बार जरूर मोदी गीत गाएं जा रहे हैं। उस पर भी आशा के साथ शंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं। कुल मिलाकर भारी रिस्क। भारत गठबंधन की राजनीति की गिरफ्त में है। ऐसे में किसी दल के लिए अपने बूते सरकार बनाना एक सपना ही है। अब एक सवाल सबके दिमाग में कौंध रहा है। जो जुबा नहीं आ पा रहा है। नरेन्द्र मोदी की दबंग कार्यशैली कहो। या प्रभावशाली व्यक्तित्व। या फिर वन मैन शो। ऐसे में कैसे। अन्य दल बीजेपी की छत्र छाया में आयेंगे। एक मोदी की बहु प्रचारित तथाकथित सांप्रदायिक छबि। तो दूसरी ओर एकला चलों रे की नीति। इसके संकेत मोदी को बीजेपी संसदीय बोर्ड में लेने के बाद बनाई गई राष्ट्रीय कार्य समिति की सूंची से भी मिल रहे है। वहीं गुजरात में इतनी देर से लाया लोकायुक्त बिल भी मोदी की किरकिरी कर रहा है। भाई हम क्लीन मैन है तो डर कैसा ? लगता है अटल जी की निश्चल राजनीति का सानी अभी बीजेपी नहीं है। ना कोई डर। ना कोई लाग लपेट। ना कोई मोह।

ऐसे में घटक दल एनडीए से सर्व स्वीकार्य नेता की मांग कर सकते है। बीजेपी के झुंकने की नौबत आती है। तब सुई पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ आकर अटक सकती है। घटक दल शायद ही ये पाशा फेंकने से चूंके। कभी बीजेपी का थिंक टैंक कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य की बात में लोगों को दम नजर आने लगे। इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
कांग्रेस तो ताक में बैठी है। उसके पास नेता के मामले पर कोई ऊहापोह नहीं। कोई असमंजस नहीं। देश या गुणवत्ता की परवाह किए बगैर। अंध भक्त बन। वंश विशेष की लाठी पकड़े है। एनडीए के सबसे बड़े घटक दल युनाईटेड जनता दल ने तो अपना तुरूप का पत्ता चल ही दिया है। नीतीश कुमार का कहना साफ है। जो उनके राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देंगा वो उनका साथ देंगे। उन्हें किसी से परहेज नहीं है। 
कांग्रेस नीतीश की इस चाल को अपनी बोतल में उतार चुकी है। रही बात। चंद्र बाबू नायडू की तेलगुदेशम, ममता की तृणमूल कांग्रेस, जयललिता की एडीएमके जैसे बड़े साथियों की। अभी यह प्रश्न अनुत्तरीत ही है कि इन दलों के महत्वाकांक्षी नेता मोदी की हेकड़ी सहन कर पायेंगे या नहीं ?  ऐसे में यदि आडवाणी जी की उम्र आड़े आती है। तब भी। चुनाव पूर्व। यदि एनडीए अपना नेता घोषित किए बिना मैदान में उतरने के लिए सहमत हो तो। वो भी समय की मांग हो सकती है। चुनाव बाद एनडीए बहुमत में आती है। तब नेता का चुनाव का चुनाव फिर दूभर हुआ तो। बीजेपी अपने किसी मुख्यमंत्री का नाम भी बढ़ा सकती है। चाहे वो शिवराज सिंह चौहान या रमण सिंह भी सकते हैं।

आने वाले दिनों में बीजेपी को। अपने प्रशंसा गीत गाने के साथ-साथ। हर कदम फूंक-फूंककर रखना है। नेता घोषित करने का मसला उसके लिए दिनो-दिन नाजुक बनता जा रहा है। आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए इस संवेदनशील मुद्दे को हल करना चुनौती भरा होगा। जो पार्टी की दशा और दिशा तय करेगा। अगर बीजेपी ने संभलकर सधे कदम नहीं उठाएं। तब आखिर में कांग्रेस की ही पौ बारह हो तो। अचंभित होने वाली। जैसी कोई बात नहीं होगी।
    (इदम् राष्ट्राय स्वा: , इदम् राष्ट्राय , इदम् न मम्)
http://indiatvnews.com/livetv/ 

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