भावातित ध्यान के रास्ते खुशहाल जीवन
सरल शब्दों में ध्यान योग मानव इंद्रियों की इच्छाओं को वश में रखने की एक प्राकृतिक प्रक्रिया या युक्ति है। मानव जीवन का दो जगत- एक दिव्य और दूसरा भौतिक से सामना होता है। इसमें दिव्य जगत आनंदमय है तो वहीं भौतिक जगत कष्टों और दु:खों से भरा हुआ है। मानव जब तक इन दोनों के बीच अपने जीवन का संतुलन नहीं बिठाता तब तक वह भटकता रहता है। दु:खमय जीवन बिताता है। वह अपने परम नियंता को भूलकर मोहवश माया में उलझ जाता है। वह अपने जीवन के उद्देश्य जानने को प्रयास तक नहीं करता।
मानव अपने-आपकों इस संसार की आपाधापी में उलझा लेता है। इससे वह अनेक विकारों का शिकार हो जाता है। अब उसे इन दु:खों से निजात पाने के रास्ते की तलाश होती है। ऐसे में हमारे वैदिक साहित्य उन्हें सस्ता, सरल, सुलभ और प्राकृतिक रास्ता सुझाते है। ये मार्ग है-ध्यान योग का। जो ईश्वर द्वारा सुझाया गया है। इसके जरिये हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते है। तनाव से छुटकारा पाने की ये पुरातन तकनीक आज भारत ही नहीं पूरे विश्व में लोकप्रिय है। वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विस्तार होता गया। काल और स्थान के अनुसार मानव सभ्यता भी तेजी से बदली। आखिर में वह मोह, माया और लोभ के जंजाल में उलझ कर रह गयी। इससे मानव का जीवन तनाव से भर गया। आज ये समस्या दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। लोग अनेक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। आज शायद ही कोई इससे अछूता हो। लोग शांति की तलाश में लगे हैं। जो उन्हें नसीब नहीं है।
(Transedental meditation is a way to blissful life. )
सरल शब्दों में ध्यान योग मानव इंद्रियों की इच्छाओं को वश में रखने की एक प्राकृतिक प्रक्रिया या युक्ति है। मानव जीवन का दो जगत- एक दिव्य और दूसरा भौतिक से सामना होता है। इसमें दिव्य जगत आनंदमय है तो वहीं भौतिक जगत कष्टों और दु:खों से भरा हुआ है। मानव जब तक इन दोनों के बीच अपने जीवन का संतुलन नहीं बिठाता तब तक वह भटकता रहता है। दु:खमय जीवन बिताता है। वह अपने परम नियंता को भूलकर मोहवश माया में उलझ जाता है। वह अपने जीवन के उद्देश्य जानने को प्रयास तक नहीं करता।
मानव अपने-आपकों इस संसार की आपाधापी में उलझा लेता है। इससे वह अनेक विकारों का शिकार हो जाता है। अब उसे इन दु:खों से निजात पाने के रास्ते की तलाश होती है। ऐसे में हमारे वैदिक साहित्य उन्हें सस्ता, सरल, सुलभ और प्राकृतिक रास्ता सुझाते है। ये मार्ग है-ध्यान योग का। जो ईश्वर द्वारा सुझाया गया है। इसके जरिये हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते है। तनाव से छुटकारा पाने की ये पुरातन तकनीक आज भारत ही नहीं पूरे विश्व में लोकप्रिय है। वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विस्तार होता गया। काल और स्थान के अनुसार मानव सभ्यता भी तेजी से बदली। आखिर में वह मोह, माया और लोभ के जंजाल में उलझ कर रह गयी। इससे मानव का जीवन तनाव से भर गया। आज ये समस्या दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। लोग अनेक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। आज शायद ही कोई इससे अछूता हो। लोग शांति की तलाश में लगे हैं। जो उन्हें नसीब नहीं है।
भारत ही नहीं आज पूरे विश्व में अनेक सामाजिक, धार्मिक, सरकारी और निजी संस्थाएं ध्यान योग के क्षेत्र में काम कर रही हैं। हमारी पुरातन भारतीय धरोहर आज पूरे विश्व में संस्थागत और शैक्षिक रूप लेती जा रही है। यहां तक कि शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कर, इसे जीवन का अनिवार्य अंग बनाया जा रहा है। जो इसकी लोकप्रियता और सर्व स्वीकार्यता की गवाही देता है। मध्यप्रदेश सरकार तो हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर पूरे प्रदेश में सूर्य नमस्कार का आयोजन भी करती है। इसमें सभी धर्मों के अनुयायी बढ़चढ़कर भाग लेते हैं। राज्य सरकार ने तो इसे स्कूलों में नियत तौर पर करवाने के निर्देश दे रखे हैं। लेकिन स्कूली संस्थाएं योगा नहीं कराकर बच्चों के साथ अन्याय कर रही हैं। वहीं महर्षि महेश योगी वैदिक संस्थान पूरे देश के साथ-साथ विश्व में योगा का प्रचार-प्रसार कर अपने इस पावन नैतिक कर्तव्य को अंजाम दे रही हैं। देश भर में चल रहे महर्षि स्कूलों के पाठ्यक्रमों में योगा को शामिल कर नियमित रूप से योगा को बच्चों के व्यक्तित्व में उतारा जा रहा हैं।
योगा आज वाणिज्यिक और व्यावसायिक आकार लेता जा रहा है। ये चिंता का विषय है। जो योगा के पवित्र उद्देश्य को खतरा उत्पन्न कर रहा है। लोग तो अब इसके जरियें धन कमाने तक ही सीमित नहीं रहना चाहते हैं। वे इसे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने का अस्त्र तक बनाने में लगे हैं। वहीं लोगों में भी योगा क्लाश में जाना एक फैशन बनता जा रहा है। लोग योगा क्लाश में जरूर जाते हैं। वहां उनका केवल शरीर होता है। मन और कहीं। वें योगा क्लास में जाने मात्र से अपनी इतिश्री मानने लगे हैं। ऐसे में जब तक योगा सिखाने वाला इसे एक पवित्र दान के तौर पर नहीं बांटेगा। पीड़ित अपने जेहन में मानवीय मूल्यों को नहीं उतारेंगा। तब तक मानव का दुखों से उबर पाना मुश्किल है।
भारत की संस्कृति सनातन और शाश्वत है। बाकी सभी सभ्यताएं बाद की है। इसे कई बार नष्ट करने के प्रयास किए गए। इसके बावजूद वह आस्ट्रेलिया के जंगलों में पाये जाने वाले फिनॉक्स पक्षी की तरह अपने राख से जिंदा हो उठी। इसी अपनी अलग विशेषता के कारण हमारे वैदिक साहित्य का कोई सानी या विकल्प नहीं है। हमारे वैदिक ग्रंथों में मानव जीवन के मूल उद्देश का विशद और भेदभाव रहित व्याख्या की गई है। इसके रास्ते पर चलकर मानव लालच और द्वैष की माया में उलझने से बच सकता है। मैं तो आखिर में कहना चाहूंगा। हर भारतीय को ही नहीं। दुनियां के हर नागरिक को लाईफ साइंस गीता पढ़ना चाहिए। गीता में हमारे चार वेद, 18 पुराण, 6 सूत्र और 108 उपनिषद् सहित पूरे वैदिक साहित्य का निचोड़ या सार दिया है। गीता हमें जीवन जीने का विज्ञान सींखाती है। सबसे बढ़कर गीता स्वयं भगवान द्वारा उच्चारित है।
हमारे वैदिक साहित्य में पांच तत्वों ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल और कर्म के अंतर संबंधों को बताया गया। इसमें मानव जीवन को सुखमय बनाने के रास्ते बताये गये है। मानव इन पांच तत्वों के साथ संतुलन बिठाकर ही अपने जीवन को सुखमय बना सकता है। इससे जीव के मानव जीवन में आने की उद्देश्य की पूर्ती भी होती है। आज मानव मोटर, गाड़ी, बंगला, औहदा, ऐशो-आराम और नाम कमाने को ही अपने जीवन का प्रयोजन मान बैठा हैं। उसने मानवीय मूल्य और संवेदनाओं को ताक पर रख दिया हैं। वह लोभ और द्वैष से लबालब हो गया है। मानव एक दूसरे का ही नहीं बल्कि हर जीव और प्रकृति के अस्तित्व का ही दुश्मन बन गया हैं। मानव की बदली इसी प्रवृति के कारण तनाव ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया हैं। तनाव की कोख से अनेक बीमारियां जन्म ले रही हैं। इसने मानव जीवन को छोटा कर उसके अस्तित्व को ही खतरा में डाल दिया है।
वैदिक साहित्य जो स्वयं ईश्वर ने लिखे हैं। इनमें साफ कहां गया है। जब तक जीव अपना सामंजस्य जीवन के मूल उद्देश्य के साथ नहीं बिठाता हैं। तब तक वह सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकता। वह लगातार भटकता रहेगा। उसे दुख ही उठानें पड़ेंगे। वैदिक ग्रंथों में इनकें हल के तौर पर तीन रास्तें बताए गए हैं। पहला ज्ञान योग, दूसरा ध्यान योग और तीसरा भक्ति योग। इनमें से ध्यान योग अधिक कारगर, सरल और व्यवहारिक माना गया है। वैदिक ग्रंथों में ध्यान योग की अनेक तकनीकों को विस्तार से बताया गया हैं।
प्राकृतिक तकनीक होने के कारण ध्यान योग सर्वमान्य हैं। इस पर कोई विवाद नहीं हैं। सभी धर्मों के अनुयायी इसका लाभ ले रहे हैं। ध्यान योग मन को किसी एक नियत स्थान, बिंदु, स्वरूप या लोक में ले जाकर स्थिर किया जाता है।
योगा आज वाणिज्यिक और व्यावसायिक आकार लेता जा रहा है। ये चिंता का विषय है। जो योगा के पवित्र उद्देश्य को खतरा उत्पन्न कर रहा है। लोग तो अब इसके जरियें धन कमाने तक ही सीमित नहीं रहना चाहते हैं। वे इसे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने का अस्त्र तक बनाने में लगे हैं। वहीं लोगों में भी योगा क्लाश में जाना एक फैशन बनता जा रहा है। लोग योगा क्लाश में जरूर जाते हैं। वहां उनका केवल शरीर होता है। मन और कहीं। वें योगा क्लास में जाने मात्र से अपनी इतिश्री मानने लगे हैं। ऐसे में जब तक योगा सिखाने वाला इसे एक पवित्र दान के तौर पर नहीं बांटेगा। पीड़ित अपने जेहन में मानवीय मूल्यों को नहीं उतारेंगा। तब तक मानव का दुखों से उबर पाना मुश्किल है।
भारत की संस्कृति सनातन और शाश्वत है। बाकी सभी सभ्यताएं बाद की है। इसे कई बार नष्ट करने के प्रयास किए गए। इसके बावजूद वह आस्ट्रेलिया के जंगलों में पाये जाने वाले फिनॉक्स पक्षी की तरह अपने राख से जिंदा हो उठी। इसी अपनी अलग विशेषता के कारण हमारे वैदिक साहित्य का कोई सानी या विकल्प नहीं है। हमारे वैदिक ग्रंथों में मानव जीवन के मूल उद्देश का विशद और भेदभाव रहित व्याख्या की गई है। इसके रास्ते पर चलकर मानव लालच और द्वैष की माया में उलझने से बच सकता है। मैं तो आखिर में कहना चाहूंगा। हर भारतीय को ही नहीं। दुनियां के हर नागरिक को लाईफ साइंस गीता पढ़ना चाहिए। गीता में हमारे चार वेद, 18 पुराण, 6 सूत्र और 108 उपनिषद् सहित पूरे वैदिक साहित्य का निचोड़ या सार दिया है। गीता हमें जीवन जीने का विज्ञान सींखाती है। सबसे बढ़कर गीता स्वयं भगवान द्वारा उच्चारित है।
हमारे वैदिक साहित्य में पांच तत्वों ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल और कर्म के अंतर संबंधों को बताया गया। इसमें मानव जीवन को सुखमय बनाने के रास्ते बताये गये है। मानव इन पांच तत्वों के साथ संतुलन बिठाकर ही अपने जीवन को सुखमय बना सकता है। इससे जीव के मानव जीवन में आने की उद्देश्य की पूर्ती भी होती है। आज मानव मोटर, गाड़ी, बंगला, औहदा, ऐशो-आराम और नाम कमाने को ही अपने जीवन का प्रयोजन मान बैठा हैं। उसने मानवीय मूल्य और संवेदनाओं को ताक पर रख दिया हैं। वह लोभ और द्वैष से लबालब हो गया है। मानव एक दूसरे का ही नहीं बल्कि हर जीव और प्रकृति के अस्तित्व का ही दुश्मन बन गया हैं। मानव की बदली इसी प्रवृति के कारण तनाव ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया हैं। तनाव की कोख से अनेक बीमारियां जन्म ले रही हैं। इसने मानव जीवन को छोटा कर उसके अस्तित्व को ही खतरा में डाल दिया है।
वैदिक साहित्य जो स्वयं ईश्वर ने लिखे हैं। इनमें साफ कहां गया है। जब तक जीव अपना सामंजस्य जीवन के मूल उद्देश्य के साथ नहीं बिठाता हैं। तब तक वह सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकता। वह लगातार भटकता रहेगा। उसे दुख ही उठानें पड़ेंगे। वैदिक ग्रंथों में इनकें हल के तौर पर तीन रास्तें बताए गए हैं। पहला ज्ञान योग, दूसरा ध्यान योग और तीसरा भक्ति योग। इनमें से ध्यान योग अधिक कारगर, सरल और व्यवहारिक माना गया है। वैदिक ग्रंथों में ध्यान योग की अनेक तकनीकों को विस्तार से बताया गया हैं।
प्राकृतिक तकनीक होने के कारण ध्यान योग सर्वमान्य हैं। इस पर कोई विवाद नहीं हैं। सभी धर्मों के अनुयायी इसका लाभ ले रहे हैं। ध्यान योग मन को किसी एक नियत स्थान, बिंदु, स्वरूप या लोक में ले जाकर स्थिर किया जाता है।
सबकों स्वास्थ्य ........... सबकों संदेश ................ !
ReplyDeleteआज दिनांक 21 जून 2016 विश्व योग दिवस के अवसर पर दुनियां के सभी नागरिकों को शुभकामनाएं ……… ! मैंने आज ही संसार की सबसे लोकप्रिय और अनुवादित पुस्तक गीता में पढ़ा। परम् पिता परमेश्वर ने स्वयं अपने मुखार बिन्दु से उच्चारित किया है। रोगी को सूर्यदेवता की आरधना करना चाहिएं। आज विश्व योग दिवस पर मैं ये संदेश देना चाहता हूं कि इस बात को प्रासंगिक बनाने के लिए योग ही सबसे अहम माध्यम साबित हो सकता है। योग व्यक्ति को सुबह उठाकर रोजाना सूर्य से साक्षात्कार करावकर उसे जीवन ऊर्जा से भर देता है। इससे व्यक्ति में नित्य जीवन में उत्साह और उमंग का संचार होता रहता है। उसे अपने मूल्यवान जीवन के प्रति आभास होता रहता है। .................... धन्यवाद !
Delete