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Wednesday 9 April 2014

भारत को एक पूर्ण विकसित राष्ट्र बनाने - वोट फॉर मोदी, वोट फॉर इण्डिया

भारत को एक पूर्ण विकसित राष्ट्र बनाने -
वोट फॉर मोदी, वोट फॉर इण्डिया

भारत के महान् स्वपन्न दृष्टा... ! पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक पूर्ण विकसित राष्ट्र के रूप में देखने का सपना देखा था। अटल जी भारत को सन् 2020 तक विश्व की एक आर्थिक और राजनीतिक महाशक्ति बनाने की कार्य योजना पर कार्य कर रहे थे। राजनीतिक विथिकाओं के चलते कहों या हमारी भूल के कारण अटल जी की राहें बाधित हुईं। वे अपने इस पवित्र सपने को आकार नहीं दे सकें। अटल जी भारत को एक विकसित देश बनने की दहलीज तक ले जाने में कामयाब रहे। लेकिन पिछले एक दशक से देश एक विकसित राष्ट्र बनने की बजाय लड़खड़ाता ही रहा। 
पूर्ण विकसित राष्ट्र बनने की दहलीज पार नहीं कर सका। हां पिछले एक दशक में भ्रष्टाचार और महंगाई के नये कीर्तिमान अवश्य सामने आयें। चाहे वह। आर्थिक उदारीकरण के उभारकाल की प्रारंभिक बुराईयों के चलते ये सब हुआ हो। या फिर। वंशवाद की छाया में रिमोटेड लीडरशीप के कमजोर हाथों में देश सौंपने के कारण। आप, हम या कोई और जिम्मेवारी से बच नहीं सकता।
अटल जी के अधूरे रहे। इस राष्ट्र महायज्ञ को पूरा करने। अप्रेल-मई 2014 में होने जा रहें लोकसभा के आम चुनावों के जरिए। अवसर एक बार फिर हम देशवासियों के सामने है। आओं हम सब मिलकर। एक विकसित राष्ट्र बनने की दहलीज पर खड़े भारत को एक पूर्ण विकसित राष्ट्र बनाने के लिए। सबसे पहले देश, सब बातें बाद की वाली सोच के साथ वोट फॉर मोदी, वोट फॉर इण्डिया का रास्ता चुने। देश की बागडौर एक सक्षम नेतृत्व के हाथों में दें। इस सोच के अनेक तार्किक आधार जो हैं
1.              भारत के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देश में एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार जरूरी है। ऐसी सरकार बनाने का पूरा दारोमदार हम मतदाताओं पर है। हमारा एक-एक वोट ही पूर्ण बहुमत वाली सरकार बना सकता है।
2.              अब आप सोचेग, ये कैसे होगा ? बीते सालों में मतदाता देश के कुछ राज्यों में ऐसा चमत्कार कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार इसके बेहतर  उदाहरण कहें जा सकते हैं।
3.              किसने सोचा था ? उत्तर प्रदेश से एकाएक विखण्डित बहुमत वाली सरकारे खत्म होकर एक पूरे बहुमत वाली सरकार कायम होगी। लेकिन मतदाताओं ने ही ये हल अपने स्तर पर निकाला। सबसे पहले वोटरों ने मायावती को रिकार्ड दो-तिहाई बहुमत देकर दलितों की शिकायत दूर की। वो एक अलग बात है। 
   मायावती इस अवसर को स्थायी तौर पर संभाल नहीं पायी। अगले ही चुनाव में मतदाताओं ने गल्तियों की सजा देकर मायावती को सत्ता से बाहर किया। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश में विखण्डित बहुमत लौटकर नहीं आया। समाजवादी पार्टी को भी दो-तिहाई रिकार्ड बहुमत दिया। भले ही उत्तर प्रदेश की जनता के लिए इस समाजवादी सरकार के अनुभव अच्छें नहीं चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश की जनता के इस अच्छे अनुकरणीय व्यवहार को देश के मतदाता राष्ट्रीय स्तर पर अपना सकते हैं। आखिर देश हित का सवाल है। स्थिरता का स्वाल। विकास का सवाल है। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, आंतरिक और बाह्य सुरक्षा ऐसे अनेक अनुत्तरीत सवाल है, जिनका हल मतदाता ही एक दल को पूरा बहुमत देकर निकाल सकते हैं। जो समय की मांग है।
4.              बिहार में भी मतदाताओं ने अपने स्तर से ही लालू प्रसाद यादव के एक छत्र राज्य से निजात पायी। दहशत भरे माहौल को विदाई दी। विकास की राह को पहचाना। नितिश कुमार को शासन करने का मौका दिया। दूसरी बार भी वोटर किसी के झांसे में नहीं आया। उसने फिर सत्ता की बागडौर नितिश के हाथों में सौंपी। जिसका अच्छा अनुभव हम किसी से छिपा नहीं है। ये सब मतदाताओं की परिपक्व मानसिक आयु के कारण ही संभव हुआ। अब हमारे देश मतदाता स्वयं निर्णय लेने की स्थिती में आ चुके हैं। उसे किसी के सलाह की जरूरत नहीं है। वे अपना अच्छा-बुरा समझने लगे हैं।
5.              देश में चल रहे राजनीतिक दौर में भारतीय जनता पार्टी ही एक ऐसा बेहतर दल है। इसके  पास नेतृत्व का कोई संकट नहीं है। कमोवेश कोई अप्रिय स्थिती उपन्न भी हुई तो नरेन्द्र मोदी के बाद भी पार्टी में नेतृत्व संभालने के लिए नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। भाजपा के पास एक लंबा संघर्ष और अनुभव है। उसके पास एक स्पष्ट विजन के साथ पार्टी में पर्याप्त मानव संसाधन है। भारतीय जनता पार्टी की संगठन संरचना और कार्य करने की प्रजातांत्रिक प्रक्रिया उसे अन्य दलों से अलग पहचान देती है। भारतीय जनता पार्टी ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शासन चलाने की दृड़ राजनीति इच्छा शक्ति जाहिर करने की दौड़ में आगे चल रही है। जो शासन व्यवस्था चलाने के लिए जरूरी है।
6.    विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए स्वतंत्रता के बाद सबसे दुखद अनुभव रहा। उसे यूरोपीय देशों की तरह युवा नेतृत्व की परंपरा नहीं मिली। युवा नेतृत्व का सीधा प्रभाव प्रभाव प्रशासकीय कार्य क्षमता पर होता है। यूरोपीय देशों में देश की बागडौर किसी ऐसे नेता के ही हाथ में मतदाता देता है। 
जिसके कार्य करते समय रूमाल पसीने से इतनी भींग जाय कि रूमाल को निचोड़ने पर पसीना टपकने लगे। युवा नेतृत्व की अवधारणा पर भी अभी देश में चल रही दौड़ में नरेन्द्र मोदी सबसे आगे चल रहे है। नरेन्द्र मोदी के पास शासन चलाने का एक लंबा अनुभव है। सबसे बढ़कर उनके पीछे एक बड़े राजनीतिक दल का संबल खड़ा है।
7.              इसमें कोई दो राय नहीं। नैतिक मूल्यों की दुहाई देने में आम आदमी पार्टी सबसे आगे चल रही है। जो समय की मांग के अनुसार लीक से हटकर बदलाव की बात कर रही है। इनके अलावा कोई परंपरागत दल ऐसे बदलाव की पहल का साहस नहीं कर रहा है। चाहे वो भ्रष्टाचार जैसा संवेदनशील मुद्दा ही क्यों न हो। लेकिन इतने बड़े देश में आम आदमी पार्टी के लिए ये सब कर पाना इतना आसान नहीं है। एक स्वस्थ राजनीतिक दल खड़ा करने के लिए हजारों परिवारों, कार्यकर्ताओं को अपने जीवन की आहुतियां देनी पड़ती है। दल में व्यक्तिवाद की जगह प्रजातांत्रिक परंपरा को स्थापित करना आसान नहीं होता। ये सब उस दल विशेष के जन्मदाता के लिए भी संभव नहीं होता। वो भी धृतराष्ट्र की तरह राज मोह नहीं छोड़ पाता।
इस स्वस्थ परंपरा को समय और परिवेश डालता है कोई व्यक्ति नहीं। अब अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजनीतिक मनीषी का जन्म लेना संभव नहीं है। जिनका दाहिना हाथ बनकर लालकृष्ण आडवानी ने बिना किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के निष्ठा से काम किया। ऐसी राजनीतिक बेजोड़ जोड़ी शायद भविष्य में देखने को मिले। आज संगठन का युग है। इस युग में किसी भावुक क्रांति को मौका देना नाइंसाफी ही होगी। 
सभ्यता और तकनीकी के उच्च स्तर के इस युग में बुराईयों को धीरे-धीरे ही व्यवस्था से निकाला जा सकता है। एकाएक सख्ती से नहीं। सख्ती का विकल्प प्रशासकीय प्रक्रियागत विकास ही एक बेहतर विकल्प हो सकता है। ये सभी बातें आम आदमी पार्टी के पास नहीं है। अभी उसे अनुभव की जरूरत है। साथ ही उसे संगठन स्तर पर भी स्वस्थ राजनीतिक परंपरा को साबित करना है। दिल्ली में सत्ता संभालने और उसके बाद के हालात पर गौर करें तो आम आदमी पार्टी के मामले में अनुभव अच्छे नहीं कहें जा सकतें।  

ऐसे में आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर वोट करना एक बेहतर सोच का पैमाना नहीं हो सकता। इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती। यदि हम आम आमदमी पार्टी को दिल्ली के विधान सभा चुनवों में दोबारा मौका दें। इससे देश को दोहरा लाभ ही होगा। 
इससे एक ओर देश में नैतिक मूल्यों की बायार बहती रहेगी। तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी नैतिक मूल्यों की झंडा बदर बनकर सत्ताधारी दल में भावी विकल्प का डर पैदा कर उसे अच्छे कार्य करने के लिए बाध्य करती रहेंगी। प्रजातंत्र को सफल बनाने का दायित्व भी विपक्ष पर होता है। अन्यथा सत्ता मद-मोह में उलझ जाती है।
8.              सत्ता में निरंतरता एक स्वस्थ व्यवस्था के लिए ठीक नहीं रहती। आलटरनेटिव मौका देना इसकी मूल आवश्यकता होती है। कांग्रेस गत एक दशक से राज कर रही है। तथाकथित तीसरे मोर्चे के सेक्यूलरवाद के प्रोपेगण्डा पर ध्यान देना न्यायोचित नहीं होगा।
9.              अन्ना हजारे के इंडिया अगेनस्ट करप्सन आंदोलन से जो आस जागी थी। उसके के भी कटु अनुभव रहे। ये आन्दोलन अपने पांच लोगों की टीम में एकता कायम नहीं रख पाया। अन्ना हजारे, किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल, प्रशांत भूषण और शांति भूषण पांच एक सूत्र में नहीं रह पायें। श्रेय हाथ से जाने के डर में अन्ना हजारे ने आखिर में अपने जन लोकपाल को दरकिनार कर सरकारी लोकपाल को ही स्वीकार कर लिया। और अब तो चर्चाओं में रहने के अपने मोह के चलते अन्ना हजारे अपने अर्जुन अरविन्द केजरीवाल को छोड़ ममता बनर्जी के रथ के सारथी बनकर चुनावी कुरूक्षेत्र में गीता सुना रहे है। 
    लेकिन शायद ही वे अब कृष्ण बन पाये। क्योंकि ये कलियुग है। अगस्त 2012 के अन्ना के आन्दोलन को देश की दूसरी अगस्त क्रांति और अन्ना को दूसरा गांधी कहना शायद हमारी जल्दबाजी रही हो। इस उदगार के समय हमने अपने अनुभव को गंभीरता से नहीं लिया। 
हम भावुकता के उभार में भूल गए कि देश में बिना द्वैष, ईर्ष्या वाला प्रजातांत्रिक संगठन खड़ा करना आसान नहीं है। जो स्व हित की जगह राष्ट हित को सर्वोपरी माने। जिसमें संगठन की कार्य प्रक्रिया के लिए स्वस्थ परंपराएं हो। जिससे संगठन की निरन्तरता और नवीनता बनी रहे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसे में हमें भावुकता में अपने वोट का उपयोग न करके अपनी आत्मा की आवाज से श्रेष्ठ विकल्प को वोट करना है।   
            इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए मतदाताओं से आशा ही नहीं उम्मीद है। वें इस बार राजनीतिक आक्षेप की राजनीति पर ध्यान न देकर। केवल और केवल देश के भविष्य को सामने रख वोट करेंगे। एक दल को स्पष्ट दो-तिहाई बहुमत देकर उसे बड़े निर्णय लेने के काबिल बनायेंगे। जोड़-तोड़ और ब्लैकमैलिंग की गठबंधन राजनीति को विदाई देंगे। यह परिवर्तन देश में एक ओर मतदाताओं की परिपक्व सोच का परिचय देगा। तो दूसरी ओर देश में एक सुसुप्त क्रांति लाने के श्रेय का सेहरा भी मतदाताओं के सिर बंधेगा। 
किसी नेता के नहीं। सबसे बड़ी बात मतदाताओं की परिपक्व सोच का यह प्रमाण राजनीतिक दलों में भावी डर पैदा करेंगा। राजनीतिक दलों को समझ में आ जायेंगा कि अब यदि उन्हें बहलाया-फुसलाया तो खैर नहीं। आम आदमी को विकास चाहिए। कटुता से उसे कोई सरोकार नहीं है। यदि आशा के विपरित हुआ तो भविष्य में नया विकल्प चुनने की कूबत अब वोटरों में हैं।
 अब देश की सत्ता उनके अनुसार चलेंगी न कि नेताओं के आपसी हितों के अनुसार। ऐसे में, अप्रेल-मई 2014 में हो रहे लोकसभा के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ही सबसे बेहतर विकल्प है। देश उम्मीद लगाएं हुए है। इस बार लोक सभा के आम चुनावों में मतदाता राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की राजनीति की विदाई कर देश को दो-तिहाई बहुमत वाली सरकार उपहार में देंगे। 
जो वर्तमान ही नहीं भावी पीढ़ी के लिए भी रास्ता खोलने वाला साबित होगा। राष्ट कल्याण के इस साध्य को साधने के लिए अभी हमारे सामने एक बेहतर साधन है वोट फॉर मोदी, वोट फॉर इण्डिया.....!
( इदम राष्ट्राय स्वा: , इदम राष्ट्राय , इदम न मम् ! )   

2 comments:

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  2. इस लेख की भावना अनुसार भारत के मतदाताओं ने वोट फॉर इंडिया की भावना को सामने रख हिन्दुस्तान को एक पूर्ण विकसति राष्ट्र बनाने के लिए अकेले दल भारतीय जनता पार्टी को देश में भारी बहुमत से विजयी बनाया।

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